राजस्थान के ब्यावर जिला के गांव बर में खेत लहलहा रहे हैं, क्योंकि इस बार बहुत ज्यादा बारिश ने पानी की कमी को दूर कर दिया। फोटो: अनिल अश्विनी शर्मा 
जल

बूंद-बूंद बचत, भाग-दो: एनीकट पहुंचा बारिश का पानी तो पूजा के लिए दौड़े लोग

राजस्थान के ब्यावर जिले के गांव बर में लोगों ने बारिश के पानी इतना सहेज कर रख लिया है कि अगले छह माह तक उन्हें पानी की दिक्कत नहीं होगी

Anil Ashwani Sharma

पश्चिमी राजस्थानी के जिले स्वभाव से सूखे और रेगिस्तानी होते हैं, लेकिन मॉनसून 2023 के पहले दो महीनों मई-जून में इन जिलों में जबरदस्त बारिश हुई। पश्चिमी राजस्थान के कुल दस जिलों में राज्य में होने वाली कुल वर्षा से डेढ़ गुना अधिक बरसात हुई। यह बीते 100 सालों में सर्वाधिक वर्षा का रिकॉर्ड है, जिसने ग्रामीणों के लिए वर्षा जल संचय की संभावनाओं के असीम द्वार खोल दिए हैं। ग्रामीणों ने इस वर्षा जल को कितना सहेजा यह जानने के लिए अनिल अश्विनी शर्मा ने राज्य के चार जिलों के 8 गांव का दौरा किया और देखा कि कैसे ये जिले अप्रत्याशित वर्षा की चुनौतियों को अवसर में बदल रहे हैं। पहली कड़ी में अपना पढ़ा ब्यावर जिले के सेंदरा गांव का हाल , आज पढ़ें दूसरी कड़ी - 

ब्यावर जिले के बर गांव को वर्षा जल संचय करने में महारत हासिल है। इसीलिए इसे जिले में एक आदर्श गांव की संज्ञा मिली हुई है। मई-जून 2023 की ढाई गुना से अधिक बारिश (सामान्य वर्षा 218 मिमी और इस बार हुई 588.9 मिमी) ने गांव में ग्रामीणों की मदद से बना पहला एनीकट (पहाड़ियों से आने वाले पानी को रोक कर बना तालाब) न केवल भर गया, बल्कि उसके ऊपर से पानी निकल रहा है।

ग्रामीणों ने इस अवसर पर एनीकट की पूजा-अर्चना कर उत्सव मनाया। उत्सव में शामिल रहे महेंद्र कुमार ने कहा, “जल ही जीवन है इसलिए हम इसकी आराधना करने में पीछे नहीं रहते।” गांव में सैकड़ों सालों की यह परंपरा रही है कि जब भी कोई जल संरचना लबालब हो जाती है तब सभी गांव वाले मिलकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।

गांव में कुल 4 एनीकट हैं। अतिवृष्टि के कारण पहली बार 3 एनीकट पूरी तरह से भर गए हैं, चौथे में अभी पानी धीरे-धीरे आ रहा है। एक एनीकट में पानी की क्षमता 0.5 करोड़ लीटर की है। एनीकट में पानी जमा होने का नतीजा है कि गांव के खेतों में बने 1,345 कुएं रिचार्ज हो गए हैं। 60 फीट गहरे कुओं में 45 फुट पानी आ चुका है।

इसके अलावा घरों में बने 1,665 कुओं में भी पानी 40 फीट तक भर चुका है। हालांकि यहां पानी कुओं के आगोर (कैचमेंट एरिया) के कारण भरा है। गांव में सावर्जनिक रूप से तीन टांकों की (क्षमता 20,000 लीटर) का निर्माण मनरेगा के माध्यम से किया गया है। चूंकि गांव में बने एनीकट से पानी ऊपर से निकल रहा है, ऐसे हालात में लगभग दो दर्जन से अधिक ग्रामीण एनीकट के आगोर को और बड़ा करने में जुटे हुए हैं। ताकि अधिक से अधिक पानी न केवल एकत्रित हो बल्कि अधिक से पानी जमीन के नीचे जा सके।

एनीकट की ऊंचाई तो वे 2 मीटर से ऊपर नहीं बढ़ा सकते हैं। क्योंकि यह अदालती आदेश है कि कोई भी एनीकट दो मीटर से अधिक ऊंचा नहीं बांध सकता। ध्यान रहे कि पहाड़ियों में ऊंचाई पर बसे गांवों के ग्रामीण पानी रोकने के लिए एनीकट अधिक ऊंचाई पर बना लेते थे।

इसके खिलाफ निचले इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों ने विरोध किया और यह मामला जोधपुर हाईकोर्ट में जा पहुंचा। इस संबंध में पर्यावरणीय जनहित याचिका दायर करने वाले एडवोकेट प्रेम सिंह ने बताया, “इस मामले में अदालत ने दो अगस्त 2004 को फैसला दिया कि हर हाल में एनीकट दो मीटर से ऊंची नहीं बनाया जा सकता है। इसके बाद निचले इलाकों के गांव वालों को भी पानी मिलना सुनिश्चित हुआ।”

गांव के खेतों में बने कुओं के आगोर को भी गांव वाले और बड़ा कर रहे हैं कि ताकि अभी जो बारिश आने वाली है, उसका पानी कुओं के आसपास की जमीन में चला जाए। इसके अलावा यदि कुआं में अधिक पानी आने से बाहर निकलने  लगता तो आगोर के आसपास मिट्टी की कच्ची छोटी मेड़ें तैयार कर दी गई हैं। ताकि पानी दूर न जा पाए बल्कि कुओं के आसपास की जमीन को ही रिचार्ज करे।

यह गांव अरावली की पहाड़ी पर बसा हुआ है। ऐसे में कई खेत पहाड़ियों से सटे हुए हैं। इन पहाड़ियों से अच्छा खासा पानी बहकर खेतों में आता है। अभी खेतों में बाजरा बोया हुआ है। खेतों में अधिक पानी न जाए इसके लिए किसानों ने खेतों के किनारे-किनारे एक से दो फिट ऊंचाई वाले छोटे-छोटे एनीकट बना दिए हैं। इस प्रकार के एनीकट की संख्या 480 है। इसके अलावा गांव वालों ने पक्षियों के लिए तीन नाड़ियां भी बनाई हुई है। इनमें पानी की क्षमता 15,000 लीटर है। अब ये पूरी तरह से भरी हुई हैं।

ध्यान रहे कि 1990 के दशक तक यहां बारिश ठीक हो जाया करती थी लेकिन इसके बाद यहां जंगल तेजी से कटे और अरावली को बेशुमार खनन इकाइयों ने बुरी तरह से काट डाला। ऐसे में यहां मानसून की हवाएं रुक नहीं पातीं।

इस संबंध में राजस्थान विश्वविद्यालय में इंदिरा गांधी मानव पारिस्थितिक पर्यावरण एवं जनसंख्या अध्ययन केंद्र के पूर्व निदेशक प्रोफेसर टी.आई. खान कहते हैं, “राजस्थान में मानूसनी हवाओं के न रुकने का एक बड़ा कारण अरावली की पहाड़ी से छेड़खानी है। अरावली में इस समय कुल 12 कटान (गैप) आ गए हैं। ये कटान कोई एक-दो किलोमीटर के नहीं बल्कि 10 से 12 किलोमीटर लंबे हैं। इन कटानों ने पारिस्थितिकी के लिए प्रतिकूल हालात बना दिए हैं।” 

गांव में वर्षा जल संचय संरचनाओं के रूप में तीन एनीकट (एक जन सहयोग से, दूसरा मनरेगा से और तीसरा मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना) बने हुए हैं। इसके अलावा गांव में तीन पारंपरिक नाड़ी (ऐसा तालाब जिसका क्षेत्रफल छोटा और गहराई अधिक होती है) है। गांव के खेतों में 1,665 कुएं बने हुए हैं। ये सभी निजी हैं।

घरों में बने कुओं की संख्या 1,345 है, ये भी निजी ही हैं। इसके अलावा 480 छोटे एनीकट बनाए गए हैं। मनरेगा से यहां पीने के लिए सार्वजनिक रूप से तीन टांके बनाए गए हैं। गांव की जल संरचनाओं को जोड़ें तो इनकी संख्या कुल 3,479 होती है। इनमें चार मनरेगा से और बची हुई (3,475) पारंपरिक रूप से बनाई गई हैं।

गांव में मई में शुरू हुई बारिश के कारण गांव के पहले एनीकट में पानी आना शुरू हुआ था। यह एनीकट 10 जून के बाद भरा और जून के आखिरी होने तक तो इसकी मेड़ के ऊपर से पानी बहने लगा था। गांव से लगी अरावली की पहाड़ी की ऊंचाई पर बने दो एनीकट 25 मई तक ही भर गए थे। गांव में बनी नाड़ियां मई के पहले हफ्ते हुई बारिश से भर गईं थीं। इसके अलावा खेतों में बने कुएं जून के आखिरी में जाकर आधे से अधिक भर गए। जबकि घरों के कुएं मई के आखिरी दिनों में भर पाए।

गांव की अधिकांश वर्षा जल संचय संरचनाएं भर चुकी हैं। यदि इनमें एकत्रित पानी को जोड़ा जाए तो यह 9.52 करोड़ लीटर होता है। जबकि गांव में सालभर में सामान्यत: पानी का उपयोग 18 करोड़ लीटर के बराबर होता है। यदि इस आंकड़े को देखें तो इससे पता चलता है कि गांव में बारिश का पानी कुल उपभोग के आधे के बराबर एकत्रित हो चुका है। इस पर पूर्व सरपंच गजेंद्र कंवर इंदा ने कहा, “यह गांव की अब तक सबसे बड़ी उपलब्धि है।”

यह पानी गांव में आगामी 6 माह तक आसानी से चलेगा। इनमें पेयजल तो पूरे 6 माह तक चलेगा ही, हां आगामी सीजन में किसान अपनी अगली फसल में सिंचाई भी कर सकेंगे। गांव में अतिरिक्त पानी को गांव वाले गांव के मुंहाने पर ही रोक पाने में सफल हो रहे हैं।

कारण कि गांव के बाहर ही एक बांध बना हुआ है। एनीकट के भरने के बाद उससे निकलने वाला पानी इसी बांध में आ कर एकत्रित होता है। बांध में पानी पिछले दस साल बाद आया है। इसकी भरण क्षमता 18.40 करोड़ लीटर है। वर्तमान में इसमें 10.33 करोड़ लीटर भर चुका है। इस बांध के किनारे बसे चार गांव के कुएं भी रिचार्ज हो रहे हैं। यह बांध जब भर जाता है तो इस बांध से ही लोनी नदी निकलती है और जिले के नीचे के गांवों में बनी जल संरचाओं को रिचार्ज करते हुए आगे निकल जाती है।

गांव वालों को उम्मीद है कि और बारिश हुई तो यह बांध पूरा भर ही जाएगा और इसके बाद ही लोनी नदी में पानी आएगा। वर्तमान में गांव में एनीकट के अलावा खेतों में बने 45 प्रतिशत कुओं में पानी ऊपर से निकल रहा है। इसके लिए ग्रामीणों ने आसपास मिट्टी की कच्ची मेड़ें बांधी हुईं हैं। वहीं घरों में बने कुएं ओवरफ्लो तो नहीं हो रहे हैं लेकिन अब और बारिश होती है इनसे भी पानी बाहर आने लगेगा। इसके लिए ग्रामीण इसके आसपास गोलाकार क्षेत्र में नालियां खोद रहे हैं, ताकि अतिरिक्त पानी इनके माध्यम से जमीन के नीचे चला जाए।

बारिश के दौरान गांव से लगी अरावली की पहाड़ियों में पानी पत्थरों के बीच बड़ी मात्रा में जमा होता रहता है। इस संबंध में गांव के विकास अधिकारी कान सिंह ने कहा, “अरावली की पहाड़ियों में बारिश का पानी बहुत अधिक संचित होता है क्योंकि यहां के पत्थरों की बनावट आड़ी न होकर सीधी खड़ी होती है और दो पत्थरों के बीच हल्का सी जगह होती है।

ऐसे में इन जगहों में ही बारिश का पानी जमा रहता है और वह धीरे-धीरे रिसते हुए नीचे की ओर आता रहता है। यह रिसने वाला पानी ही एनीकट में जमा होते जाता है।” ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पानी एकत्र करने के कई साधन हैं और हम अधिक पानी संजो सकते हैं लेकिन ऐसी बारिश जुम्मे-जुम्मे ही आती है।

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