यह तो सब जानते हैं कि हम जिस ग्रह पर रहते हैं उसे पृथ्वी कहते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि हमारे ग्रह में ऐसा क्या है जो इसे रहने लायक बनाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसके सुराग चन्द्रमा से मिल सकता है, जो जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
यदि पृथ्वी के चन्द्रमा की बात करें तो वो धरती के लिए बहुत मायने रखता है। यह धरती पर बहुत सी गतिविधियों को प्रभावित करता है। यह दिन की अवधि और समुद्री ज्वार को नियंत्रित करता है, जोकि हमारे ग्रह पर जीवों के जैविक चक्रों को प्रभावित करते हैं।
इतना ही नहीं चन्द्रमा, पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने के लिए स्थिरता प्रदान करता है, जो जलवायु को नियंत्रित करता है। इसकी वजह से धरती पर जीवन को फलने-फूलने के लिए एक आदर्श वातावरण मिलता है। इस बारे में रोचेस्टर विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि चन्द्रमा पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन का आधार हो सकता है। उन्होंने इस विषय पर जो शोध किया है वो जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।
आमतौर पर अधिकांश ग्रहों के चन्द्रमा होते हैं। पर पृथ्वी का जो चन्द्रमा है वो कुछ अलग है, देखा जाए तो यह पृथ्वी के अनुपात में काफी बड़ा है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे चन्द्रमा का रेडियस पृथ्वी के रेडियस के करीब एक चौथाई से ज्यादा बड़ा है। जो अन्य ग्रहों के चन्द्रमा के आकार से अनुपातिक रुप से काफी बड़ा है। यदि रोचेस्टर विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता मिकी नाकाजिमा की मानें तो यह अंतर बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने, टोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और एरिज़ोना विश्वविद्यालय के अपने सहयोगियों के साथ मिलकर चन्द्रमा की संरचना की जांच की है और यह निष्कर्ष निकाला है कि केवल कुछ विशेष प्रकार के ग्रह अपने अनुपात में इतने बड़े चन्द्रमा का निर्माण कर सकते हैं।
कैसे हुआ था चन्द्रमा का निर्माण
बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से करीब 450 करोड़ साल पहले जब पृथ्वी अपने विकास के शुरूआती चरणों में थी तब एक मंगल के आकार का बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था जिसके कारण पृथ्वी के चारों और एक आंशिक रूप से वाष्पीकृत डिस्क का निर्माण हुआ था जो समय के साथ चन्द्रमा में बदल गई थी।
यह पता लगाने के लिए की क्या अन्य ग्रह भी समान रूप से इतने बड़े चन्द्रमा का निर्माण कर सकते हैं नकाजिमा और उनके सहयोगियों ने कंप्यूटर पर पृथ्वी जैसे कई काल्पनिक ग्रहों और अलग-अलग भार के बर्फीले ग्रहों के आपसी प्रभाव के सिमुलेशन बनाए हैं। जिससे यह जाना जा सके की क्या इनके आपसी प्रभाव वाष्पीकृत डिस्क का निर्माण कर सकते हैं जैसी डिस्क ने पृथ्वी के चन्द्रमा के निर्माण में योगदान दिया था।
शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि पृथ्वी के द्रव्यमान से छह गुना बड़े चट्टानी ग्रह और पृथ्वी के आकर से कुछ ज्यादा बड़े बर्फीले गृह का टकराव पूरी तरह से वाष्पीकृत डिस्क बना सकते हैं लेकिन वो आंशिक रूप से वाष्पीकृत डिस्क बनाने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में पूरी तरह से वाष्पीकृत डिस्क इतने बड़े चन्द्रमा का निर्माण नहीं कर सकती।
नाकाजिमा का कहना है, चन्द्रमा की संरचना को समझकर हम यह जान सकते हैं कि पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज करते समय हमें किस बात का ध्यान रखना है। उनके अनुसार हमारे सौर मंडल के बाहर भी ऐसे ग्रह होंगे जिनके चन्द्रमा हमारे चंद्रमा से मिलते होंगें। लेकिन अब तक उनकी पुष्टि नहीं हुई है।
ऐसे में यह जानकारी भविष्य में उन ग्रहों को खोजने में मददगार हो सकती है जिनपर जीवन की सम्भावना है। यह सही है कि वैज्ञानिकों ने हजारों एक्सोप्लैनेट और संभावित एक्सोमून का पता लगाया है, लेकिन अभी तक निश्चित रूप से हमारे सौर मंडल के बाहर किसी ऐसे चन्द्रमा को नहीं देखा है जो अपने ग्रह की परिक्रमा कर रहा हो। यह शोध उनकी इस मामले में मदद कर सकता है कि उन्हें इसके लिए कहां देखना है।
इस बारे में नकाजिमा का कहना है कि, 'एक्सोप्लैनेट की खोज आमतौर पर उन ग्रहों पर केंद्रित है जिनका द्रव्यमान पृथ्वी से छह गुना है। उनके अनुसार इन बड़े ग्रहों की तुलना में हमें छोटे ग्रहों को देखना चाहिए क्योंकि वो बड़े चंद्रमाओं की मेजबानी करने के लिए कहीं बेहतर उम्मीदवार हैं। हालांकि पृथ्वी के बाहर जीवन है या नहीं यह अभी भी एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में अब तक कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं जानता।