रेडबाउड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी स्मार्ट शर्ट बनायी है जो एक मोबाइल ऐप की सहायता से आपकी सांसों को माप सकती है, जो कि फेफड़ों से संबंधित बिमारियों की रोकथाम के लिए मददगार हो सकती है
यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी के अंतराष्ट्रीय सम्मलेन में प्रस्तुत शोध के अनुसार वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्मार्ट शर्ट बनायी है, जो छाती और पेट में हो रही हलचलों के माध्यम से सांसों को माप सकती है । इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ स्वस्थ लोगों की सांस को उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों के दौरान मापा । जिसके लिए उन्होंने इस स्मार्ट शर्ट को एक मोबाइल ऐप के साथ जोड़कर प्रयोग किया है । वैज्ञानिकों को यह जानकर अत्यधिक हैरानी हुई कि यह माप, पारंपरिक उपकरणों की तुलना में कहीं अधिक सटीक था ।
रेडबाउड यूनिवर्सिटी में तकनीकी चिकित्सक डेनिस मैने ने बताया कि "हालांकि स्मार्ट शर्ट पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन वे सिर्फ पेशेवर या शौकिया खिलाडियों द्वारा ही उपयोग की जाती हैं। हम अपने अध्ययन में यह देखना चाहते थे कि क्या एक स्मार्ट शर्ट फेफड़ों के कार्य को मापने में सक्षम है और क्या वो इसके लिए एक सटीक और अधिक उपयोगी विकल्प बन सकती है"।
इन स्मार्ट शर्ट्स, को "हेक्सोस्किन" कहा जाता है । जब इसे पहनने वाले व्यकित के द्वारा सांस अंदर ली जाती है, और वापस छोड़ी जाती है, तब यह शर्ट उसकी छाती के फैलने और सिकुड़ने की मापों को अंकित कर लेती है । और इसके उपयोग से यह सांस को लेने और छोड़ने के दौरान ली गयी वायु की मात्रा को माप लेती है । इसके साथ ही यह हृदय गति को भी रिकॉर्ड कर सकती है ।
यह स्मार्ट शर्ट सांस के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है, जिसे वो अपने रोजमर्रा के कामो को करने के दौरान पहन सकते हैं । इसके द्वारा उनके फेफड़ों की कार्यक्षमता पर नजर रक्खी जा सकती है , जो कि उनके इलाज के लिए बहुत अधिक लाभदायक हो सकती है । अपनी इस सफलता को देखते हुए शोधकर्ता अब उन रोगियों पर इस स्मार्ट शर्ट का परीक्षण करने की योजना बना रहे हैं, जिन्हें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) है ।
वैश्विक स्तर पर कितनी गंभीर है सांस की समस्या
विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 6.5 करोड़ लोग फेफड़ों से सम्बंधित बीमारी, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ित है । वहीं हर साल करीब 32 लाख लोग इस बीमारी के चलते असमय मर जाते है । यह बीमारी दुनिया भर में होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण है । आज वैश्विक स्तर पर 33.4 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित है | जबकि 14 फीसदी बच्चे फेफड़ों की बिमारियों से ग्रसित है और जिसका सबसे बड़ा कारण धूम्रपान और बढ़ता वायु प्रदूषण है |
यदि भारत की बात करें तो ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी, 2018 से पता चला है कि 2017 में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के चलते 958,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी । वहीं 2016 में 75 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित थे । इस वर्ष में देश में होने वाली कुल मौतों में से 13 फीसदी मौतों के लिए यही बीमारी जिम्मेदार थी