विज्ञान

टाइफाइड के खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है टमाटर का रस, रिसर्च में खुलासा

रिसर्च से पता चला है कि टमाटर में मौजूद अदभुत गुण 'साल्मोनेला टाइफी' जैसे हानिकारक बैक्टीरिया को भी खत्म कर सकते हैं, जो टाइफाइड बुखार की वजह बनता है

Lalit Maurya

रिसर्च में सामने आया है कि टमाटर के रस में मौजूद अदभुत गुण 'साल्मोनेला टाइफी' जैसे हानिकारक बैक्टीरिया को भी खत्म कर सकते हैं। यह बैक्टीरिया इंसानों में टाइफाइड बुखार का कारण बनता है

वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि टमाटर में कमाल के एंटीऑक्सीडेंट और रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जिसकी वजह से वो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद समझा जाता है। इसकी पुष्टि यह हालिया अध्ययन भी करता है, जिसका मानना है कि इसमें मौजूद गुण 'साल्मोनेला टाइफी' (एस टाइफी) जैसे हानिकारक बैक्टीरिया को भी खत्म कर सकते हैं।

इतना ही नहीं इस शोध के मुताबिक टमाटर का रस पाचन तंत्र और यूरिनरी ट्रैक्ट को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक बैक्टीरिया से भी लड़ने की क्षमता रखता है।

बता दें कि ‘साल्मोनेला टाइफी' एक खतरनाक बैक्टीरिया है, जो विशेष रूप से इंसानों को प्रभावित करता है और उनमें टाइफाइड बुखार का कारण बनता है। गौरतलब है कि टमाटर के हैरतअंगेज गुणों को उजागर करने वाले इस अध्ययन के नतीजे अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी के जर्नल माइक्रोबायोलॉजी स्पेक्ट्रम में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि टमाटर बेहद आसानी से उपलब्ध होने वाली सब्जियों में से एक है। जो सस्ती होने के साथ-साथ एंटीऑक्सिडेंट और रोगाणुरोधी गुणों से भरपूर होती है। हालांकि इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुणों के विपरीत, इसकी रोगाणुरोधी क्षमताओं का अब तक पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है। यही वजह है कि वैज्ञानिक इसके इन गुणों को ज्यादा से ज्यादा समझने की कोशिश कर रहे हैं।

अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टमाटर के रस और इसमें मौजूद पेप्टाइड्स, जिसे टमाटर-व्युत्पन्न रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स (टीडीएएमपी) के नाम से जाना जाता है, के रोगाणुरोधी गुणों की जांच की है। उन्होंने यह भी समझने का प्रयास किया है कि यह पेप्टाइड्स टाइफाइड बुखार के लिए जिम्मेवार बैक्टीरिया ‘साल्मोनेला टाइफी’ के खिलाफ कितने प्रभावी होते हैं।

गुणों की खान है टमाटर

इस बारे में कॉर्नेल विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी विभाग से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जियोंगमिन सॉन्ग का कहना है कि, “इस अध्ययन में हमारा लक्ष्य यह जांचना था कि क्या टमाटर और उसका रस एस टाइफी के साथ-साथ आंत में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है और यदि हां तो इनमें ऐसे कौन से गुण होते हैं जो इसमें मददगार होते हैं।“

अपने शुरूआती प्रयोगों में शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की कि क्या टमाटर के रस में मौजूद जीवाणुरोधी गुण साल्मोनेला टाइफी के खिलाफ कारगर हैं। इस बात की पुष्टि होने के बात की वो ऐसा करते हैं, उन्होंने इसके लिए जिम्मेवार रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स का पता लगाने के टमाटर की आनुवंशिक संरचना (जीनोम) की जांच की।

उन्हें पता चला है कि रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स बहुत छोटे प्रोटीन हैं, जो जीवाणु की झिल्ली को खराब कर देते हैं। यह झिल्ली रोगजनकों को घेरने वाली एक सुरक्षात्मक परत होती है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को चार संभावित रोगाणुरोधी पेप्टाइड्स में से, दो का पता चला जो परीक्षण के दौरान 'साल्मोनेला टाइफी' के खिलाफ प्रभावी साबित हुए। इसके बाद शोधकर्ताओं ने एस टाइफी के वेरिएंट्स पर और अधिक परीक्षण किए जो उन स्थानों पर दिखाई देते हैं जहां यह बीमारी बेहद आम है। जांच में सामने आया है कि टमाटर का रस उन दूसरे आक्रामक वैरिएंट के खिलाफ भी कारगर है।

उन्होंने यह समझने के लिए एक कंप्यूटर आधारित अध्ययन भी किया कि जीवाणुरोधी पेप्टाइड्स 'एस टाइफी' और आंत में मौजूद अन्य रोगजनकों को कैसे खत्म करते हैं। इस जांच के जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चला कि टमाटर का रस आंत में पाए जाने वाले अन्य रोगजनकों के खिलाफ भी अच्छी तरह काम करता है, जो लोगों के पाचन तंत्र और यूरिनरी ट्रैक्ट को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

वहीं पोलिश वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि सोलनम जीन वाले पौधे जिनमें टमाटर भी शामिल हैं उनमें ऐसे बायोएक्टिव यौगिक मौजूद होते हैं, जिनकी मदद से कैंसर की दवाएं तैयार की जा सकती हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल फ्रंटियर्स इन फार्माकोलॉजी में प्रकाशित हुए थे।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जब आम जनता, विशेष तौर पर बच्चों और किशोरों को इसके फायदों के बारे में पता चलेगा, तो वो दूसरी फल सब्जियों के साथ-साथ अधिक टमाटर खाने के लिए प्रेरित होंगें। जो बैक्टीरिया के खिलाफ प्राकृतिक तौर पर सुरक्षा प्रदान करते हैं, और उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। 

उपरोक्त जानकारी वैज्ञानिक शोध पर आधारित है, ऐसे में इसपर अमल करने से पहले अपने डॉक्टर या हेल्थ एक्सपर्ट की राय अवश्य लें।