जल

भारत दुनिया को बता सकता है कि जल प्रबंधन को कैसे नया रूप दिया जाए: सुनीता नारायण

DTE Staff

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस के मौके पर “बी द चेंज” नामक एक वैश्विक अभियान शुरू किया है, मगर भारत पहले से ही इस मामले में जमीन पर वास्तविक कार्रवाई कर रहा है। इससे पता चलता है कि कितना बड़ा परिवर्तन संभव है। और यह उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा सभी के लिए टिकाऊ और समावेशी स्वच्छता और पानी प्रदान करने की चुनौती से निपटने के तरीके से स्पष्ट है।”

सुनीता नारायण लखनऊ में विश्व जल दिवस के मौके पर आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं। उनका कहना है कि भारत दुनिया को बता सकता है कि जल प्रबंधन को कैसे नया रूप दिया जा सकता है।

इस मौके पर नारायण ने कहा कि भारत का अनुभव दुनिया को यह सिखाने में अमूल्य रहा है कि कैसे जल प्रबंधन को फिर से खोजा जा सकता है, जो सस्ता और टिकाऊ हो।” 

उन्होंने “भारतीय तरीका” के बारे में बताते हुए कहा, "समुदायों को पानी का अधिकार दिया जाना चाहिए, जो रिचार्ज और पुन: उपयोग पर केंद्रित हो। साथ ही उन्होंने कहा कि पानी के प्रबंधन में सभी की जिम्मेदारी ही समाधान है। यह एक अवसर है। इस दशक में हमने जो भी सीखा है, उन्हें व्यवहार में लाकर भारत की पानी की कहानी पूरी कर सकते हैं।

उन्होंने कहा, “पानी के प्रबंधन में सभी की जिम्मेदारी ही समाधान है। यह एक अवसर है। इस दशक में हमने जो भी सीखा है, उन्हें व्यवहार में लाकर भारत की पानी की कहानी पूरी कर सकते हैं।”

नारायण ने बताया कि आज के जलवायु-जोखिम वाली दुनिया में यह और भी महत्वपूर्ण है। हमें न केवल एक और बारिश बल्कि दूसरी  और बाढ़ का सामना करने के लिए जल प्रणालियों में निवेश करने और उन्हें टिकाऊ बनाने के अपने काम को बढ़ाना चाहिए।  हमें अपने काम में तेजी लाने की जरूरत है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से हमारे यहां कम दिनों में अधिक बारिश होगी। इसका मतलब यह है कि बारिश जब भी और जहां भी हो, उसे इकट्ठा करने के लिए बहुत कुछ करना होगा, ताकि उससे भूजल रिचार्ज हो सके। 

उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश के लिए, पानी की कमी कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सावधानीपूर्वक उपयोग और उचित वितरण मुद्दा है। हम अपने जल संसाधनों का प्रबंधन कैसे करते हैं, यह निर्धारित करेगा कि हम गरीब रहेंगे या अमीर;  रोगी रहेंगे या स्वस्थ। दूसरे शब्दों में, पानी हमारे भविष्य का निर्धारक है। जल प्रबंधन रणनीतियों को सावधानीपूर्वक बनाने की आवश्यकता होगी ताकि वे वितरित धन सृजन की ओर अग्रसर हों।

उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और यहां के 95 प्रतिशत शहर व टाउन पूरी तरह से बिना सीवर सिस्टम पर निर्भर हैं। 737 में से केवल 31 कस्बों में कुछ हद तक सीवरेज सिस्टम है, जो इन कस्बों से निकलने वाले सीवेज के महज 40 प्रतिशत हिस्से को ट्रीट करता है।

सीएसई के कार्यक्रम निदेशक (जल) देपिंदर कपूर कहते हैं, “यही कारण है कि मल कीचड़ और सेप्टेज का सतत व समावेशी वैज्ञानिक प्रबंधन उत्तर प्रदेश के लिए प्राथमिकता है। राज्य के गरीब काफी हद तक ऑन-साइट स्वच्छता प्रणालियों पर निर्भर हैं। ऐसे में एक असरदार और सस्ती सीवेज प्रबंधन प्रणाली देने से सामाजिक, पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में बेहतर परिणाम आएंगे।”

इसके अलावा सीएसई के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक (जल)  सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा, “उत्तर प्रदेश सभी के लिए समावेशी स्वच्छता को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। एक सेप्टेज प्रबंधन नीति यहां लागू है। 59 कस्बों और शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्रणाली स्थापित की जा चुकी है तथा सीएसई के सहयोग से बिजनौर और चुनार के कस्बों में मल कीचड़ व को-ट्रीटमेंट प्रणाली काम कर रही है।”

इस अवसर पर केंद्रीय आवासन व शहरी मामलों के राज्य मंत्री कौशल किशोर, उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री अरविंद कुमार शर्मा, उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा, उत्तर प्रदेश के शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव अमृत अभिजात, उत्तर प्रदेश के एसबीएम की स्टेट मिशन डायरेक्टर नेहा शर्मा, उत्तर प्रदेश में अमृत के स्टेट मिशन डायरेक्टर रंजन कुमार, उत्तर प्रदेश जल निगम (शहरी) के प्रबंध निदेशक अनिल ढिंगरा, ओडिशा जलापूर्ति व सीवरेज बोर्ड के इंजीनियर इन चीफ प्रशांत के महापात्र आदि मौजूद थे।