जल

भूमि उपयोग में बदलाव से घट रही पानी की गुणवत्ता, पानी निकासी में सालाना 69% वृद्धि का अनुमान

Dayanidhi

दुनिया भर में भूमि उपयोग के बदलते पैटर्न से बाढ़, सूखे और अपवाह सहित हाइड्रोलॉजिकल बदलाव होते हैं। मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में पर्यावरण संरक्षण के प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता टिमोथी रणधीर कहते हैं, हम सभी एक वाटरशेड में रहते हैं। हम लगातार अपने परिदृश्य को बदल रहे हैं, जो कभी जंगल हुआ करते थे उन्हें सड़कों, पार्किंग स्थल आदि में तब्दील कर रहे हैं।  

हम उस परिदृश्य को बदल रहे हैं जो कभी हाइड्रोलॉजिकल रूप से लचीला था जो पानी को नीचे की ओर धकेलता है। यह अध्ययन मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है।

लेकिन भूमि उपयोग में बदलाव और हाइड्रोलॉजिकल चक्र में परिवर्तन के बीच के जटिल संबंधों को देखना मुश्किल हो सकता है। उदाहरण के लिए, मैसाचुसेट्स के अधिकांश हस्से अब विपरीत परिस्थिति के अधीन है, जिसमें गर्मी में सूखा और वसंत बाढ़ के बाद आता है।  

निश्चित रूप से यदि राज्य भर के कस्बों में सड़कों पर बाढ़ के लिए पर्याप्त अतिरिक्त पानी है तो पीने, बगीचे में पानी देने और धाराओं और झीलों के स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त भूजल बचा होना चाहिए?

रणधीर कहते हैं, बारिश की हर बूंद के गिरने के दो रास्ते होते हैं। यह या तो भूमि से एक धारा में बह सकता है, या यह मिट्टी में घुसपैठ कर सकता है और धीरे-धीरे पानी के स्तर तक पहुंच सकता है।

लेकिन भूमि के बड़े हिस्से को पक्का करके, दलदलों और आर्द्र भूमि का अस्तित्व मिटा करके, नदियों को चैनलाइज़ करके, हमने बारिश के लिए मिट्टी में घुसना कहीं अधिक कठिन बना दिया है, जिससे सूखे की आशंका बढ़ गई है। साथ ही, वह सारा पानी नदियों में बह जाता है।

भूमि उपयोग और हाइड्रोलॉजिकल प्रभाव के बीच संबंधों को दिखाई देने योग्य बनाने के लिए और भविष्य में इन प्रभावों पर गौर करने के लिए, रणधीर और शोधकर्ता अम्मारा तालिब ने पूर्वी मैसाचुसेट्स में सडबरी-एस्बेट और कॉनकॉर्ड वाटरशेड पर अध्ययन किया।

इस जोड़ी ने बदलते भूमि-उपयोग का वर्णन करते हुए ऐतिहासिक आंकड़ों को एक मॉडल में बदल दिया, जिसने वर्ष 2035, 2065 और 2100 के रुझानों का अनुमान लगाया। टीम ने फिर भूमि-उपयोग मॉडल के परिणामों को हाइड्रोलॉजिकल सिमुलेशन प्रोग्राम-फोरट्रान नामक हाइड्रोलॉजिकल मॉडल में डाला। 

उन्होंने जो पाया कि 2100 तक, कुल वन क्षेत्र 51 फीसदी तक कम हो जाएगा और सड़कें और पार्किंग स्थल आदि 75 फीसदी बढ़ जाएंगे। इन बदलावों  से वार्षिक धारा प्रवाह में तीन फीसदी की वृद्धि होगी, जबकि अपवाह में सालाना 69 फीसदी की भारी वृद्धि होगी।

इस सभी बढ़े हुए अपवाह का अर्थ होगा पानी में अधिक ऊपरी मिट्टी और अन्य ठोस की 54 फीसदी तक की वृद्धि होगी और जिसमें फॉस्फोरस 12 फीसदी और नाइट्रोजन की मात्रा में 13 फीसदी तक की वृद्धि होगी। रणधीर ने कहा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए।

रणधीर कहते हैं, हम वाटरशेड के आधार पर भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं, शहरी नियोजन जो टिकाऊ और विशेष जगह संबंधी, भूमि-उपयोग के उपायों के लिए सबसे अच्छे तरीकों को लागू करने में मदद कर सकता है। इनमें वर्षा उद्यान बनाना, बड़े पार्किंग स्थल में फुटपाथ का उपयोग करना और अपवाह को धीमा करने के लिए वनस्पतियों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।

रणधीर ने कहा, वाटरशेड परिदृश्य के स्वास्थ्य का एक अहम स्वरूप है। किसी विशेष परिदृश्य में जीवन की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि वाटरशेड कैसे काम कर रहा है। यह अध्ययन पीएलओएस वाटर पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।