कृषि में रासायनिक कीटनाशकों के हानिकारक प्रभाव को देखते हुए जैव कीटनाशकों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। लेकिन, नीम से बनने वाले जैव कीटनाशकों की भंडारण क्षमता कम होने के कारण किसान अभी इसका सीमित उपयोग ही कर पाते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने इस समस्या से निपटने के लिए अब एक खास उपाय ढूंढ निकाला है, जिसकी मदद से नीम कीटनाशकों का उपयोग पहले से ज्यादा किफायती एवं प्रभावी ढंग से किया जा सकेगा।
नागपुर स्थित विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग एवं मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के शोधकर्ताओं के मुताबिक ‘अजेडिरेक्टिन (अजा) नीम-आधारित कीटनाशकों का प्रमुख घटक होता है और कीटों को नष्ट करने में इसकी भूमिका काफी अहम होती है।
अजा एक शक्तिशाली कीट एंटी-फीडेंट (जिसे कीट नहीं खाते) और वृद्धि-नियामक पदार्थ है, जिसमें कीटों को नियंत्रित करने के अलावा नाइट्रीकरण और सूक्ष्म कीटों की वृद्धि रोकने की क्षमता होती है।’ शोधकर्ताओं के अनुसार ‘नीम कीटनाशकों को ज्यादा समय तक भंडारित करके न रख पाने के पीछे अजेडिरेक्टिन की अस्थिरता ही जिम्मेदार होती है।’ इस अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार अब अजा को अधिक प्रभावी बना दिया गया है।
अध्ययन के दौरान विशेष तकनीक की मदद से कीटनाशक बनाने के लिए नीम के सूखे फलों के पाउडर में डोलोमाइट मिलाकर अजेडिरेक्टिन की भंडारण स्थिरता बढ़ाने के प्रयास में शोधकर्ताओं को सफलता मिली है। डोलोमाइट कैल्शियम, मैग्नीशियम कार्बोनेट से बना एक निर्जल कार्बोनेट खनिज है। शोधकर्ताओं के अनुसार नीम के पूरे फल का इस्तेमाल करने से अन्य लिमोनोइड्स के साथ-साथ अजा स्थिरता प्रभावी ढंग से सुनिश्चित हो जाती है।
जैव कीटनाशक पौधों और सूक्ष्मजीवों से बनाए गए ऐसे जैव अपघटित यौगिक होते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न फसलों पर आवश्यकतानुसार किया जाता है। प्राकृतिक होने के कारण जैव कीटनाशकों का दुष्प्रभाव फसलों पर नहीं पड़ता, बल्कि ये कीटों को नष्ट करने के साथ-साथ पौधों की वृद्धि में भी सहायक हो सकते हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि अजा की अस्थिरता को जल, पीएच संवेदनशीलता और प्रकाशीय विघटन समेत तीन प्रमुख कारक प्रभावित करते हैं। अभी तक नीम-आधारित कीटनाशक बनाने में अजा को नीम के अर्क के रूप में निकालकर उपयोग किया जाता रहा है। शोधकर्ताओं ने अब जैव कीटनाशक बनाने के लिए बिना अर्क निकाले नीम के फलों का इस्तेमाल किया है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में सोनाली तजने, प्रफुल्ल दधे और सचिन मांडवगने तथा सयाजी मेहेत्रे शामिल थे।
नीम के पूरे फल का उपयोग करने से अजा के निष्कर्षण में उपयोग होने वाले विलायकों और डिपाइलिंग जैसी प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाली इकाइयों के लिए अनावश्यक रूप से लगने वाली विनिर्माण की लागत में भी कमी आई है।
शोधकर्ताओं के अनुसार ‘भविष्य में डोलोमाइट को सूखे नीम फलों के पाउडर में मिलाकर नीम कीटनाशक बनाने से कीटनाशक का फसलों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा और इसका इस्तेमाल भी लंबे समय तक किया सकेगा। इस तरह तैयार किया गया नीम कीटनाशक किफायती और स्थिर साबित हो सकता है।’ (इंडिया साइंस वायर)