जल

अत्यधिक दोहन और कुप्रबंधन के चलते पश्चिम बंगाल के कई जिलों में तेजी से गिर रहा भूजल का स्तर

Lalit Maurya

जल जीवन है, लेकिन जिस तरह से देश में इसका दोहन और कुप्रबंधन किया जा रहा है, उसके आने वाले वक्त में गंभीर परिणाम हो सकते हैं। आज सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई देश भी गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। भले ही हम इसके लिए जितना मर्जी अन्य कारणों को कोस ले, लेकिन सच यही है कि इस अमूल्य संसाधन की इस कमी के लिए हम मनुष्य ही जिम्मेवार हैं।

ऐसा ही कुछ गंगा बेसिन में भी देखने को मिला है जहां पश्चिम बंगाल के कई जिलों में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। इसकी वजह से पश्चिम बंगाल में गंभीर समस्याएं पैदा होनी शुरू हो गई हैं। यह जानकारी स्विचऑन फाउंडेशन द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट में जारी आंकड़ों से पता चला है कि जहां कि पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में भूजल 2.53 मीटर मतलब की औसत से 27.8 फीसदी तक गिर गया है। वहीं कोलकाता में 2.12 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है, जोकि औसत से 18.6 फीसदी कम है। इसी तरह पुरबा मिदनापुर जिले में भी भूजल में 2.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जहां भूजल औसत से 0.29 मीटर नीचे चला गया है।

कोलकाता के जलस्तर में 44 फीसदी तक की आ सकती है गिरावट

गौरतलब है कि भूजल के औसत स्तर की गणना पिछले पांच वर्षों (2017 से 2021) में भूजल में आए उतार-चढ़ाव पर आधारित है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 2025 तक कोलकाता के जल स्तर में 44 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

देखा जाए तो इन तीन जिलों में भूजल का निरंतर अनियंत्रित दोहन किया जा रहा है। ऐसे में हर साल हो रही बारिश भी भूजल के स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि भूजल में आती गिरावट से उन क्षेत्रों में जो मीठे पानी के लिए भूजल पर निर्भर हैं, पानी की उपलब्धता कम हो रही है। इससे इसके लिए आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और पहले ही सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों में स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर हो रही है।

यह अध्ययन केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2017 से 2021 के भूजल के स्तर से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है, जो मानसून से पहले रिकॉर्ड किए गए थे। इन आंकड़ों का उपयोग पश्चिम बंगाल के उन क्षेत्रों में भूजल की स्थिति को समझने के लिए किया गया है, जो गंगा बेसिन का हिस्सा हैं। इस अध्ययन में मुर्शिदाबाद, नदिया, बर्दवान, हुगली, हावड़ा, कोलकाता, दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना और पुरबा मेदिनीपुर जिले को शामिल किया गया था।

यह रिपोर्ट भूजल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है। पश्चिम बंगाल में भूमिगत जल के दोहन और उपयोग को विनियमित करने के साथ जल संरक्षण और जल उपयोग में दक्षता लाने की भी जरूरत है। इसके लिए नई तकनीकों के साथ पुरखों के ज्ञान की मदद ली जा सकती है।

जल संरक्षण के लिए कृषि के साथ-साथ लोगों को भी लाना होगा आदतों में बदलाव

इतना ही नहीं कृषि में भी बाजरा जैसी फसलों पर जोर दिया जाना जरूर है, जो पानी की कम से कम खपत करती है। साथ ही धान की स्वदेशी किस्मों को बढ़ावा देना भी फायदेमंद हो सकता है। रिपोर्ट ऐसी फसलों के स्थान पर जो सिंचाई के लिए बहुत ज्यादा पानी की खपत करती हैं उनके स्थान पर अन्य फसलों की पैदावार को बढ़ाने के लिए नीतियों लागू करने की सिफारिश करती है।  

इस बारे में स्विचऑन फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक और रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ता विनय जाजू का कहना है कि, “जिस तरह से भूजल घट रहा है, वह बहुत ही चिंताजनक है। हमारे पास तकनीकी समाधान मौजूद हैं।" उनके अनुसार लोगों में जागरूकता और आदतों में बदलाव लाने के साथ-साथ जल संरक्षण की दिशा में युद्धस्तर पर काम करना होगा।

साथ ही रिपोर्ट में भूजल के प्रभावी पुनर्भरण के लिए पारम्परिक आद्रभूमियों के संरक्षण की वकालत की गई है। साथ ही मानसून से पहले नदियों से गाद निकालना, तालाबों, टैंकों आदि की बहाली करना, नई कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण भूजल के गिरते स्तर को रोकने में मददगार हो सकता है।

इसके अलावा लोगों को भी अपनी आदतों में बदलाव करना होगा। रिपोर्ट में जहां एक तरफ पानी के शाश्वत उपयोग पर बल दिया है साथ ही कृषि और घरेलू क्षेत्र में होती पानी की बर्बादी को कम करने की बात कही है। इसके लिए बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। रिपोर्ट में जल संरक्षण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया गया है। साथ ही मौजूदा नीतियों , नियमों और योजनाओं के आंकलन की बात कही है।