एक अध्ययन के अनुसार, साल 2002-2021 के दौरान देश भर में भूजल में 95 प्रतिशत की कमी उत्तर भारत में दर्ज की गई। उत्तर भारत में लगभग 450 क्यूबिक किमी भूजल नष्ट हो गया है। शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से चेतावनी देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन आने वाले सालों में इसकी कमी को और तेज कर देगा।
अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में बारिश में वृद्धि होने पर भी यह पहले से गिर चुके जलस्तर की पूरी तरह भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून के मौसम के दौरान बारिश की कमी और उसके बाद गर्म होती सर्दियों के कारण भूजल के फिर से भरने में लगभग छह से 12 प्रतिशत की गिरावट आने का भी अनुमान है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर (आईआईटी-जीएन) के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि भारत में भूजल की कमी तब तक जारी रहेगी, जब तक जमीन से निकाले जाने वाले अत्यधिक पानी को सीमित नहीं किया जाता, जिससे भविष्य में जमीनी पानी की कमी से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होंगी।
शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, अस्थायी पम्पिंग (दोबारा भरा न जाने वाला) के कारण भूजल भंडारण पर भारी प्रभाव पड़ रहा है, जिसके कारण जल स्तर गिर रहा है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा कि ट्यूबवेल की गहराई को सीमित करना और पानी निकालने की लागत को शामिल करना गहरे जलभृतों के अतिदोहन को रोकने के लिए फायदेमंद है। शोधकर्ता ने आगे कहा, दुनिया भर में औसत तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित करने से उत्तर भारत में भूजल भंडारण में फायदा हो सकता है।
वन अर्थ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में भूजल भंडारण में बदलाव का अध्ययन करने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के भूजल के स्तर और उपग्रह अवलोकनों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
शोध के मुताबिक, आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्ताओं की टीम ने हाइड्रोलॉजिकल मॉडल सिमुलेशन के लिए भविष्य के अलग-अलग तापमान के परिदृश्यों वाले वैश्विक जलवायु मॉडल अनुमानों का भी उपयोग किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पूरे उत्तर भारत में, 1951 से 2021 के दौरान मॉनसून (जून से सितंबर) में बारिश में 8.5 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने पाया कि इसी अवधि में इस क्षेत्र में सर्दियां 0.3 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गई हैं।
शोधकर्ताओं ने भूजल भंडारण में भविष्य में होने वाले बदलावों पर भूजल निकाले जाने और उन्हें फिर से भरने के सापेक्ष का भी अनुमान लगाया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि भारी नमी और जमीनी पानी के थोड़ा बहुत जमा किए जाने के चलते सर्वाधिक भूजल संसाधनों से लगातार दोहन के बावजूद भूजल को दोबारा हासिल किया जा सकता है, चाहे वह आंशिक ही क्यों न हो।
अध्ययन से पता चलता है कि बारिश में बढ़ोतरी सीधे भूजल भंडारण की वृद्धि में तब्दील नहीं हो सकती है। जलवायु के गर्म होने के कारण होने वाला वाष्पोत्सर्जन में वृद्धि बारिश में हुई वृद्धि के अच्छे प्रभावों को कम कर सकती है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा क्षेत्र में स्थायी भूजल संसाधनों को बनाए रखने के लिए भूजल की कमी को कम करना बहुत जरूरी है, भले ही बारिश में अपेक्षित वृद्धि हो, जो भूजल को रिचार्ज करने में मदद कर सकती है।
बारिश में वृद्धि के बावजूद, अत्यधिक भूजल निकाले जाने के कारण कुएं सूख सकते हैं या जल स्तर गिर सकता है। इसके अलावा गहराई में भूजल की पंपिंग से जुड़े खर्चो की जानकारी से भूजल के बेहतर उपयोग और प्रबंधन के तरीकों के बारे में जानकारी मिल सकती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बारिश में कमी और भूजल निकासी के लिए ट्यूबवेलों की संख्या में तेजी से वृद्धि के कारण भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है, जिसके कारण उत्तर भारत में भूजल में भारी कमी आई है।
उत्तर और मध्य भारत में भूजल का उपयोग मुख्य रूप से मॉनसून से पहले और बाद के मौसम में धान और गेहूं की फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है।
अध्ययन के अनुसार, दक्षिण भारत में भूजल भंडारण में हाल ही में हुई वृद्धि का श्रेय मॉनसून के मौसम में हुई बारिश को दिया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि भूजल में कमी की सीमा अभी तक स्पष्ट नहीं है, हालांकि गहरे भूजल संसाधनों की कमी के कारण पानी को पंप करना आर्थिक रूप से सही नहीं है।
फसलों को उगाने या कम पानी की जरूरत वाले फसलों की खेती करने तथा सिंचाई में पानी के उपयोग में सुधार करना फायदेमंद हो सकता है।