जल

आवरण कथा: खात्मे की ओर बढ़ रहा है भूजल?

एक साल में जितना पानी जमीन के भीतर पहुंचाया जा रहा है, उसमें से 62 प्रतिशत पानी निकाला जा रहा है। पांच राज्यों में निकासी का स्तर 100 फीसदी से अधिक हो गया है

Vivek Mishra, Raju Sajwan, Anil Ashwani Sharma

एक ओर जहां भूजल में नाइट्रेट जैसे प्रदूषक बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दुनियाभर में भूजल पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। चूंकि भूजल की गुणवत्ता सामान्य तौर पर अच्छी होती है और भूजल को बिना ट्रीटमेंट के पिया जा सकता है, इसलिए इसका इस्तेमाल खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहा है। यही वजह है कि विश्व जल दिवस 2022 के मौके पर 21 मार्च को जारी यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2022 में भूजल के इस्तेमाल के लिए एक टिकाऊ मॉडल बनाने की वकालत की गई, ताकि भूजल का इस्तेमाल एक तय सीमा में हो।

इस रिपोर्ट के मुताबिक भूजल की सबसे ज्यादा निकासी करने वाले 10 देशों में एशिया के आठ देश शामिल हैं। और सबसे ऊपर भारत का नंबर है। यानी भारत सबसे अधिक भूजल पर निर्भर है। कुल भूजल खपत में 75 फीसदी हिस्सेदारी इन 10 देशों की है। सूची में एशिया से भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हैं। जबकि अमेरिका और मेक्सिको भी अत्यधिक भूजल दोहन करने वाले देश हैं। भारत में सालाना लगभग 251 घन किलोमीटर भूजल की निकासी की जाती है, जबकि अमेरिका 111.7 घन किमी प्रति वर्ष, चीन 112 घन किमी प्रति वर्ष और पाकिस्तान 64.8 घन किमी प्रति वर्ष भूजल निकालता है।

भूजल का सबसे अधिक उपयोग कृषि में किया जा रहा है। रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में जितना भूजल का उपयोग किया जा रहा है, उसमें लगभग 69 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में किया जा रहा है, जबकि 22 प्रतिशत घरेलू और नौ प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल उद्योगों में किया जा रहा है। इस मामले में भी भारत ने दुनिया के दूसरे देशों को पीछे छोड़ दिया है। भारत कृषि के लिए प्रति वर्ष कुल भूजल का 89 प्रतिशत उपयोग करता है- जो दुनिया में सबसे अधिक है।

भारत के साथ दिक्कत यह भी है कि यहां भूजल उपयोग सबसे अधिक होने के बावजूद पुनर्भरण (रिचार्ज) की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे देश में भूजल की उपलब्धता भी घटती जा रही है। केंद्रीय भूजल आयोग द्वारा जून 2021 में प्रकाशित रिपोर्ट डायनमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया, 2020 के मुताबिक सालाना कुल भूजल रिचार्ज (पुनर्भरण) 436.15 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) किया गया, जबकि सालाना भूजल निकासी 244.92 बीसीएम की गई। इस तरह भूजल निकासी का स्तर 61.6 प्रतिशत रहा। इसका अर्थ है कि जितना पानी धरती में पहुंचाया गया, उसके मुकाबले 61.6 प्रतिशत पानी हम लोगों ने जमीन से निकाल लिया। यह स्तर लगातार बढ़ रहा है। 2004 में निकासी का स्तर 58 प्रतिशत था (देखें, बचत या खर्च)।



डार्क जोन

भारत का कुल क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किलोमीटर है और दुनिया की लगभग 16 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है, लेकिन यहां केवल 4 प्रतिशत साफ पानी के स्त्रोत ही उपलब्ध हैं। भूजल आयोग की डायनमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया, 2020 में कहा गया है कि देश में सालाना निकासी लायक भूजल की मात्रा 397.62 बीसीएम थी। हालांकि यह मात्रा साल दर साल बदलती रहती है, लेकिन लगभग सात साल पहले यानी 2013 में 411 बीसीएम था। केंद्रीय भूजल आयोग से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक दुर्जोय चक्रवती कहते हैं कि एक साल में जितना भूजल रिचार्ज हुआ, उसमें से एक हिस्सा बह जाता है (जिसे प्राकृतिक प्रवाह कहा जाता है) बाकी बचे पानी को निकासी लायक भूजल माना जाता है।

भारत के लिए सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में भूजल का दोहन 100 प्रतिशत से भी अधिक किया जा रहा है। इसका मतलब है कि इन राज्यों में जितना पानी जमीन के नीचे पहुंचा जा रहा है, उससे कहीं अधिक पानी निकाला जा रहा है। पूरे देश में भूजल निकासी का स्तर 2004 में 58 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 63 प्रतिशत हो गया, जबकि 2004 में 71 प्रतिशत ब्लॉक सुरक्षित जोन में थे, 2020 में यह घटकर 64 प्रतिशत रह गए। दरअसल केंद्रीय भूजल आयोग ने देश को कुल 6,965 असेसमेंट यूनिट में बांटा हुआ है। ये यूनिट देश के लगभग प्रत्येक ब्लॉक में स्थापित की गई हैं। अति दोहन वाले ब्लॉक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में अधिक हैं (देखें, गहराता संकट,)।



पंजाब-हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक भूजल दोहन होता है। दिसंबर 2021 में शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में रखी गई भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में बताया गया कि पंजाब में 80 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का अतिदोहन (100 फीसदी से अधिक) हो रहा है, जबकि हरियाणा में लगभग 65 फीसदी ब्लॉक में भूजल का अतिदोहन हो रहा है। इन दोनों राज्यों में हरित क्रांति के बाद धान और गेहूं की फसल का रकबा बढ़ने के बाद भूजल स्तर तेजी से गिरा है। हरियाणा के करनाल जिले के असंध ब्लॉक का गांव अरडाना राज्य के उन गांवों में शामिल हैं, जिसे लाल सूची में डाल दिया गया है।

हरियाणा जल संसाधन (संरक्षण, नियमन और प्रबंधन) प्राधिकरण की ओर से यह सूची जारी की गई है। इस गांव का भूजल 40 मीटर (लगभग 132 फुट) से नीचे चला गया है। हालांकि डाउन टू अर्थ ने मार्च 2022 में जब इस गांव का दौरा किया तो ग्रामीणों का कहना था कि उनके गांव में भूजल 5-6 साल पहले ही 200 फुट से नीचे चला गया था। बल्कि कुछ किसानांे ने मीठे पानी के लिए 1,000 फुट गहरे ट्यूबवेल लगा लिए हैं। ग्रामीणों को पता है कि उनके द्वारा धान और गेहूं की खेती के कारण भूजल नीचे जा रहा है, लेकिन उनका तर्क है कि वे धान-गेहूं की खेती इसलिए नहीं छोड़ सकते, क्योंकि दूसरी फसलें लगाने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। दुर्जोय चक्रवर्ती हरियाणा में खारे पानी की बढ़ती समस्या का कारण भूजल के अतिदोहन को मानते हैं।



दरअसल, भूजल प्रबंधन को लेकर कोई ठोस उपाय भी नहीं किए जा रहे हैं। भूजल विनियमन पर वर्तमान में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। हालांकि, एक ब्रिटिश-युग का कानून है, जिसे इंडियन इजमेंट एक्ट, 1882 कहा जाता है, जो जमींदारों को अपनी सीमा के भीतर भूमि के नीचे के सभी पानी को एकत्रित और निपटान करने का अधिकार देता है। पानी राज्यों का विषय है और राज्य सरकारें ही इसे विनियमित और प्रबंधित करने की जिम्मेवार है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने 2005 में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भूजल के नियमन और विकास के लिए एक मॉडल विधेयक जारी कर अपील की कि राज्य में भूजल प्रबंधन कानून लागू किया जाए, लेकिन कैग रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2019 तक देश के 19 राज्यों में कानून बनाया गया था। लेकिन सिर्फ चार राज्यों में ये कानून आंशिक तौर पर लागू हो पाया। बाकी राज्यों में या तो कानून बना नहीं या फिर लागू नहीं हो पाया।

केंद्र की ओर से 2012 से 2017 के बीच 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत “भूजल प्रबंधन और विनियमन” के लिए 3,319 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। 2017 से 2020 के लिए भी योजना जारी रही और 2,349 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। लेकिन इसमें से 1,109 करोड़ रुपए यानी करीब आधा बजट ही खर्च हो पाया। कैग ने एक बड़ा सवाल उठते हुए कहा कि स्थानीय समुदायों के जल प्रबंधन तरीकों को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया गया। अगर ऐसा होता तो भूजल का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं।