विज्ञान

सक्रिय हो सकते हैं शुक्र पर मौजूद ज्वालामुखी, रडार की दशकों पुरानी छवियों से हुआ खुलासा

नासा के मैगेलन अंतरिक्ष यान ने 1990 से 1992 के बीच शुक्र की तस्वीरों को कैप्चर किया था

Rohini Krishnamurthy, Lalit Maurya

आकार, द्रव्यमान, घनत्व और आयतन में एक जैसे होने के कारण शुक्र और पृथ्वी को अक्सर जुड़वा बहनें भी कहा जाता है। वहीं रडार की दशकों पुरानी तस्वीरों के अध्ययन से पता चला है कि इन दोनों ग्रहों में एक और समानता है और वो समानता है इन दोनों ग्रहों पर मौजूद सक्रिय ज्वालामुखी।

जर्नल साइंस में प्रकाशित इस नए अध्ययन में शुक्र पर सक्रिय ज्वालामुखी के होने के साक्ष्य सामने आए हैं। रिसर्च से पता चला है कि आठ महीनों में शुक्र ग्रह पर 2.2 वर्ग किलोमीटर में फैली ज्वालामुखी वेंट के आकार में बदलाव देखा गया है, जो ज्वालामुखी संबंधी गतिविधियों का संकेत देता है।

गौरतलब है कि ज्वालामुखीय वेंट एक ऐसा स्थान है, जिसके माध्यम से पिघली चट्टानें मैग्मा के रूप में ज्वालामुखी से बाहर निकलती है। तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि इस वेंट का आकार बढ़कर लगभग दोगुना हो गया है जो अब चार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया है।

इस बारे में अलास्का फेयरबैंक्स विश्वविद्यालय के शोध प्रोफेसर रॉबर्ट हेरिक का कहना है कि, “मैगेलन स्पेसक्राफ्ट द्वारा विभिन्न कक्षाओं की छवियों की 200 घंटों तक मैन्युअल रूप से तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद मैंने एक ही क्षेत्र की दो छवियां देखीं, जो विस्फोट के कारण हुए भूगर्भीय परिवर्तनों को प्रदर्शित करती हैं।“

हालांकि शुक्र पर 1,600 से ज्यादा प्रमुख ज्वालामुखी हैं, लेकिन अब तक किसी को भी सक्रिय नहीं माना गया था। पिछले शोधों में इस बात के प्रमाण मिले थे कि वहां ज्वालामुखीय गतिविधियां हो सकती हैं, जिन पर अभी भी बहस चल रही है।

हैरान कर देने वाले हैं प्रमाण

अपने इस अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ अलास्का फेयरबैंक्स, और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के मैगेलन स्पेस मिशन द्वारा शुक्र की रडार से ली छवियों का विश्लेषण किया था। यह अंतरिक्ष यान 4 मई, 1989 से 13 अक्टूबर, 1994 तक मिशन पर था।

रडार इमेजिंग की मदद से सतह की तस्वीरें लेने के लिए रेडियो वेवलेंथ्स का उपयोग किया गया था। मैगेलन ने विभिन्न कक्षाओं से शुक्र के सतह की तस्वीरें लेने के लिए रडार तकनीक का उपयोग किया था। कुछ स्थान, जिनमें ज्वालामुखीय गतिविधि होने की आशंका थी, उनको दो वर्षों में दो या तीन बार देखा गया।

शोधकर्ताओं के अनुसार, कुल मिलाकर इसकी सतह के करीब 42 फीसदी हिस्से को दो या उससे अधिक बार चित्रित किया गया था। उन्होंने दो इमेजिंग साइकल्स के बीच भूगर्भिक विशेषताओं में आए बदलाव को समझने के लिए 1990 से 1992 की छवियों का विश्लेषण किया।

पहली छवि में, वेंट लगभग गोलाकार दिखाई दिया। अध्ययन के अनुसार यह लावा खत्म होने का संकेत देता है, जो कहीं न कहीं इसमें हुई गतिविधियों का संकेत देता है। करीब आठ महीने बाद, रडार छवियों ने संकेत दिया कि वही वेंट आकार में बढ़कर दोगुना हो गया है और लावा झील रिम तक पहुंच गई है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह वेंट ग्रह के दूसरे सबसे ऊंचे ज्वालामुखी माट मॉन्स से जुड़ा है । यह एटला रेजियो में स्थित है, जोकि शुक्र की भूमध्य रेखा के पास एक विशाल पहाड़ी क्षेत्र है। यह बदलाव संभावित ज्वालामुखीय गतिविधियों की ओर इशारा करते हैं। जो वेंट से निकलने वाले लावा प्रवाह का नतीजा थे।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में जानकारी दी है कि, "बदला हुआ यह वेंट एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है जहां ज्वालामुखीय गतिविधियों की संभावना सबसे अधिक थी।"

भारत में भी चल रहा है शुक्रयान-1 पर काम

हालांकि, शोधकर्ताओं का अनुमान है कि शुक्र, बृहस्पति के चंद्रमा 'लो' की तुलना में बहुत कम सक्रिय है, जहां 100 से अधिक सक्रिय स्थान हैं। 2021 के एक अध्ययन से पता चला है कि दक्षिणी शुक्र में एक ज्वालामुखी चोटी ‘इडुन मॉन्स’ में ज्वालामुखी गतिविधि का संकेत मिला था।

इन्हीं के मद्देनजर शुक्र के लिए तीन मिशन भेजे जाने की योजना बनाई जा रही है, इनमें नासा का वेरिटस और दविन्ची और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के 'EnVision' शामिल हैं। इनके द्वारा 2030 तक हमारे इस पड़ोसी ग्रह का निरीक्षण किए जाने की उम्मीद है।

इस बारे में  तुलाने विश्वविद्यालय और शोध से जुड़ी शोधकर्ता जेनिफर व्हिटेन का कहना है कि, "शुक्र एक गूढ़ दुनिया है और मैगलन ने अनेक संभावनाओं को छेड़ दिया है।" उनका कहना है कि, "अब हमें इस बात का पूरा भरोसा है कि ग्रह ने केवल 30 वर्ष पहले ज्वालामुखी विस्फोट का अनुभव किया था। देखा जाए तो यह वेरिटस द्वारा की जाने वाली अविश्वसनीय खोजों का एक छोटा सा हिस्सा है।

गौरतलब है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भी शुक्र का अध्ययन करने के लिए शुक्रयान-1 पर काम कर रहा है। द हिंदू अखबार के मुताबिक, यह ऑर्बिटर संभवतः ग्रह की भूगर्भीय और ज्वालामुखीय गतिविधियों, जमीन पर हो रहे उत्सर्जन, हवा की गति, बादलों और ग्रहों की अन्य विशेषताओं का एक अण्डाकार कक्षा में रहते हुए अध्ययन करेगा।