जल

उत्तराखंड के एक नहीं पांच जिलों में है भीषण जल संकट

उत्तराखंड जल संस्थान की रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल राज्य के 500 जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं।

Trilochan Bhatt

केन्द्र सरकार ने देशभर के 256 जिलों को सबसे ज्यादा जल संकट वाले मानते हुए इन जिलों में जलशक्ति अभियान शुरू किया है। यह अभियान 1 जुलाई को शुरू हो गया है और 15 सितम्बर तक चलेगा। अभियान के तहत हर जिले का एक प्रभारी होगा, जो सचिव अथवा अतिरिक्त सचिव स्तर का अधिकारी होगा। जिला प्रशासन की ओर से दो सदस्य इस टीम में शामिल होंगे। यह टीम संकटग्रस्त जिलों से सबसे ज्यादा संकटग्रस्त ब्लाॅकों में जाकर पानी की स्थिति का अध्ययन करेगी और हालात सुधारने की दिशा में काम करेगी। शुक्रवार 5 जुलाई को अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने हर घर में पानी पहुंचाने की बात कहते हुए इस अभियान के लिए धनराशि आवंटित करने की घोषणा भी कर दी है।

देश के हिमालयी राज्यों में पेयजल की स्थिति लगातार खराब हो रही है। तमाम गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्टों के साथ स्वयं नीति आयोग की रिपोर्ट भी इस तरफ इशारा करती है। इसके बावजूद जल शक्ति अभियान में हिमालयी राज्यों के मात्र 13 जिलों को ही शामिल किया गया है। इनमें हिमालय प्रदेश के चार जिले शामिल हैं, जबकि अन्य हिमालयी राज्यों के एक-एक जिले को अभियान में शामिल किया गया है। हिमाचल प्रदेश के ऊना, सिरमौर, कांगड़ा और सोलन जिलों में अभियान का हिस्सा बनाया गया है। जम्मू और कश्मीर के कारगिल, मणिपुर के चंदेल, मिजोरम के सैहा, सिक्किम में दक्षिण सिक्किम, मेघालय के पूर्वी गारो हिल्स, नागालैंड के लोंगडेंग, अरुणाचल प्रदेश के सुबानसिरी, त्रिपुरा के खोवई और उत्तराखंड के नैनीताल जिलों को इस योजना में शामिल किया गया। खास बात यह है कि उत्तराखंड की आबादी हिमालय प्रदेश के मुकाबले अधिक होने और तमाम रिपोर्टों में उत्तराखंड को हिमाचल प्रदेश के मुकाबले अधिक जल संकट वाला राज्य चिन्हित किये जाने के बावजूद हिमाचल प्रदेश के चार और उत्तराखंड के मात्र एक जिले को अभियान में जोड़ा गया है। खुद नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में पिछले 300 वर्षों में 150 जलस्रोत सूख गये हैं। यानी हर साल औसतन दो जलस्रोत सूख रहे हैं। उत्तराखंड जल संस्थान की रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल राज्य के 500 जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं। राज्य की 512 पेयजल परियोजना में पानी की आपूर्ति में 50 से 90 प्रतिशत तक की कमी की बात भी कही गई है। 

जल संस्थान की रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि राज्य में जल संकट के मामले में नैनीताल के बजाय देहरादून और पौड़ी की स्थिति ज्यादा खराब है। जल संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार जलस्रोतों में पानी कम हो जाने के कारण जिन 512 पेयजल योजनाओं में पानी की आपूर्ति में 50 से 90 प्रतिशत तक गिरावट आई है, उनमें सबसे ज्यादा 185 योजनाएं पौड़ी जिले में हैं। नैनीताल में ऐसी योजनाओं की संख्या 25 है। इसके अलावा जल संस्थान ने राज्य में सबसे अधिक जल संकट वाले 1544 क्षेत्र चिन्हित किये हैं, इनमें सबसे ज्यादा 391 क्षेत्र देहरादून जिले में हैं। नैनीताल जिले में ऐसे क्षेत्रोें की संख्या 240 आंकी गई है। टिहरी में 169, अल्मोड़ा में 179, पौड़ी में 112, पिथौरागढ़ में 82, चंपावत में 78, रुद्रप्रयाग में 67, चमोली में 60, उत्तरकाशी में 57, हरिद्वार में 46, बागेश्वर में 37 और ऊधमसिंह नगर जिले में 26 क्षेत्रों को अत्यधिक जल संकट वाले क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है।

पाणी राखो सहित विभिन्न पर्यावरण आंदोलन से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी कहते हैं कि जल शक्ति अभियान में उत्तराखंड के केवल एक जिले को शामिल किया जाना अफसोसजनक है। वे कहते हैं कि सम्पूर्ण उत्तराखंड पानी के संकट से गुजर रहा है। तमाम नदियों का उद्गम स्थल होने के बावजूद पहाड़ों के कई गांव बूंद-बूंद पानी के लिए तरह रहे हैैं। जंगलों के कटान, भू-उपयोग में बदलाव और सड़कों के चैड़ीकरण जैसे कार्यों से जलस्रोत लगातार सूख रहे हैं, ऐसे में जल शक्ति अभियान में राज्य के केवल एक जिले को शामिल करना तर्कसंगत नहीं है। वे कहते हैं कि राज्य के कम से कम पांच जिले इस अभियान में शामिल किये जाने चाहिए।

हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी मसलों पर काम करने वाली संस्था गति फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि जल शक्ति अभियान में हिमालयी राज्यों को ज्यादा तरजीह मिलनी चाहिए, क्योंकि हिमालयी राज्यों में भरपूर पानी रहने का सीधा अर्थ यह है कि यहां से गुजरने वाली नदियों में भरपूर पानी होगा, जिससे इन नदियों के तटवर्ती मैदानी क्षेत्रों को भी लाभ मिलेगा। अनूप नौटियाल हिमाचल प्रदेश के चार जिलों को इस अभियान में शािमल किये जाने को अच्छा फैसला बताते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि उत्तराखंड की स्थिति हिमाचल प्रदेश से ज्यादा खराब है और जनसंख्या हिमाचल प्रदेश से ज्यादा है। ऐसी स्थिति में उत्तराखंड के भी कम से चार जिलों को अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। वे हिमाचल  प्रदेश से ज्यादा जनसंख्या वाले जम्मू और कश्मीर तथा असम के भी ज्यादा जिलों को अभियान में शामिल करने की जरूरत बताते हैं।