विज्ञान

कार्बन की अधिकता वाले तारे अपने से छोटे तारों से भारी तत्व अपने में मिला लेते हैं: शोध

सितारों पर देखे गए बढ़े हुए भारी तत्व वास्तव में उनके कम-द्रव्यमान वाले तारों के विकास के एक चरण में उत्पन्न होते हैं जिसे एसिम्प्टोटिक जाइंट ब्रांच (एजीबी) कहा जाता है

Dayanidhi

वैज्ञानिक लंबे समय से सितारों में उपलब्ध भारी तत्वों को जानने के लिए उत्सुक रहे हैं। खगोलविदों का मानना है कि कार्बन की अधिकता वाले सितारों में लोहे की तुलना में भारी तत्वों की उपलब्धता बहुत अधिक हो सकती है। भारतीय खगोलविदों के एक नए शोध में इस बात का पता चला है कि तारे अपने से कम द्रव्यमान वाले तारों यानी अपने से छोटे तारों की सतह के कई महत्वपूर्ण और भारी तत्वों को अपनी और आकर्षित कर उसे अपने में मिला लेते हैं।

यह सही है कि ब्रह्मांड में कई रासायनिक तत्वों और उनके समस्थानिकों की उत्पत्ति और विकास को समझने में महत्वपूर्ण विकास हुआ है। परंतु अभी तक ब्रह्मांड में भारी तत्वों, यानी लोहे से भी अधिक भारी तत्वों की उत्पत्ति और विकास के बारे में स्पष्ट जानकारी का अभाव है, यानी इसको अभी तक समझा नहीं जा सका है।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान बेंगलुरु के भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के खगोलविदों की एक टीम ने इस गुत्थी को सुलझाया है। प्रोफेसर अरुणा गोस्वामी की अगुवाई में मीनाक्षी पी और शेजीलम्मल जे ने कई कार्बन एन्हांस्ड मेटल-पुअर (सीईएमपी) सितारों की सतह की रासायनिक संरचना का विश्लेषण किया। इस पहेली को सुलझाने में उन्होंने एक महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह शोध 'द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल' में प्रकाशित हुआ है।

कार्बन एनहांस्ड मेटल पुअर (सीईएमपी) तारों को विविध प्रकार के भारी तत्वों के आधार पर इन्हें चार समूहों में वर्गीकृत किया जाता है। जिसमें भारी तत्वों के समूह प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये ज्यादातर बहुत छोटे तारे, विशाल या उससे भी अधिक विशाल तारे हैं। जो तारे इन उत्पत्ति के चरणों से होकर गुजरते हैं, वे लोहे से भारी तत्वों का उत्पादन नहीं कर सकते हैं।

उत्पत्ति के चरणों के दौरान जिसमें तारों का अस्तित्व मौजूद है, उनसे भारी तत्वों के उत्पादन की संभावना नहीं होती है। हालांकि, इन तारों की सतह की रासायनिक संरचना में भारी तत्वों की अधिकता दिखाई देती है, जो सूर्य की तुलना में लगभग 100 से 1000 गुना अधिक बड़े होते हैं। प्रो गोस्वामी ने बताया कि हमने भारी तत्वों की बहुतायत की उत्पत्ति का अध्ययन किया और हमें सतह पर रसायनों के प्रचुरता में मौजूद होने के संभावित संकेत प्राप्त हुए।

इस गुत्थी को सुलझाने में शोधकर्ताओं के इस टीम ने इंडियन एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी, हानले में 2-एम हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप (एचसीटी), चिली के ला सिला में यूरोपीय दक्षिणी ऑब्जर्वेटरी में 1.52-एम टेलीस्कोप और जापान के राष्ट्रीय खगोलीय वेधशाला द्वारा संचालित मौनाके, हवाई के शिखर पर 8.2-एम सुबारू टेलीस्कोप से प्राप्त किए गए सितारों के उच्च गुणवत्ता, उच्च-रिज़ॉल्यूशन स्पेक्ट्रा का विश्लेषण किया। 

उन्होंने अपने अध्ययन में कार्बन, मैग्नीशियम, स्ट्रोंटियम, बेरियम, यूरोपियम, लैंथेनम आदि जैसे कुछ प्रमुख तत्वों के मौलिक बहुतायत अनुपात का उपयोग किया, जिससे कई महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं कि किस तरह से इन तत्वों की अधिकता बढ़ती है।

कार्बन एनहांस्ड मेटल पुअर (सीईएमपी) सितारों पर देखे गए बढ़े हुए भारी तत्व वास्तव में उनके कम-द्रव्यमान वाले तारों के विकास के एक चरण में उत्पन्न होते हैं जिसे एसिम्प्टोटिक जाइंट ब्रांच (एजीबी) कहा जाता है और जिसे बदल दिया जाता है। कम द्रव्यमान वाले एक जैसे तारे आगे बहुत छोटे तारों के रूप में विकसित हुए हैं जिनका पता नहीं लग पाता है।

वैज्ञानिकों ने वर्गीकरण योजनाओं के आधार पर एक समूह बनाया और यह जांचने के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों का उपयोग किया कि क्या तारे रेडियल वेग में बदलाव दिखाते हैं और पाया कि अधिकांश तारे वास्तव में दो हिस्सों में बटे हैं या बायनेरिज हैं।

शोधकर्ता शीजीलम्माल और मीनाक्षी ने बताया कि विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि कम द्रव्यमान वाले एक जैसे तारे कम धातु के भी होते हैं।