भूजल पर निर्भर 21 फीसदी पारिस्थितिकी तंत्र किसी न किसी स्तर पर संरक्षित हैं, बहुत कम पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावी रूप से संरक्षित हैं जहां कानून मौजूद हैं।  फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, बॉब पीटरसन
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भूजल में गिरावट के कारण जैव विविधता और जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना कठिन: शोध

शोध से पता चलता है कि 53 फीसदी पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे इलाकों में हैं जहां भूजल की भारी कमी है, जबकि मात्र 21 फीसदी संरक्षित भूमि या ऐसे क्षेत्रों में मौजूद हैं जहां उनकी सुरक्षा के लिए नीतियां मौजूद हैं।

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन और लोगों के द्वारा पानी के अति उपयोग के कारण दुनिया भर में भूजल स्तर तेजी से कम हो रहा है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्हें इस बात को लकेर सही आंकड़ों की आवश्यकता है कि ये भूजल और इसपर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र कहां-कहां मौजूद हैं।

अब, एक नए अध्ययन के माध्यम से दुनिया भर में शुष्क भूमि वाले इलाकों में इन पारिस्थितिकी प्रणालियों का मानचित्रण किया गया है। साथ ही उनकी सुरक्षा की स्थिति की जांच पड़ताल और इस बात का पता भी लगाया जा रहा है कि वे मानवजनित कारणों से किस तरह गायब हो रहे हैं।

नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि यह पहली बार है जब दुनिया भर में भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी प्रणालियों का मानचित्रण किया गया है। द नेचर कंजर्वेंसी और डेजर्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (डीआरआई) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में, दुनिया के अलग-अलग देशों के शोधकर्ताओं ने इस पर सहयोग किया है।

शोध के परिणामों से पता चलता है कि इनमें से 53 फीसदी पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे इलाकों में हैं जहां भूजल की भारी कमी है, जबकि केवल 21 फीसदी संरक्षित भूमि या ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां उनकी सुरक्षा के लिए नीतियां मौजूद हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, अब तक, इन पारिस्थितिकी तंत्रों का स्थान काफी हद तक अज्ञात रहा है, जिससे प्रभावों का पता लगाने, सुरक्षात्मक नीतियां स्थापित करने और उनकी सुरक्षा के लिए संरक्षण परियोजनाओं को लागू करने की हमारी क्षमता ना काफी रही है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा कि भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र रेगिस्तानी झरनों से लेकर पहाड़ी घास के मैदानों और नदियों, तटीय आर्द्रभूमि और जंगलों तक अलग-अलग हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र अक्सर दुनिया भर में जैविक विविधता के लिए हॉट स्पॉट होते हैं और जलवायु परिवर्तन और बढ़ते मानवजनित कारणों से इनको होने वाले खतरों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

शोधकर्ता ने आंकड़ों की कमी का हवाला दिया, जिसने उन्हें मानचित्रण करने के प्रयास के लिए प्रेरित किया। ये पारिस्थितिकी तंत्र उन जगहों को शामिल करते हैं जिनकी हम वास्तव में परवाह करते हैं, लेकिन भूजल पर उनकी निर्भरता को अनदेखा किया गया है।

भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र के विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए शोध

शोधकर्ताओं ने शोध के माध्यम से बताया कि उन्होंने लैंडसैट उपग्रह से छह साल के आंकड़े एकत्र किए। जिसका उपयोग पत्ती जल सामग्री, वाष्पोत्सर्जन, वनस्पति हरियाली, सतही पानी और भूमि के तापमान और जलवायु के आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है, जो पानी की उपलब्धता को दर्शाता है। फिर उन्होंने उपग्रह के आंकड़ों के आधार पर उन्हें पहचानने के लिए कंप्यूटर मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र वाली जगहों के 30 हजार से अधिक डेटा बिंदुओं का उपयोग किया।

शोध के अनुसार, विश्लेषण से इस बात का फायदा उठाया गया कि भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र शुष्क मौसम के दौरान अन्य स्थानों की तुलना में अधिक हरा-भरा, ठंडा और नम रहेगा और इसे उपग्रह चित्रों की मदद से देखा जा सकता है।

शोध में कहा गया है कि जिस तरह से भूजल जमीन की सतह को ठंडा करता है, वह उन कई तरीकों में से एक है जिससे ये पारिस्थितिकी प्रणालियां पौधों और जानवरों को आश्रय प्रदान करती हैं।

शोधकर्ताओं ने भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी प्रणालियों की पहचान करने के लिए कंप्यूटर मॉडल की क्षमता का परीक्षण करके लगभग 87 फीसदी तक की सटीकता हासिल कर अनुमान लगाया।

मानचित्र का उद्देश्य इसे एक शुरुआती बिंदु के रूप में उपयोग करना है। यह इस बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करता है कि वे कहां स्थित हैं और भूजल की कमी के सबसे अधिक खतरे में हैं, ताकि इन जैविक रूप से विविध पारिस्थितिकी प्रणालियों और उन पर निर्भर रहने वालों की सुरक्षा को आगे बढ़ा सकें।

मानचित्र से पता चलता है कि ये पारिस्थितिकी तंत्र मध्य एशिया, अफ्रीका के साहेल क्षेत्र और दक्षिण अमेरिका में अधिक व्यापक हैं, जहां चरवाहे आम हैं। यह दुनिया के उन हिस्सों में उनकी कमी और विखंडन के विपरीत है जहां भूजल पंपिंग और कृषि सिंचाई का बोलबाला है, जैसे कि उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया।

संरक्षण चुनौतियों पर काबू पाना

ग्रामीण आजीविका को सहारा देने में इन पारिस्थितिकी प्रणालियों की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए, अध्ययन ने अफ्रीका के ग्रेटर साहेल क्षेत्र पर भी गौर किया, जहां चार संघर्ष हॉटस्पॉट उन स्थानों के साथ आपस में मिले होते हैं जहां भूजल पर निर्भर पारिस्थितिकी प्रणालियों की संख्या अधिक है।

जलवायु परिवर्तन इन स्थानों में खाद्य असुरक्षा को बढ़ा रहा है, जिसके कारण पहले चरागाह रही भूमि पर अब खेती का विस्तार हो रहा है, जो जलवायु परिवर्तन और भूमि और जल संरक्षण प्रयासों की जटिल क्रियाओं को पहचानने के महत्व को सामने लाता है। इन पारिस्थितिकी तंत्रों का चरवाहों की ग्रामीण आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

शोध में कहा गया है, जबकि कुछ इलाकों में स्थायी भूजल प्रबंधन नीतियां राजनीतिक रूप से व्यवहार्य हो सकती हैं, लेकिन ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने या संघर्ष को कम करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने वाली मानवीय सहायता अन्य क्षेत्रों में अधिक उपयुक्त हो सकती है। इन पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के लिए रचनात्मक समाधान की आवश्यकता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप दुनिया में कहां हैं।

भूजल पर निर्भर 21 फीसदी पारिस्थितिकी तंत्र किसी न किसी स्तर पर संरक्षित हैं, बहुत कम पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावी रूप से संरक्षित हैं जहां कानून मौजूद हैं। भूजल किस तरह से पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए जरूरी है, इसकी बेहतर समझ के बिना, संरक्षित भूमि भी कमजोर हो सकती है यदि संरक्षित सीमाओं के बाहर अत्यधिक उपयोग के कारण भूजल नष्ट हो जाता है।

शोध में कहा गया है कि भूजल कई पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण है। भूजल को इतनी अधिक दर से निकाला जा रहा है कि उसे दोबारा भरा नहीं जा सकता। हम पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को रोकने के लिए आवश्यक सीमा तक इसका प्रबंधन नहीं कर रहे हैं। यदि हम दुनिया भर में जैव विविधता लक्ष्यों और अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें भूजल और पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संबंध जोड़ने होंगे है।