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महामारी के बावजूद देश में केवल 38 फीसदी लोग पांच या उससे ज्यादा बार धोते हैं हाथ

वैश्विक स्तर पर जहां 64 फीसदी महिलाओं दिन में पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोती या सैनिटाइजर का प्रयोग करती हैं, वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 52 फीसदी ही है

Lalit Maurya

एक तरफ जहां कोरोना महामारी से बचने के लिए सामाजिक दूरी और साफ सफाई पर जोर दिया जा रहा है जिसमें बार-बार हाथ धोना भी शामिल है, पर दूसरी तरफ देश में स्थिति ऐसी है कि अभी भी केवल 38 फीसदी लोग पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोते हैं| यह जानकारी अमेरिका की एक पोलिंग एजेंसी गैलप द्वारा किए सर्वेक्षण में सामने आई है|

सर्वेक्षण के अनुसार भारत दुनिया के उन 10 देशों में शामिल हैं जहां सबसे कम आबादी पांच बार या उससे ज्यादा बार पानी या साबुन से हाथ धोती है या फिर सैनिटाइजर का इस्तेमाल करती है| वहीं आधी से ज्यादा आबादी अभी भी चार या उससे कम बार जबकि 20 फीसदी आबादी दो या उससे कम बार हाथ धोती है या फिर सैनिटाइजर का प्रयोग करती है|

यह पूछे जाने पर कि पिछले दिन उन्होंने कितनी बार अपने हाथ धोए या हैंड सैनिटाइज़र का इस्तेमाल किया तो करीब दुनिया की 58 फीसदी व्यस्क आबादी ने माना था कि उन्होंने पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोए थे या फिर सैनिटाइज़र का इस्तेमाल किया था| जबकि सिर्फ दो फीसदी लोगों ने कहा था कि उन्होंने एक बार भी हाथ नहीं धोया था| हालांकि देखने में यह आंकड़ा बहुत छोटा लगे, पर यदि इसे कुल आबादी के आधार पर देखें तो यह करीब 8.6 करोड़ होगा|

इस आधार पर देखा जाए तो दुनिया में अभी भी काफी असमानता है| एक तरफ डेनमार्क और नॉर्वे जैसे देश हैं जहां 94 फीसदी लोग पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोते या सैनिटाइज़र का उपयोग करते हैं, वहीं माली जैसे देशों में यह आंकड़ा केवल 21 फीसदी ही है|

जिन देशों में सबसे ज्यादा आबादी कम बार हाथ धोती हैं उनमें से ज्यादातर देश एशिया और अफ्रीका में हैं| इन देशों में अभी भी एक बड़ी आबादी साफ पानी और हाथ धोने की बुनियादी सुविधाओं से दूर है| कई देश तो ऐसे हैं जहां आज भी साफ़ पानी के लिए घंटों चलना पड़ता है| यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो दुनिया के करीब 300 करोड़ लोग अभी भी हाथ धोने सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं जैसे, पानी, साबुन की पहुंच से दूर हैं| वहीं दुनिया की हर तीन में से एक स्वास्थ्य केंद्रों में हाथ धोने की व्यवस्था नहीं है|

उदाहरण के लिए माली को ले लीजिए जहां की कुल आबादी करीब 2 करोड़ है जिनमें से करीब 90 लाख के पास स्वच्छता सम्बन्धी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं| इसी तरह सेनेगल में जहां 24 फीसदी आबादी दिन में पांच बार हाथ धोती है वहां रहने वाले करीब 1.2 करोड़ लोग स्वच्छता सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं| हाल ही में भारत में हाथ धोने के लेकर चार राज्यों में किए एक अध्ययन में 33 फीसदी लोगों ने हाथ न धोने के लिए पानी की कमी को जिम्मेवार माना था|

पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा धोती हैं हाथ

सर्वे के अनुसार दुनिया में पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाएं पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोती हैं| जहां 64 फीसदी महिलाओं दिन में पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोती या सैनिटाइजर का प्रयोग करती हैं, वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 52 फीसदी ही है|

साथ ही लोगों की इस आदत पर शिक्षा का भी असर देखा गया था| जिन लोगों ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी| उनमें से करीब 48 फीसद पांच या ज्यादा बार हाथ धोते थे जबकि जिन लोगों ने स्नातक या उससे ज्यादा शिक्षा प्राप्त की थी उनमें 73 फीसदी लोगों ने माना था कि वो पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोते हैं| इसी तरह शहरी क्षेत्रों के करीब 63 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 54 फीसदी लोगों ने माना था कि वो दिन में पांच या उससे ज्यादा बार हाथ धोते हैं|

कोरोना महामारी से पहले भी हाथ न धोना, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एक बड़ी समस्या था| जिससे संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है| इस महामारी के बाद तो यह आदत बहुत मायने रखती है| आज जिस तरह से दुनिया में यह महामारी फैल चुकी है उससे बचने के लिए स्वच्छता की भी अहम भूमिका है|

दुनिया के भारत जैसे कई देशों में जहां हाथ धोने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता वहां स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी सेवाएं पहले से ही बहुत खस्ता हाल हैं| ऐसे में स्वच्छता से दूरी हमें इन बीमारियों के और करीब ले जाती है| साथ ही बीमारियों के प्रसार को रोकना और मुश्किल हो जाता है| ऐसे में कोरोना जैसी महामारियों से निपटने के लिए जरुरी है कि उससे बचने के लिए हाथ धोने जैसी बुनियादी चीजों पर भी गौर किया जाए|