जल

भारत सहित 25 देशों में गंभीर जल संकट से प्रभावित हो रहे हैं जीवन, जीविका और खाद्य आपूर्ति

Lalit Maurya

भारत सहित दुनिया के 25 देशों में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। यह वो देश हैं जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। इन देशों में केवल गर्मियों में ही नहीं बल्कि पूरे साल पानी की कमी बरकरार रहती है।

पानी की यह बढ़ती कमी यहां रहने वाले लोगों के जीवन, जीविका, खाद्य आपूर्ति, कृषि, उद्योगों और ऊर्जा सुरक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है। यह जानकारी वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस के नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है। गौरतलब है कि यह 25 देश दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी का घर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसा नहीं है कि जल संकट की यह समस्या दुनिया में केवल इन्हीं 25 देशों तक सीमित है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी यानी 400 करोड़ लोग, साल में कम से कम एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करते हैं। अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी पर पहुंच जाएगा।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उसमें भविष्य को लेकर और गंभीर तस्वीर उजागर की गई है। आशंका है कि यदि वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान को 1.3 डिग्री सेल्सियस से 2.4 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित रखने में सफल भी हो जाएं तो भी 2050 तक 100 करोड़ अतिरिक्त लोग इस गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगें।

इन देशों में स्थिति इतनी खराब है कि थोड़े समय के लिए पड़ने वाले सूखे के चलते यहां स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है। यहां तक की सरकारों को पानी की आपूर्ति बंद करने के लिए भी मजबूर होना पड़ सकता है। गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ हाल के वर्षों में भारत, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, ईरान और मैक्सिको सहित दुनिया का अन्य हिस्सों में देखने को मिला है।

यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में जल संकट की स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर हैं। इस क्षेत्र में रहने वाली करीब 83 फीसदी आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है। इसके बाद दक्षिण एशिया में करीब 74 फीसदी आबादी बढ़ते जल संकट से त्रस्त है।

आज वैश्विक स्तर पर देखें तो पानी की बढ़ती मांग, उसकी उपलब्धता से ज्यादा हो गई है। 1960 से देखें तो इसकी मांग बढ़कर दोगुनी हो गई है। इसके लिए कहीं न कहीं बढ़ती आबादी, उद्योग, कृषि, मवेशी, ऊर्जा उत्पादन, निर्माण और जलवायु में आता बदलाव जैसे कारण जिम्मेवार हैं। वहीं अनुमान है कि बेहतर प्रबंधन के बिना बढ़ती आबादी, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन के चलते स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।

27 वर्षों में 25 फीसदी तक बढ़ जाएगी पानी की मांग

अनुमान है कि 2050 तक पानी की वैश्विक मांग 25 फीसदी तक बढ़ जाएगी। इसी तरह अप्रत्याशित जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों की संख्या भी 19 फीसदी तक बढ़ सकती है। आशंका है कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में, 2050 तक करीब-करीब पूरी आबादी को पानी की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा।

उप सहारा अफ्रीका में पानी की तेजी से बढ़ती मांग भी अपने आप में एक समस्या है। बता दें कि दुनिया के किसी अन्य हिस्से की तुलना में यहां पानी की मांग सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। आशंका है कि यह मांग 2050 तक 163 फीसदी बढ़ जाएगी। दक्षिण अमेरिका की तुलना में देखें तो यह मांग चार गुणा ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।

दुनिया भर में पानी की यह बढ़ती कमी अपने साथ दूसरे खतरे भी साथ लाएगी। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करेगी। एक्वाडक्ट द्वारा जारी नए आंकड़ों के मुताबिक 2010 में दुनिया की करीब 24 फीसदी जीडीपी इससे प्रभावित थी।

वहीं अनुमान है कि 2050 तक गहराते जल संकट की वजह से करीब 5,818.9 लाख करोड़ रूपए (70,00,000 करोड़ डॉलर) मूल्य की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी, जोकि वैश्विक जीडीपी के करीब 31 फीसदी के बराबर है। इसका सबसे ज्यादा असर केवल चार देशों भारत, मैक्सिको, मिस्र और तुर्की में देखने को मिलेगा। जो इसके करीब आधे नुकसान को झेल रहे होंगें।

पानी की कमी का ऐसा ही एक उदहारण भारत में दर्ज किया गया था। जब 2017 से 2021 के बीच थर्मल पावर प्लांट्स को ठंडा रखने के लिए पानी की कमी के चलते 8.2 टेरावाट-घंटे के बराबर ऊर्जा का नुकसान हुआ था। यह इतनी ऊर्जा है जो 15 लाख भारतीय घरों को पांच वर्षों तक बिजली देने के लिए पर्याप्त है।

रिपोर्ट के अनुसार यदि जल प्रबंधन से जुड़ी नीतियों में सुधार न किया गया तो इसके चलते आने वाले 27 वर्षों में भारत, चीन और मध्य एशिया को उसके जीडीपी के सात से 12 फीसदी हिस्से के बराबर आर्थिक नुकसान होआ सकता है। वहीं अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में यह नुकसान छह फीसदी के बराबर रहने की आशंका है।

कृषि, खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ेगा गहरा असर

बढ़ता जल संकट न केवल लोगों और इसपर निर्भर उद्योगों के लिए खतरा पैदा करेगा। साथ ही राजनीतिक स्थिरता के लिए भी एक समस्या बन जाएगा। उदाहरण के लिए, ईरान में, दशकों से जल प्रबंधन में मौजूद खामियों और कृषि के लिए पानी की बढ़ती कमी के चलते विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह तनाव आने वाले समय में और गंभीर रूप ले सकता है।

पानी की इस बढ़ती कमी के चलते वैश्विक खाद्य सुरक्षा भी खतरे में है। मौजूदा समय में देखें तो दुनिया की 60 फीसदी सिंचाई पर निर्भर खेत पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। विशेषकर गन्ना, गेहूं, चावल और मक्का जैसी फैसले इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

अनुमान है कि 2050 तक 1,000 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए हमें 2010 की तुलना में 56 फीसदी अधिक कैलोरी का उत्पादन करना होगा। ऐसे में जलवायु परिवर्तन और पानी की बढ़ती कमी से स्थिति गंभीर हो सकती है।

यह सच है पानी अमृत से कम नहीं। लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ यह बढ़ती आबादी का पेट भरने और जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी अहम है। लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद बढ़ते जल संकट से जुड़ी चिंताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा।

इससे निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। इसके लिए सरकारों, समुदायों और व्यवसायों को एक साथ आना होगा, जिससे ऐसे भविष्य का निर्माण किया जा सके जहां सभी के लिए इसकी उपलब्धता सुनिश्चित हो।

डब्ल्यूआरआई ने अपने एक अन्य शोध में भी इस बात की पुष्टि की है कि बेहद मामूली लागत में भी वैश्विक जल संकट से उबरा जा सकता है। अनुमान है कि 2030 तक वैश्विक जीडीपी का एक फीसदी हिस्सा इस समस्या से निजात दिलाने के लिए काफी है। रिपोर्ट ने जोर दिया है कि बढ़ते जल संकट को कम करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

एक डॉलर = 83.13 भारतीय रूपए