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विज्ञान

पेपर सेंसर से मिलेगी दूध की शुद्धता की जानकारी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने एक नई किट विकसित की है, जो दूध की ताजगी की पहचान को अधिक आसान है

DTE Staff

आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी साधारण सी पेपर किट विकसित की है जो दूध की ताजगी का परीक्षण कर बता सकती है कि उसे कितनी अच्छी तरह से पाश्चुरीकृत किया गया है। और एक स्मार्ट फोन ऐप के साथ जोड़ने से यह किट यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि दूध बहुत अधिक खट्टा होने से पहले ही उपयोग कर लिया जाए। दूध एक प्रमुख खाद्य पदार्थ है। इसलिए इसकी सुरक्षा हमेशा से उपभोक्ताओं के लिए चिंता का मुख्य विषय रही है। इसके अलावा इसमें स्वाभाविक रूप से मौजूद रहने वाले एंजाइमों और सूक्ष्मजीवों की वजह से इसके जल्दी खराब होने का खतरा हमेशा बना रहता है।

हालांकि पाश्चुरीकरण, फ्रीजिंग और एडिटिव्स जैसी तकनीकों का प्रयोग दूध को खराब होने से बचाने और इसके संरक्षण के लिए व्यापक रूप से किया जाता रहा है,लेकिन दूध का जल्दी नष्ट हो जाने वाला स्वभाव हमेशा से एक चिंता का विषय रहा है। अभी तक यह जानने का कोई आसान तरीका नहीं था कि दूध ताजा है या बासा और इसका पाश्चुरीकरण कितना प्रभावी है। सामान्यतः डेयरी और डेयरी उद्योगों में प्रयोग किए जाने वाले टेस्ट अधिक समय लेने वाले होते हैं और इनके लिए स्पेक्ट्रोफोटोमीटर जैसे परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। यह नई डिटेक्शन किट परीक्षण को आसान और तेज बना सकती है।

ध्यान रहे कि दूध के एक एंजाइम,अल्कालीन फॉस्फेट के लेवल (एएलपी) को दूध की गुणवत्ता का एक संकेतक माना जाता है क्योंकि पाश्चुरीकरण के बाद भी इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है की दूध में अभी भी रोगाणु मोजूद हैं और पाश्चराइजेशन की प्रक्रिया के बाद भी एंजाइम निष्क्रिय नहीं हो पाए हैं। शोधकर्ताओं ने डिटेक्टर को तैयार करने के लिए साधारण फिल्टर पेपर का उपयोग किया।

इसके लिए उन्होंने फिल्टर पेपर को कार्यालयों में उपयोग की जाने वाली सामान्य पंचिंग मशीन की सहायता से छोटे गोल डिस्क के आकार में काट लिया और उसे उस रसायन में डुबो दिया जो कि सामान्यतः अल्कालीन फॉस्फेटस (एएलपी) के साथ प्रतिक्रिया करता है। जब जांच के नमूने, जिनमें एएलपी होता है, इन श्वेत पत्र डिस्क के संपर्क में आते हैं तो एएलपी की मौजूदगी इन श्वेत पत्र डिस्क को एक रंगीन डिस्क में बदल देती है, जिससे उसमें एएलपी की मौजूदगी का पता चल जाता है,जो साबित करता है कि पाश्चुरीकरण के बाद भी दूध में रोगाणु मौजूद हैं।