भारत में 1.8 से 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जिसके लिए पीने का पानी जिम्मेवार है। देश की एक बड़ी आबादी आज भी पीने के पानी के लिए भूमिगत जल पर निर्भर है। आज भी भारत में भूजल पीने के पानी और सिंचाई का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। देश में धीरे-धीरे न केवल जिसकी मात्रा में कमी आ रही है, साथ ही इसकी गुणवत्ता में भी गिरावट आती जा रही है। जिसके लिए काफी हद तक आर्सेनिक भी जिम्मेवार है। यह जानकारी हाल ही में किए एक शोध में सामने आई है, जोकि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ है। जिसे मैनचेस्टर, पटना और ज्यूरिख के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।
इस शोध से यह भी पता चला है कि देश में गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में भूजल के अंदर उच्च मात्रा में आर्सेनिक मौजूद है, जोकि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। शोध के अनुसार उत्तर भारत में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर पर है। इसके साथ ही देश के कई अन्य इलाकों में आर्सेनिक की मात्रा तय मानकों से कहीं ज्यादा है। जिसमें दक्षिण-पश्चिम और मध्य भारत के कई हिस्से शामिल हैं। शोध के अनुसार इससे पहले इन क्षेत्रों में आर्सेनिक के सबूत नहीं मिले थे।
पांच वर्षों के दौरान आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों में दर्ज की गई 145 फीसदी की वृद्धि
इससे पहले 18 सितम्बर 2020 को जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संसद में दिए आंकड़ें भी इस बात की पुष्टि करते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार 2015 में 1,800 बस्तियां आर्सेनिक से प्रभावित थी जो 2017 में बढ़कर 4,421 हो गई हैं। जिसका मतलब है कि पिछले पांच वर्षों में उनमें 145 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।
यह बस्तियां मुख्य रूप से असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में हैं। झारखंड, जिसमें 2015 में ऐसी कोई बस्ती नहीं थी, अब वहां की दो बस्तियां आर्सेनिक प्रभावित हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में असम में सबसे ज्यादा बस्तियां आर्सेनिक से ग्रस्त हैं जिनकी संख्या 1853 है। इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर है जहां 1,383 बस्तियां इससे पीड़ित हैं।
वहीं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के 63 जिलों के भूजल में मानक से अधिक फ्लोराइड, 25 जिलों के भूमिगत जल में आर्सेनिक तथा 18 जिलों के भूजल में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक दोनों मानक से कई गुना अधिक है। यह जानकारी वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन, उप्र द्वारा एक आरटीआई के जबाव में सामने आई थी। जबकि एनजीटी में सबमिट एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 707 बस्तियां आर्सेनिक प्रभावित हैं। जबकि बिहार के 18 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक का जहर फैला हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब 1 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं। कई इलाकों में तो पानी में आर्सेनिक की मात्रा 1,000 पीपीबी से ज्यादा है, जो सामान्य से 20 गुना अधिक है।
पानी में मौजूद आर्सेनिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। इससे कैंसर, हृदय रोग और यहां तक की असमय मृत्यु भी हो सकती है। यह समस्या अत्यंत गंभीर है, इसके बावजूद देश में अभी भी पीने के लिए उपयोग किए जाने वाले अधिकांश कुओं में मौजूद आर्सेनिक की जांच नहीं हुई है। लेकिन इतने विस्तृत इलाके में इसे कर पाना आसान नहीं है यही वजह है कि इस शोध में मॉडलिंग की मदद से इसकी जांच की गई है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह मॉडलिंग उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है। जिस वजह से इसकी मदद से गहरे कुओं के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है। ऐसे में इन क्षेत्रों में व्यापक जांच जरुरी हो जाती है, जिससे स्थिति की सही जानकारी प्राप्त हो सके। इसके साथ ही शोध पीने के लिए उपयोग किये जाने वाले कुओं की भी रैंडम जांच की सिफारिश करता है। जिसकी मदद से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को सीमित किया जा सके।