विज्ञान

क्यों दूसरे कई जीवों से ज्यादा जीता है इंसान, वैज्ञानिकों ने खोजा रहस्य

रिसर्च से पता चला है कि किसी जीव के शरीर में सोमेटिक म्युटेशन की दर जितनी धीमी होगी उसका जीवनकाल उतना ज्यादा लम्बा होगा

Lalit Maurya

क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हम इंसान दूसरे कई जीवों जैसे कुत्ता, गाय, बकरी, घोड़े, हाथी, चूहे आदि से ज्यादा जीते हैं, जबकि दूसरी तरफ क्यों कछुओं की उम्र इंसान से भी ज्यादा होती है। सवाल पेचीदा है पर ब्रिटिश वैज्ञानिकों का दावा है, उन्होंने इस पहेली को सुलझा लिया है। उनके अनुसार कोई जीव कितना ज्यादा जिएगा यह कहीं हद तक उसके शरीर में होने वाली जेनेटिक म्युटेशन पर निर्भर करता है।

इससे जुड़ा अध्ययन हाल ही में जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि इंसान और जानवर के शरीर में सामान जेनेटिक म्युटेशन होते हैं तो वो समान उम्र जी सकते हैं। इसका मतलब है कि प्रजातियों का जीवन कितना लम्बा होगा यह कहीं हद तक डीएनए में आने वाली त्रुटियों और उनकी गति पर निर्भर करता है। 

गौरतलब है कि पहले वैज्ञानिकों का मत था कि जीवों का आकार उनकी उम्र को प्रभावित करता है। उनका मत था कि छोटे जानवर कहीं ज्यादा तेजी से ऊर्जा व्यय करते हैं। इसके लिए उन्हें सेल टर्नओवर की कहीं ज्यादा तेज गति से जरुरत होती है। जिसकी वजह से उनकी उम्र छोटी होती है।

वहीं वेलकम सेंगर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन में सामने आया है कि जेनेटिक डैमेज की गति लम्बे जीवन की कुंजी हो सकती है। गौरतलब है कि जिन जीवों का जीवन लम्बा होता है वो अपने आकार की परवाह किए बिना अपने डीएनए म्यूटेशन की दर को धीमा कर देते हैं। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक इसे कुछ जीवों के उदाहरण से समझा जा सकता है। जहां एक तरफ जिराफ जैसे बड़े जीव का जीवनकाल 24 वर्ष होता है वहीं दूसरी तरफ छोटे नेकेड मोल चूहे का जीवन आश्चर्यजनक रूप से 25 वर्ष होता है जो लगभग जिराफ जितना ही होता है। वहीं जब शोधकर्ताओं ने इनके जेनेटिक म्युटेशन को देखा तो वो लगभग एक बराबर होते हैं।

इंसान में हर वर्ष होते हैं 47 सोमेटिक म्युटेशन

गौरतलब है कि जहां एक जिराफ में औसतन हर साल 99 जेनेटिक म्युटेशन होते हैं वहीं नेकेड मोल चूहे में इनकी संख्या 93 होती है। कुल मिलकर वैज्ञानिकों का मत है कि जेनेटिक म्युटेशन जितने ज्यादा होते हैं। जीवों की उम्र उतनी कम होती है, जबकि जिन जीवों में यह म्युटेशन जितने कम होते है उम्र उतनी ज्यादा लम्बी होती है। 

इसी तरह रिसर्च में औसत इंसानी जीवन काल 83.6 वर्ष था, जबकि उनकी उनमें हर साल होने वाले जेनेटिक म्युटेशन की दर लगभग 47 थी, वहीं इसके विपरीत एक आम चूहा 3.7 वर्षों तक जीवित रहता है जिसमें हर साल औसतन 796 म्यूटेशन्स होते हैं। इसी तरह शोध के मुताबिक कुत्तों में हर साल लगभग 249 म्युटेशन होते हैं जबकि शेर में इनका आंकड़ा करीब 160 होता है।   

इन जेनेटिक म्युटेशन को शारीरिक उत्परिवर्तन (सोमेटिक म्युटेशन) के रूप में भी जाना जाता है जो शरीर की सभी कोशिकाओं में होते हैं और काफी हद तक हानिरहित होते हैं। लेकिन इनमें से कुछ म्युटेशन कैंसर का कारण बन सकते हैं और सेल्स के सामान्य कार्यों को बाधित कर सकते हैं। 

इस बारे में शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर एलेक्स कैगन का कहना है कि जानवरों में एक जैसे जेनेटिक पैटर्न का पाया जाना हैरान करने वाला था। जो शेर और चूहे को अलग करते हैं। उनके अनुसार किसी जीव का जीवन काल सोमेटिक म्युटेशन की दर के विपरीत होता है।  जो स्पष्ट करता है कि सोमेटिक म्युटेशन आयु के बढ़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने इंसान समेत स्तनपायी जीवों की 16 प्रजातियों की आंतों में मौजूद स्टेम सेल्स में होने वाली आनुवंशिक त्रुटियों का विश्लेषण किया है, जिससे पता चला है कि एक प्रजाति का जीवनकाल जितना लम्बा होगा उनके शरीर में म्युटेशन की दर उतनी धीमी होगी। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि इंसान के डीएनए में चूहों के समान दर से म्युटेशन होने लगे तो हम 50,000 से ज्यादा म्युटेशन के साथ मर जाएंगें। हैरान कर देने वाली बात है कि इन प्रजातियों में जीवनकाल अलग-अलग होने के बावजूद जीवन के अंत में सभी स्तनधारियों में होने वाले म्युटेशन की संख्या लगभग समान थी। हालांकि इस आंकड़े का क्या मतलब है यह अभी भी हमारे लिए एक रहस्य है। 

अब शोधकर्ता यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या म्युटेशन का यह पैटर्न सिर्फ स्तनधारियों पर ही लागु होता है या मछली और कीटों जैसे अन्य जीव भी इसी पैटर्न का अनुसरण करते हैं। शोधकर्ता ग्रीनलैंड शार्क पर भी अपना अध्ययन करना चाहते हैं। यह मछली 400 वर्षों से ज्यादा जीवित रह सकने वाली जीव है, जिसकी हड्डियां होती हैं।