विज्ञान

किस तरह की रेत का उपयोग किया जाए ताकि भूकंप का खतरा कम हो, वैज्ञानिकों ने लगाया पता

वैज्ञानिकों ने बताया कि ढलानों और दीवारों जैसी संरचनाओं के स्थिरता के लिए उपयोग की जाने वाली प्राकृतिक रेत के स्थान पर अनियमित आकार वाली रेत का उपयोग किया जाना चाहिए।

Dayanidhi

भारतीय वैज्ञानिकों ने बताया कि रेत के कणों का आकर रेत के गलन या द्रवीकरण को प्रभावित करती है जो भूकंप के दौरान संरचनाओं के ढहने के प्रमुख कारणों में से एक है। रेत का द्रवीकरण एक ऐसी घटना है जिसमें भूकंप के झटकों के समय भारी पदार्थों के तेजी से किसी स्थान पर एकत्र होने से वहां मिट्टी की ताकत और कठोरता में कमी आ जाती है, ऐसी स्थिति में कमजोर हो चुकी जमीन पर खड़ी संरचनाएं ध्वस्त होकर गिरने लगती हैं।

नियमित आकार वाली प्राकृतिक रेत आसानी से तरलीकृत हो जाती है, इसलिए वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि ढलानों और दीवारों को बनाए रखने जैसी संरचनाओं के स्थिरता के लिए वहां उपयोग की जाने वाली प्राकृतिक रेत के स्थान पर अनियमित आकार वाली रेत का उपयोग किया जा सकता है।

शोधकर्ता ने कहा हालांकि रेत के द्रवीकरण के प्रतिरोध पर कणों के आकार और आकृति के प्रभाव के बारे में जानकारी हैं परन्तु उनके बीच मात्रात्मक संबंध अस्पष्ट हैं। इस दिशा में अधिकांश अध्ययनों ने कणों की आकृति और आकार को मापने के लिए पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया। 

इस अध्ययन में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने रेत के कणों के आकार के गुणों का वर्णन करने के लिए डिजिटल छवि विश्लेषण का उपयोग करके उन्हें रेत की द्रवीकरण क्षमता से जोड़ा। उन्होंने दोनों के बीच एक मजबूत सम्बन्ध पाया।

ऐसा इसलिए है क्योंकि अंतर कण के जुड़ाव को तोड़ने के लिए आवश्यक अपरूपण बल अपेक्षाकृत रूप से अनियमित आकार वाले कणों के लिए अधिक होता है। यहां बताते चले कि अपरूपण बल संरचना के एक हिस्से को किसी एक अलग दिशा में और उसी संरचना के दूसरे हिस्से को विपरीत दिशा में धकेलने वाला बल होता है। 

एमएटीएलएबी (एमएटी लैबोरेट्री) में विकसित कम्प्यूटेशनल एल्गोरिदम के माध्यम से रेत कणों की सूक्ष्म छवियों का विश्लेषण किया गया। जो कि उनके आकार मापदंडों को निर्धारित कर आंकड़ों का विश्लेषण करने के लिए एक कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म है।

चक्रीय सरल परीक्षण जिसमें नमूनों को तनाव के वैकल्पिक चक्रों की नकली भूकंप स्थितियों के अंतर्गत रखा जाता है और विशिष्ट भूकंप स्थितियों के अंतर्गत रेत द्रवीभूत होने की उनकी क्षमता का निर्धारण करने के लिए रेत के नमूनों का संपीड़न किया जाता है।

इन परीक्षणों के लिए, वैज्ञानिकों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से प्राप्त विश्वविद्यालयों और उच्च शैक्षिक संस्थानों (एफआईएसटी) की मदद से चक्रीय सरल अपरूपण परीक्षण सेटअप (जीसीटीएस यूएसए मेक) का उपयोग किया। इस अध्ययन को इंडियन जियोटेक्निकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

शोध टीम ने पाया कि अधिक गोलाई और वृत्ताकार के साथ नियमित आकार वाले कांच के पहले चक्रीय अपरूपण परीक्षणों में द्रवीभूत होते हैं, जबकि नदी की रेत, जिसके कणों की गोलाई और जो एक समान वृत्त आकार में होते है, कांच के मानकों और कृत्रिम निर्मित रेत के बीच के होते हैं। इनके बाद तरलीकृत होते है और उसके बाद वह निर्मित रेत बनती है जिसका आकार अपेक्षाकृत अनियमित होता है।

इन परीक्षणों ने दानेदार मिट्टी की द्रवीकरण क्षमता की तुलना में रेत के आकार के महत्वपूर्ण प्रभावों को स्पष्ट रूप से दिखाया है। जैसे-जैसे कणों का आकार अनियमित होने लगता है, वैसे–वैसे ही उनका समग्र रूप एक गोले के बजाय तीखे कोने वाला होने लगता है। अलग आकार के कारण ये एक दूसरे के साथ फंस कर जुड़ने लगते हैं।

ऐसे में इंटरलॉकिंग अपरूपण के लिए अतिरिक्त प्रतिरोध प्रदान करती है, इसीलिए अनियमित आकार वाले कणों के लिए द्रव में तैरने के दौरान एक दूसरे से अलग होने की प्रवृत्ति घट जाती है। इसके अलावा प्रवाह की धीमी गति या द्रव प्रवाह में अंतर भी कणों के अनियमित आकार के साथ बढ़ता जाता है। प्रवाह में गति के धीमे होने में कमी आने से निकासी नेटवर्क का सिकुड़ना पानी के प्रवाह को कम कर देता है और पानी के माध्यम से रेत के कणों को अलग करने की संभावना भी कम हो जाती है।