पृथ्वी की आंतरिक संरचना; फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान

धीमी पड़ रही है पृथ्वी के आंतरिक कोर के घूमने की रफ्तार, जानिए किन चीजों पर पड़ेगा असर

रिसर्च से पता चला है कि पृथ्वी के आंतरिक कोर के घूमने की रफ्तार उसकी सतह की तुलना में धीमी पड़ रही है, अंदेशा है कि इससे दिन की अवधि पर असर पड़ सकता है

Lalit Maurya

एक नई रिसर्च से पता चला है कि पृथ्वी के आंतरिक कोर के घूमने की रफ्तार उसकी सतह की तुलना में धीमी पड़ रही है। रिसर्च में इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले है कि आंतरिक कोर की रफ्तार 2010 के आसपास कम होनी शुरू हो गई थी।

ऐसे में आप में से बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होगा कि आंतरिक कोर के घूमने की रफ्तार में होने वाला बदलाव इंसानों को कैसे प्रभावित करेगा। बता दें कि वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि इसकी वजह से आने वाले समय में दिन की अवधि पर असर पड़ सकता है। हालांकि साथ ही उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की है कि दिन के समय पर पड़ने वाला यह प्रभाव एक सेकंड से भी कम होगा।

मतलब साफ है यह बदलाव आम लोगों द्वारा महसूस नहीं किया जाएगा। दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे 12 जून 2024 को जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।

पृथ्वी की संरचना में नजर डालें तो यह मुख्य रूप से तीन परतों में बनी है, जिसकी सबसे ऊपरी परत को क्रस्ट कहते हैं। पृथ्वी का यह वो हिस्सा है जिसपर हम इंसान और जैवविविधता बसती है। इसके बाद मेंटल है और तीसरी एवं सबसे अंदरूनी परत को कोर कहा जाता है। यह कोर दो हिस्सों आंतरिक और बाह्य में बंटा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी का यह आंतरिक कोर लोहे और निकल से बना एक ठोस गोला है, जो गुरुत्वाकर्षण की वजह से अपने स्थान पर स्थिर बना रहता है।

यदि इसके आकार की बात करें तो यह करीब-करीब चंद्रमा के बराबर है। इसकी गहराई के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पृथ्वी की ऊपरी सतह से करीब 4,828 किलोमीटर से भी ज्यादा नीचे स्थित है। चूंकि इतनी गहराई में होने की वजह से सीधे तौर पर इसे देखा या उस तक पहुंचा नहीं जा सकता। ऐसे में वैज्ञानिक इसके अध्ययन के लिए भूकंपीय तरंगों की मदद लेते हैं।

देखा जाए तो वैज्ञानिकों के बीच इस आंतरिक कोर की गति को लेकर पिछले दो दशकों से बहस चल रही है। कुछ शोधों का मानना है कि यह आंतरिक कोर पृथ्वी की सतह से भी ज्यादा तेजी से घूमता है। लेकिन अपने इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि 2010 के आसपास इसकी गति धीमी होनी शुरू हो गई और यह पृथ्वी की सतह से धीमी रफ्तार में घूम रहा है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर जॉन विडेल ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "जब मैंने पहली बार इस बदलाव को दर्शाने वाले सीस्मोग्राम देखे, तो मैं हैरान रह गया।" "लेकिन इसी पैटर्न का संकेत देने वाले दो दर्जन से अधिक अवलोकन मिलने के बाद, यह स्पष्ट हो गया कि दशकों में पहली बार आंतरिक कोर धीमा हो गया है।"

किन कारणों से हो रहा है यह बदलाव

शोध के मुताबिक आंतरिक कोर अब पृथ्वी की सतह की तुलना में धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जैसे की यह पीछे की ओर जा रहा हो। ऐसा करीब 40 वर्षों में पहली बार हुआ है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बार-बार आने वाले भूकंपों और भूकम्पीय तरंगों का उपयोग किया है। यह भूकंप एक ही स्थान पर बार-बार आते हैं और समान सीस्मोग्राम बनाते हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1991 से 2023 के बीच दक्षिण सैंडविच द्वीप समूह के पास 121 बार आने वाले भूकंपों के भूकंपीय आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही उन्होंने 1971 और 1974 के बीच सोवियत परमाणु परीक्षणों और आंतरिक कोर के अन्य अध्ययनों से दोहराए गए फ्रांसीसी और अमेरिकी परमाणु परीक्षणों के आंकड़ों का भी मदद ली है।

विडेल ने इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए प्रेस से साझा की जानकारी में कहा है कि आंतरिक कोर की धीमी होती गति, उसके चारों और बाहरी कोर में घूमते तरल लोहे के मंथन की वजह से है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है। इसके ऊपर चट्टानी मेंटल के घने क्षेत्रों से गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न होता है। विडेल के मुताबिक कोर की धीमी होती गति के लिए उसके चारों ओर घूमते तरल लोहा की वजह से है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। इसके साथ ही गुरुत्वाकर्षण खिंचाव की भी इसमें भूमिका है।

इसके प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि आंतरिक कोर की गति में परिवर्तन से दिन की अवधि पर मामूली प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन आम लोगों द्वारा इसे नोटिस करना बहुत कठिन है। भविष्य में वैज्ञानिक आंतरिक कोर का अधिक बारीकी से अध्ययन करना चाहते हैं ताकि यह समझा जा सके कि इसमें यह बदलाव क्यों आ रहे हैं। विडेल को लगता है कि आंतरिक कोर की हलचलें हमारी कल्पना से कहीं अधिक दिलचस्प हो सकती हैं।

गौरतलब है कि इसी साल मार्च 2024 में जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में सामने आया था कि ध्रुवों पर जमा बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण पृथ्वी की घूर्णन की रफ्तार धीमी हो रही है। इसकी वजह से पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी वजह से हमे कुछ वर्षों के भीतर पहली बार लीप सेकंड को घटाने की आवश्यकता पड़ सकती है।