वैज्ञानिकों ने पहली बार कॉस्मिक रेडिएशन और भूकंप के बीच के सम्बन्ध को खोज निकाला है। उनके बीच की यह कड़ी भूकंप की भविष्यवाणी करने में मददगार साबित हो सकती है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर आने वाले भूकम्पों और पृथ्वी की सतह पर कॉस्मिक रेडिएशन के स्तर में होने वाले बदलावों के बीच एक मजबूत सम्बन्ध होता है। दिलचस्प बात यह है कि इनका यह संबंध एक ऐसे पैटर्न का अनुसरण करता है जिसकी स्पष्ट रूप से भौतिक व्याख्या करना मुश्किल है।
धरती पर भूकम्पों का आना कोई नया नहीं है। यह सिलसिला लाखों करोड़ों वर्षों से चल रहा है। लेकिन कई भूकंप इतने शक्तिशाली होती हैं कि उनके विनाशकारी नतीजे सामने आते हैं, जिनमें जान-माल की भारी क्षति होती है। ऐसे में यदि हम इस बात की भविष्यवाणी कर सकें कि ये विनाशकारी घटनाएं कब और कहां घटित होंगी तो हम संभावित रूप से इन त्रासदियों के पैमाने को कम कर सकते हैं।
ऐसी ही खोज में पोलिश एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएफजे पीएएन) के परमाणु भौतिकी संस्थान के वैज्ञानिक वर्षों से लगे हुए हैं। इस संस्थान द्वारा 2016 में शुरू की गई कॉस्मिक रे एक्सट्रीमली डिस्ट्रीब्यूटेड ऑब्जर्वेटरी (सीआरईडीएओ) परियोजना का उद्देश्य इसी परिकल्पना का परीक्षण करना है कि क्या कॉस्मिक रेडिएशन में आने वाले बदलावों का अध्ययन करके भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ऑफ एटमॉस्फेरिक एंड सोलर-टेरेस्ट्रियल फिजिक्स के जून 2023 अंक में प्रकाशित हुए हैं।
वैज्ञानिकों ने जो इसके सांख्यिकीय विश्लेषण किए हैं उनसे पता चला है कि भूकंप और कॉस्मिक रेडिएशन के बीच संबंध होता है, लेकिन इस संबंध की प्रकृति में अप्रत्याशित विशेषताएं हैं जो पहले अज्ञात थीं।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पहले से ज्ञात इस परिकल्पना को सत्यापित करने पर ध्यान दिया है कि कॉस्मिक रेडिएशन में बदलावों को मापकर भूकंप की संभावित भविष्यवाणी की जा सकती है। इस बारे में संस्थान ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि, "इन दोनों घटनाओं के बीच संबंध वास्तव में मौजूद है, लेकिन यह रिसर्च उन विशेषताओं को प्रकट करती है जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी।"
बता दें कि सीआरईडीएओ परियोजना का मुख्य लक्ष्य हमारी पृथ्वी की सतह तक पहुंचने वाले सेकेंडरी कॉस्मिक रेडिएशन के प्रवाह में आए वैश्विक बदलावों का अध्ययन और निगरानी करना है। यह विकिरण पृथ्वी के समताप मंडल में तथाकथित उस क्षेत्र में उत्पन्न होता है जिसे रीजेनर-फॉटजर मैक्सिमम के रूप में जाना जाता है। यह वो जगह है जहां प्राइमरी कॉस्मिक रेडिएशन के कण हमारे वायुमंडल में मौजूद गैसों के अणुओं से टकराते हैं और सेकंडरी कणों के प्रवाह की शुरूआत करते हैं।
क्या कहता है विज्ञान
इस विषय में मुख्य अवधारणा यह है कि पृथ्वी के तरल कोर में एड्डी धाराएं ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करती हैं। यह क्षेत्र प्राइमरी कॉस्मिक रेडिएशन से आवेशित कणों के मार्ग को विक्षेपित करता है। ऐसे में यदि बड़े भूकंप, पृथ्वी के डायनेमो को चलाने वाले पदार्थ के प्रवाह में गड़बड़ी से जुड़े होते हैं।
यह प्रवाह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के निर्माण को संचालित करता है, ऐसे में इनमें आई गड़बड़ी चुंबकीय क्षेत्र को प्रभावित कर देती है। नतीजन ग्रह के भीतर इस गड़बड़ी की गतिशीलता के आधार पर कॉस्मिक रेडिएशन के प्राइमरी कणों के मार्ग भी इससे प्रभावित होंगें। ऐसे में यदि भूकंप जैसी कोई गड़बड़ी होती है तो जमीन पर मौजूद डिटेक्टर, कॉस्मिक रेडिएशन के सेकेंडरी कणों की संख्या में आने वाले बदलावों का पता लगा सकेंगें।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और सीआरईडीएओ परियोजना के समन्वयक डॉक्टर पिओट्र होमोला का कहना है कि पहली नज़र में, यह विचार अजीब लग सकता है कि भूकंप और कॉस्मिक रेडिएशन के बीच संबंध है, जो मुख्य रूप से सूर्य और गहरे अंतरिक्ष से हम तक पहुंचता है।" हालांकि उनके मुताबिक इस विचार के पीछे तार्किक और वैज्ञानिक रूप से ठोस कारण हैं।
इस अध्ययन में सीआरईडीएओ के वैज्ञानिकों ने दो वेधशालाओं, न्यूट्रॉन मॉनिटर डेटाबेस और पियरे ऑगर ऑब्जर्वेटरी से प्राप्त कॉस्मिक किरणों की तीव्रता के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन वेधशालाओं को इसलिए चुना गया क्योंकि वे भूमध्य रेखा के विभिन्न किनारों पर स्थित हैं और पहचान के लिए अलग-अलग तकनीकों को उपयोग करती हैं। साथ ही सोलर इन्फ्लुएंस डेटा एनालिसिस सेंटर के आंकड़ों का उपयोग करके सौर गतिविधि में आए बदलावों पर भी विचार किया गया है। वहीं भूकंप की जानकारी अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण कार्यक्रम से प्राप्त की गई है।
वैज्ञानिकों ने इन आंकड़ों के विश्लेषण के लिए सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग किया है। इसकी जांच के हर मामले में कॉस्मिक रेडिएशन की तीव्रता और चार या उससे ज्यादा तीवता के भूकंप के बीच स्पष्ट सम्बन्ध देखा गया। महत्वपूर्ण रूप से यह सहसंबंध तब भी देखा गया जब कॉस्मिक किरणों के आंकड़ों को भूकंपीय आंकड़ों के सापेक्ष 15 दिन आगे स्थानांतरित कर दिया गया। इससे पता चलता है कि इस तकनीक की मदद से भूकंप का जल्द पता लगाया जा सकता है।
हालांकि विश्लेषणों से भूकंप के विशिष्ट स्थानों का पता नहीं चल सका। मतलब की कॉस्मिक किरणों की तीव्रता में आए बदलकर और भूकंप के बीच सम्बन्ध वैश्विक स्तर पर स्पष्ट थे। जो इंगित करता है कि कॉस्मिक किरणों की तीव्रता में आए बदलाव पूरे ग्रह को प्रभावित करने वाली घटना को प्रतिबिंबित कर सकते हैं।