दिल्ली में फैले टैंकर माफिया; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जल

हर दिन 5 लाख लीटर भूजल की लूट! एनजीटी पहुंचा मामला

यह मामला पानी की अवैध आपूर्ति करने वाले माफिया से जुड़ा है, जो बड़ी मात्रा में भूजल को दोहन कर उसे व्यावसायिक संस्थानों को बेच रहा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली के मानकपुरा में भूजल के अवैध दोहन के मामले को गंभीरता से लेते हुए एक संयुक्त समिति को जांच के निर्देश दिए हैं। 13 मई, 2025 को दिए अपने आदेश में अदालत ने समिति से मौके की जांच करने, इसपर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के साथ इस सम्बन्ध में क्या कार्रवाई की जा सकती है उसका सुझाव देने के लिए कहा है।

यह मामला पानी की अवैध आपूर्ति करने वाले माफिया से जुड़ा है, जो बड़ी मात्रा में भूजल को दोहन कर उसे व्यावसायिक संस्थानों को बेच रहा है।

ट्रिब्यूनल ने इस मामले में दिल्ली पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण और दिल्ली जल बोर्ड सहित सभी संबंधित विभागों को जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही, समिति को वास्तविक स्थिति की जांच कर उचित सुधारात्मक कदम सुझाने और रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया गया है।

शिकायतकर्ता के मुताबिक, हेमंत नामक व्यक्ति ने पिछले 7-8 महीनों से अपने परिसर में अवैध बोरवेल चला रखा है और रोजाना पांच लाख लीटर से अधिक भूजल निकालकर आसपास के इलाके में बेच रहा है। उसने अपने घर में अवैध रूप से एक वाटर प्यूरीफिकेशन प्लांट भी स्थापित कर लिया है।

शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि हेमंत को दिल्ली पुलिस और जल बोर्ड के कुछ अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है, जिस कारण अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। आवेदक ने शिकायत के साथ फोटोग्राफ और वीडियो सबूत भी अदालत में प्रस्तुत किए हैं।

विकासनगर मंडी कोल्ड स्टोरेज निर्माण विवाद: क्या बिना अनुमति काटे गए आम के पेड़?

विकासनगर मंडी समिति में निर्माणाधीन कोल्ड स्टोरेज परियोजना को लेकर पर्यावरणीय अनुमति और पेड़ों की कटाई पर विवाद गहराता जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह परियोजना अवैध है और इसके लिए जरूरी स्वीकृतियां नहीं ली गईं, और पेड़ों को भी अवैध रूप से काटा गया है।

वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 9 मई 2025 को दिए अपने जवाब में कहा है कि वायु और जल अधिनियम 1974 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी परियोजना को अनुमति देना और पर्यावरणीय नियमों का पालन कराना संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समितियों की जिम्मेदारी होती है।

वहीं पेड़ों के काटे जाने के संबंध में सीपीसीबी ने स्पष्ट किया कि यदि पेड़ वन भूमि पर स्थित हैं, तो ऐसे मामलों में भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत कार्रवाई की जाती है। हालांकि साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 को लागू किया गया है, लेकिन यह अधिनियम पेड़ों की छंटाई या कटाई पर लागू नहीं होता।

बता दें कि यह पूरा मामला उत्तराखंड के विकासनगर मंडी समिति में एक कोल्ड स्टोरेज परियोजना से संबंधित है, जो आवेदक के अनुसार अवैध थी, क्योंकि पेड़ों को काटने के लिए आवश्यक अनुमति नहीं ली गई थी।

28 मार्च 2025 को इस मामले में तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी गई। इस सन्दर्भ में उत्तराखंड वन विभाग, उप वन संरक्षक (कल्सी, देहरादून), उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड कृषि उपज विपणन बोर्ड और विकासनगर कृषि मंडी, देहरादून को पत्र भेजे गए थे।

अपने जवाब में कृषि उत्पादन मंडी समिति विकासनगर, देहरादून के सचिव ने 4 अप्रैल, 2025 को पत्र भेजा था। इस पत्र के मुताबिक, प्रस्तावित कोल्ड स्टोरेज का निर्माण उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड, रुद्रपुर के निर्माण विभाग द्वारा किया जा रहा है। निर्माण भूमि पर काम में बाधा बन रहे 18 पेड़ों को काटने की स्वीकृति देहरादून के मुख्य बागवानी अधिकारी ने 19 नवंबर, 2024 को अपने पत्र के माध्यम से दी थी।

इसके साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी है कि 27 नवंबर, 2024 को कालसी भूमि संरक्षण प्रभाग के वन अधिकारी ने पेड़ों का मूल्यांकन किया था और 7 दिसंबर, 2024 को उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड, रुद्रपुर (ऊधमसिंहनगर) के निदेशालय ने इन पेड़ों की कटाई और नीलामी की अनुमति दी थी।

जमीनी हकीकत

देहरादून के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा की गई हालिया जांच में पाया गया कि जिस स्थान पर कोल्ड स्टोरेज का निर्माण हो रहा है, वहां मौजूद 32 आम के पेड़ों में से 18 काटे जा चुके हैं और 14 अब भी जीवित हैं।

सिरमौर में अवैध स्टोन क्रशर पर एनजीटी सख्त, छह सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 13 मई, 2025 को हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ग्राम महली में अवैध रूप से चल रहे एक स्टोन क्रशर के मामले को गंभीरता से लिया है।

इस बारे में ट्रिब्यूनल ने सिरमौर के जिलाधिकारी, हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी), राज्य उद्योग विभाग और प्रोजेक्ट परियोजना प्रस्तावक मां वैष्णो स्टोन क्रशर के साथ-साथ ग्राम पंचायत सलानी कटोला, गांव मेहली से भी जवाब तलब किया है।

एनजीटी ने इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया है। समिति को परियोजना प्रस्तावक को नोटिस देकर मौके का निरीक्षण करना होगा, आवेदक और प्रोजेक्ट प्रतिनिधि की उपस्थिति में शिकायतों की जांच करनी होगी, हकीकत की पुष्टि करनी होगी और उचित सुधारात्मक कार्रवाई का सुझाव देते हुए छह हफ्तों में अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी।

हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस जांच प्रक्रिया की नोडल एजेंसी होंगे।

यह याचिका हेमंत कुमार द्वारा ग्राम पंचायत सलानी कटोला, तहसील नाहन, जिला सिरमौर के सभी ग्रामीणों की ओर से दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया है कि मां वैष्णो स्टोन क्रशर पर्यावरणीय नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है।

क्रशर की वजह से 250 बीघा से अधिक कृषि भूमि पर बंजर होने का खतरा मंडरा रहा है। इस कृषि भूमि की कुहल के माध्यम से सिंचाई की जाती है। इस मामले में स्थानीय प्रशासन और खनन विभाग में पहले भी कई शिकायतें दर्ज कराई गई हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।