विज्ञान

गणितीय जटिलताओं से प्रेम करने वाले के. चंद्रशेखरन

आधुनिक काल के प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ प्रोफेसर के. चंद्रशेखरन का नाम इस फेहरिस्त में प्रमुखता से लिया जाता है।

Navneet Kumar Gupta

अक्सर विद्यार्थियों को ​गणित से डर लगता है, पर कई भारतीय वैज्ञानिकों ने गणित सहित विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचय दिया है। आधुनिक काल के प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ प्रोफेसर के. चंद्रशेखरन का नाम इस फेहरिस्त में प्रमुखता से लिया जाता है।

आन्ध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम कस्बे में 21 नवम्बर, 1920 को जन्मे के. चन्द्रशेखरन को अंक सिद्धांत तथा गणितीय आकलन पर शोध के लिए जाना जाता है। इसके अलावा भारत में गणित के क्षेत्र में शोध कार्यों को बढ़ावा देने वाले गणितज्ञों में के. चंद्रशेखरन अग्रणी गणितज्ञ रहे हैं।

प्रेसिडेंसी कॉलेज से गणित में एम.ए. करने के बाद वह मद्रास विश्वविद्यालय में एक शोध अध्येता के रूप में जुड़े और विश्लेषणात्मक संख्या सिद्धांत पर अपना कार्य आरंभ किया। उस समय मद्रास विश्वविद्यालय के नवनिर्मित गणित विभाग में कार्यरत आनंद राऊ, आर. वैद्यनाथस्वामी एवं लोयोला कॉलेज में कार्यरत फादर रेसीन मद्रास के प्रमुख गणितीय विशेषज्ञों में शुमार किए जाते थे। इन तीनों गणितज्ञों की प्रेरणा से चंद्रशेखरन का गणित के विभिन्न क्षेत्रों से लगाव हुआ। 

चंद्रशेखरन ने आनंद राऊ के मार्गदर्शन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आनंद राऊ कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध गणितज्ञ हार्डी और श्रीनिवास रामानुजन के साथ कार्य कर चुके थे। पीएचडी करने के बाद चन्द्रशेखरन उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने प्रिन्सन के इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडी में गणित के गूढ़ विषयों पर अध्ययन किया।

वर्ष 1949 में जब चन्द्रशेखरन प्रिन्सन में थे तो प्रसिद्ध नाभिकीय वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने उन्हें मुम्बई स्थित टाटा मुलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) में कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार चन्द्रशेखरन ने टीआईएफआर में गणित विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चंद्रशेखरन ने अपनी विशेष योग्यता और मेहनत से गणित विभाग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। उनके द्वारा शोध अध्येताओं के प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रम को भी काफी सराहा गया।

चार वर्षों के अंतराल पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय गणितीय संगोष्ठी का आयोजन आरंभ कराया। उनकी पहल पर टीआईएफआर द्वारा नोटबुक ऑफ श्रीनिवास रामानुजन का प्रकाशन किया गया।

वैद्यनाथस्वामी के सुझाव पर, जो उस समय भारतीय गणितीय सोसायटी के जर्नल के मुख्य संपादक थे, वर्ष 1950 में चन्द्रशेखरन ने इस जर्नल के संपादक का कार्यभार संभाला। वह करीब आठ वर्षों तक इस जर्नल के संपादक रहे। इस अवधि में जर्नल की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास को उन्होंने प्रोत्साहित करने के साथ ही भारतीय गणितज्ञों को जर्नल में शोधपत्र प्रकाशन के लिए प्रोत्साहित किया।

उनके कार्यकाल में अनेक ख्याति प्राप्त गणितज्ञों ने इस केंद्र में व्याख्यान दिए। इतना ही नहीं, उन्होंने उन व्याख्यानों को पुस्तक रूप में भी प्रकाशित कराया। उनके इस कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रशंसा मिली। चन्द्रशेखरन ने वर्ष 1960 में मुंबई विश्वविद्यालय में भी गणित विभाग के गठन में अहम भूमिका निभाई।

वर्ष 1955 से 1961 के दौरान उन्हें अंतरराष्ट्रीय गणितीय संघ की कार्यकारी समिति का सदस्य चुना गया। वह इस समिति के महासचिव के पद भी रहे। इस समिति में 24 वर्षों की लंबी अवधि में उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए। चन्द्रशेखरन वर्ष 1961-1966 के दौरान भारत के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। चन्द्रशेखरन ने गणित के गूढ़ विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया गया। 

गणित के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, पद्मश्री तथा रामानुजन मेडल से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2012 में चन्द्रशेखरन को अमेरिकी मैथेमैटिकल सोसाइटी का सदस्य चुना गया। 13 अप्रैल, 2017 को 96 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।

(इंडिया साइंस वायर)