अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा आर्टेमिस अभियान के तहत चांद पर 2024 तक पहली महिला और दूसरा मानव भेजना चाहता है। वहीं, मंगल अभियान इसी का विस्तार है। ताकि मानव को पृथ्वी से चांद और फिर मंगल तक पहुंचाया जा सके। अमेरिका ने 2031 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा है। हम आखिर पृथ्वी से एक शुष्क ठंडे ग्रह पर जाना ही क्यों चाहते हैं?
दिवंगत वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि मानवों को खुद को बचाने के लिए दूसरे ग्रहों का रुख करना होगा। बहरहाल टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क मंगल पर एक बस्ती बसाने की योजना पेश कर चुके हैं। स्थिति यह है कि यदि मंगल पर जीवन नहीं मिलता है तो भी पर्यटन का ही शायद रास्ता खुल जाए। लेकिन इसमें अड़चनें कम नहीं हैं।
मार्स एटमॉस्फेयर एंड वोलाटाइल इवोल्यूशन मिशन (मॉवेन) के आंकड़ों के आधार पर जियोफिजिकल रिसर्च लेटर और साइंस जर्नल में यह बताया गया कि 3.8 अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह का वातावरण गर्म था और वहां भरपूर पानी था। कुछ का कयास है कि वहां समुद्र भी था। और सबसे अहम चुंबकीय क्षेत्र था जो कि सूरज से निकलने वाली गर्म कणों के पवन को रोकता था। जैसा पृथ्वी पर अभी चुंबकीय क्षेत्र के कारण होता है। लेकिन जैसे ही चुंबकीय क्षेत्र खत्म हुआ मंगल का वातावरण भी खत्म हो गया। वैज्ञानिकों के मन में कई सवाल हैं कि आखिर चुंबकीय क्षेत्र कैसे खत्म हुआ। कहीं जलवायु परिवर्तन का यह असर पृथ्वी पर भी तो नहीं होगा। यह सवाल अभी लंबी शोध का हिस्सा है।
इसके इतर यदि हमें मंगल पर कभी जीवन होने की पुष्टि होती है तो यह मानवता के लिए कितनी बड़ी जानकारी होगी?
इस सवाल का जवाब देते हुए इंडियन एस्ट्रोलॉजी रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख वैज्ञानिक पुष्कर गणेश वैद्य ने डाउन टू अर्थ को बताया “यदि पर्सिवियरेंस रोवर मंगल पर सूक्ष्म जीवों के होने की पुष्टि करता है तो हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि जीवन वास्तविकता में एक ब्रह्मांडीय अवधारणा है। पूर्वी संस्कृतियों में खासतौर से भारत जीवन को एक ब्रह्मांडीय (कॉस्मिक) अवधारणा ही मानता है तो ऐसे में मंगल पर जीवन उसके लिए शायद बड़ी चौंकाने वाली बात न हो लेकिन पश्चिमी सभ्यताओं में खासतौर से आधुनिक अवतारों में जीवन को ब्रह्मांडीय अवधारणा नहीं माना जाता। तो मंगल पर जीवन होने की पुष्टि उन्हें यह अवधारणा सिखा सकती है।’’