जल

305 करोड़ रुपए खर्च लेकिन नहीं सुधरी गोरखपुर के रामगढ़ ताल की दशा

2011 में रामगढ़ ताल को राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना में शामिल कर लिया गया था, लेकिन अब तक सुधार नहीं हो पाया है

Satyendra Sarthak

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के ऐतिहासिक रामगढ़ ताल को प्रदूषण मुक्त करने और इसके सौंदर्यीकरण के लिए राज्य और केन्द्र सरकारें मिलकर 305 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुकी हैं। फिर भी ताल में एक दर्जन से अधिक नालों का गंदा पानी गिर रहा है। ताल में बड़े पैमाने पर जलकुंभी फैली हुई है। सफाई भी होती रहती है, लेकिन प्रशासन पूरे ताल की सफाई की बजाय नौका विहार के आसपास सफाई पर ही जोर देता है। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पहुंचा तो एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर 120 करोड़ जुर्माना लगा दिया है।

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप से जुड़े पर्यावरणविद डॉ. शीराज वजीह कहते हैं “ताल की दयनीय स्थिति को देख 2010 में शहर के नागरिकों के समूह ने आंदोलन किया था। तब ताल को संरक्षित करने का काम शुरू किया गया। अफसोस कि अभी तक इसमें नालों का पानी गिर रहा है। ताल को आकर्षक बनाने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि हमारा जोर इसकी जीवंतता व गुणवत्ता को बनाये रखने और प्राकृतिक संसाधन के रूप में इसके संरक्षण पर होना चाहिए।”

परियोजना के प्रबंधक रतनसेन सिंह कहते हैं “राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना में शामिल होने के बाद ताल की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। पहले का बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) लेवल 108 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जो अब मात्र 11 मिलीग्राम रह गया है।” 

संवाददाता जब यहां पहुंचा तो पाया कि कार शोरूम आरकेबीके ऑटोमोबाइल्स के पास ही नाले का गंदा पानी ताल में गिर रहा है, जबकि सीवेज पंपिंग स्टेशन के पास कुछ लोग मछलियों का शिकार कर रहे थे। बांध के बायीं ओर आवासीय कालोनियों से घरों का पानी नालों के जरिए रामगढ़ ताल ही गिरता है। बांध कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो चुका है। मोहरवा की बारी के 30 वर्षीय अजय रावत ने बताया “इस तरफ कभी सफाई नहीं होती है। सड़क के पास और चिड़ियाघर की तरफ नियमित सफाई होती है, इधर नहीं। आख़िरी बार यहाँ पर 3 वर्ष पहले सफाई हुई थी। तब से स्थिति जस की तस बनी हुई है। सहारा स्टेट कॉलोनी सहित क़रीब हजार घरों के नाले का पानी भी ताल में ही गिराया जाता है।” 

परियोजना के तहत तीन योजनाओं का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और दो अभी निर्माणाधीन हैं। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2010 को रामगढ़ ताल को राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के तहत 124.30 करोड़ की राशि स्वीकृत की। योजना के पूर्ण करने का 2013 तक लक्ष्य रखा गया था। योजना के तहत 6 नालों के पानी को ताल में जाने से रोकना और 15 एमएलडी व 30 एमएलडी के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, दो सीवेज पंपिंग स्टेशन स्थापित करना था। नियमित बजट आवंटित नहीं होने के कारण योजना के बजट को संशोधित कर 196.57 करोड़ कर दिया गया। 

स्थानीय पर्यावरणविद अंचित लहरी का कहना है, “रामगढ़ ताल वेटलैंड घोषित हो चुका है, जहां पौधों और जीव-जंतुओं का संरक्षण किया जाता है। वाटर स्पोर्ट्स के लिए तैयार किए गए स्वीमिंग पुल आदि होते हैं जिनमें पानी को एकदम साफ कर दिया जाता है, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज किया जा रहा है।”

आईआईटी रूड़की ने 2014 में जीपीएस मैपिंग के जरिए सर्वे कर रामगढ़ ताल में 93 लाख घनमीटर गाद होने का आंकलन किया था। यहां से अभी तक 11 लाख घन मीटर गाद निकाली जा चुकी है। ताल में अभी भी 82 लाख घन मीटर गाद निकाला जाना है। गाद की वजह से ताल में से दुर्गंध उठती है और पानी भी हरा दिखाई देता है। रतनसेन कहते हैं “ 2016 में गाद निकालने के लिए 348 करोड़ रुपये का प्रस्ताव राज्य सरकार के माध्यम से केन्द्र सरकार को भेजा गया था, जिसे अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है।

ताल के दोनों किनारे पर लगाये गये 15 एमएलडी और 30 एमएलडी के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज पंपिंग स्टेशन के रखरखाव व संचालन पर होने वाले खर्च को वहन करने के लिए गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए), नगर निगम और आवास विकास परिषद ने आपस में मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट कर रखा है। इसके तहत तीनों विभागों ने हर साल 6.6 करोड़ रुपये जल निगम को देने पर सहमति दी है।

जीडीए की 2.504 करोड़, नगर निगम की 2.484 करोड़ और आवास विकास परिषद की हिस्सेदारी 1.614 करोड़ रुपये है। तीनों ही विभाग अपने हिस्से की रक़म का नियमित भुगतान नहीं करते हैं। आवास विकास परिषद ने तो अभी तक कुछ भी नहीं दिया है। पैसों की कमी के कारण एसटीपी का संचालन भी कभी-कभी रूक जाता है तो नालों का गंदा पानी सीधे ताल में ही गिरता है।