विज्ञान

जंगल की आग और बादल फटने की घटनाओं में क्या है संबंध, वैज्ञानिकों ने लगाया पता

शोध से पता चला है कि बादल की छोटी बूंदों के बराबर कण, जिस पर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है, उनमें और जंगल की आग की घटनाओं के बीच गहरा सम्बन्ध है

Lalit Maurya

क्या हिमालय की तलहटी में बादल फटने की घटनाओं से जिस तरह से जीवन प्रभावित हो रहा है, क्या वो जंगल में लगने वाली आग से जुड़ा है? भारतीय वैज्ञानिकों ने इनके सम्बन्ध का पता लगाया है। हाल ही में किए एक अध्ययन से पता चला है कि बादल की छोटी बूंदों के आकार के बराबर कण, जिस पर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है, उनमें और जंगल की आग की घटनाओं के बीच गहरा सम्बन्ध है। इन छोटे कणों को क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (सीसीएन) के नाम से जाना जाता है। शोध से पता चला है कि जंगल में लगने वाली आग की घटनाओं के समय ऐसे कणों की मात्रा चरम पर थी।

हेमवती नंदन बहुगुणा (एचएनबी), गढ़वाल विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर की सक्रियता को मापा है। साथ ही उन्होंने पहली बार मध्य हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र के रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मौसम की विभिन्न स्थितियों के प्रभाव में अधिक ऊंचाई वाले बादलों के निर्माण और स्थानीय मौसम की घटनाओं की जटिलता पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया है।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

वैज्ञानिकों ने प्राचीन हिमालयी क्षेत्र में स्थित एचएनबी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड के स्वामी राम तीर्थ (एसआरटी) परिसर में स्थित हिमालयन क्लाउड ऑब्जर्वेटरी (एचसीओ) में छोटी बूंदों को मापने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक (डीएमटी) सीसीएन काउंटर की मदद से इन क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर को मापा गया था, जोकि अतिसंतृप्ति (एसएस) की मौजूदगी में कोहरे या बादल की बूंदों के रूप में सक्रिय और विकसित हो सकते हैं।

गौरतलब है कि यह अवलोकन हेमवती नंदन बहुगुणा (एचएनबी) गढ़वाल विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-आईआईटी कानपुर द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के सहयोग से किया गया है। जहां दैनिक, मासिक और मौसमी पैमाने पर सीसीएन में आने वाले अंतर की सूचना दी गई थी।

यह शोध जर्नल एटमॉस्फीयरिक एनवायरमेंट में प्रकाशित हुआ है। जो दिखाता है कि सीसीएन की उच्चतम सांद्रता भारतीय उपमहाद्वीप के जंगलों में लगने वाली आग की अत्यधिक गतिविधियों से जुड़ी हुई थी। इसके साथ ही सीसीएन के चरम पर पहुंचने के लिए अन्य तरह की घटनाएं जैसे लंबी दूरी के परिवहन और स्थानीय घरों से होने वाला उत्सर्जन भी कहीं हद तक इसके लिए जिम्मेवार था।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस शोध से हिमालय के इस क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं, मौसम की भविष्यवाणी और जलवायु परिवर्तन की स्थिति के जटिल तंत्र को समझने में मदद मिल सकती है। साथ ही यह शोध गढ़वाल हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहुंच रहे प्रदूषकों के स्रोत का पता लगाने में भी सहायक होगा। उनका मानना है कि यह अध्ययन इस क्षेत्र में बादल के निर्माण सम्बन्धी तंत्र और मौसम की चरम सीमाओं के लिए भी बेहतर समझ प्रदान करेगा।