नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 20 मार्च, 2025 को मैनपुरी के जिला मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों से जवाब देने को कहा है। मामला ईशन नदी तट पर हुए अतिक्रमण से जुड़ा है, जो गंगा की एक सहायक नदी है।
आवेदक अजय प्रताप सिंह ने रोहतम झील के संरक्षण को लेकर भी चिंता जताई है। उनका आरोप है कि मैनपुरी और एटा में ईशन नदी के दोनों किनारों पर स्कूल, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और अवैध कॉलोनियां द्वारा अतिक्रमण किया गया है। उनके मुताबिक यह निर्माण अब भी जारी है।
आवेदक ने यह भी दावा किया है कि हॉस्टल रोड के साथ बहने वाला मैनपुरी शहर का मुख्य नाला सेंट मैरी स्कूल के पास ईशान नदी में गिरता है। यह नाला शहर के आवासीय क्षेत्रों से निकला काला गन्दा पानी नदी में छोड़ रहा है।
इस मामले में अगली सुनवाई 17 जुलाई, 2025 को होगी।
अनियंत्रित प्रदूषण से भद्रवाह के जल निकायों पर मंडरा रहा खतरा, सीवेज, कचरे पर तत्काल कार्रवाई की है आवश्यकता
जम्मू कश्मीर के डोडा में भद्रवाह के जल निकायों की जल गुणवत्ता पर जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति (जेएंडकेपीसीसी) द्वारा बारीकी से नजर रखी जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक पानी के नमूनों की समय-समय पर जांच की जाती है।
वहां पुनेजा नाले से लिए नमूने को छोड़कर सभी मानकों के अनुरूप पाए गए हैं। पुनेजा नाले से लिए नमूनों में बीओडी का मान तीन के बजाय थोड़ा अधिक 3.3 पाया गया है। इसके साथ ही उसमें हल्की तीखी गंध भी पाई गई है।
यह बातें डोडा के डिप्टी कमिश्नर की ओर से 24 मार्च, 2025 को एनजीटी में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कही गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इसका मुख्य कारण बूचड़खाने में बायो-इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की कमी है, जिसके कारण बीओडी का स्तर ऊंचा बना हुआ है। उम्मीद जताई गई है कि प्लांट लगने के बाद बीओडी के स्तर में सुधार आएगा।
गौरतलब है कि सीवेज उपचार के लिए बनाई कार्ययोजना में हर दिन घरों से निकलने वाले 1.68 मिलियन लीटर सीवेज की पहचान की थी, जो बिना किसी उपचार के सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से जल निकायों में छोड़ा जा रहा है।
कार्ययोजना में यह भी पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों से निकलने वाला गन्दा पानी बिना किसी उपचार के जल निकायों में बहा दिया जाता है। इसमें अलावा रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सोखने के लिए पर्याप्त गड्ढों की कमी है और बूचड़खानों से निकलने वाला कचरा सीधे जल निकायों में जा रहा है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि भद्रवाह के उप-जिला अस्पताल में मौजूद ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहा है। जल प्रदूषण का एक और कारण सेप्टिक टैंकों की कमी के कारण घरों से निकलने वाला सीवेज का सीधे जल निकायों में बहाया जाना है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि द्रंगा भद्रवाह मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) सुविधा की डंपिंग साइट के पास बिना प्रोसेस किए कचरे का ढेर लगा है। लैंडफिल लगभग भर चुका है। बता दें कि न मुद्दों को कार्ययोजना में उजागर किया गया है।