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बिहार के 38 में से 37 जिलों का पानी पीने लायक नहीं, सरकार ने माना

बिहार में पहले 28 जिलों में भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की पुष्टि की गई थी, लेकिन अब उपमुख्यमंत्री ने माना कि 37 जिलों में पानी पीने लायक नहीं रहा

Pushya Mitra

बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने एक भाषण में यह जानकारी दी है कि बिहार के 38 में से 37 जिलों का पानी पीने लायक नहीं है। इनमें फ्लोराइड, आर्सेनिक और आयरन का संक्रमण है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य के 31 हजार वार्डों में गुणवत्तापूर्ण पेयजल की आपूर्ति आज भी चुनौती बनी हुई है। वे रविवार को एनआइटी पटना के सभागार में इंडियन वाटर वर्क्स एसोसियेशन के 52वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उप मुख्यमंत्री मोदी की यह स्वीकारोक्ति बता रही है कि राज्य की बड़ी आबादी आज भी संक्रमित पेयजल का उपभोग करने की वजह से गंभीर खतरे की जद में है। इसके साथ ही संक्रमण का दायरा बढ़ा है, क्योंकि महज कुछ साल पहले तक राज्य के 28 जिले ही पेयजल के संक्रमण के दायरे में थे।

पहले 28 जिलों में था संक्रमण

हालांकि राज्य के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की साइट पर अभी भी 2009 की भूजल गुणवत्ता स्थिति की रिपोर्ट के आधार पर ही जानकारियां उपलब्ध हैं। वहां जानकारी दी गयी है कि राज्य के 13 जिले आर्सेनिक, 11 फ्लोराइड और 9 आइरन की अधिकता के प्रकोप में हैं। इनमें से कुछ जिलों में दो-दो तरह के संक्रमण हैं, इस तरह भूजल संक्रमित जिलों की संख्या वहां 28 बताई गयी है। इसी तरह वहां 18673 टोलों के जल में आयरन का संक्रमण, 4157 टोलों के जल में फ्लोराइड का संक्रमण और 1590 टोलों के जल में आर्सेनिक के संक्रमण की जानकारी है। इस तरह कुल 24,420 टोलों के भूजल संक्रमित होने की सूचना है।

2009 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में गंगा किनारे बसे सभी जिले आर्सेनिक के संक्रमण की जद में है। दक्षिण बिहार के सभी जिले फ्लोराइड संक्रमित हैं और पूर्वी बिहार के नौ जिलों में आयरण के संक्रमण का खतरा है। उत्तर-पश्चिम बिहार के कुछ जिले अब तक भूजल संक्रमण से बचे हुए बताये जा रहे थे। मगर नयी जानकारी के मुताबिक वे भी संभवतः आयरन या आर्सेनिक के संक्रमण की जद में आ गये हैं। कल उप मुख्यमंत्री ने राज्य के 37 जिलों के 31 हजार वार्डों के जल के संक्रमण की जानकारी दी है।

नौ जिलों के 6,580 टोलों में बढ़ा संक्रमण

अगर इस जानकारी को सही माना जाये तो पिछले दस वर्षों में 9 जिले और 6,580 टोलों के भूजल में संक्रमण फैल गया है। विभाग के अधिकारियों से इस संबंध में जानकारी लेने की लगातार कोशिश की गयी, मगर वे उपलब्ध नहीं हो पाये। विभाग की साइट पर उपलब्ध एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च, 2020 तक इन टोलों में शुद्ध पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य है। मगर यह कितना हो पाता है, यह देखने की बात होगी।

कैंसर, फ्लोरोसिस और गैस संबंधी बीमारियों का खतरा

भूजल में आर्सेनिक के संक्रमण की वजह से बिहार में लगातार कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ रही है। ऐसा माना जाता है कि आर्सेनिक संक्रमित क्षेत्र में हर दस हजार में से एक व्यक्ति के कैंसर के शिकार होने का खतरा रहता है। बिहार में पिछले कुछ सालों में गॉल ब्लाडर के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है, इसके पीछे भी आर्सेनिक को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। भारत और यूके के एक साझा शोध में पिछले साल यह पता चला है कि आर्सेनिक संक्रमित क्षेत्रों में उपजे गेहूं से भी कैंसर का खतरा रहता है।

उसी तरह फ्लोराइड संक्रमित दक्षिण बिहार के कई गांवों में फ्लोरोसिस के मरीज बहुतायत में दिखते हैं। इनकी हड्डियां टेढ़ी होने लगती है। आयरन संक्रमित क्षेत्रों में गैस और उससे संबंधित रोगों की प्रमुखता रहती है।