विज्ञान

झींगा पालन: वैज्ञानिकों ने जलीय कृषि रोगाणु परीक्षण उपकरण किया विकसित

शोध में कहा गया है की यह उपकरण बीमारी का 100 फीसदी तक शुरुआती पहचान केवल 20 मिनट में कर लेता है

Dayanidhi

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक सुविधाजनक परीक्षण करने वाला उपकरण विकसित किया है। यह जलीय कृषि में रोगाणु का पता लगाता है, जिसे व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (डब्ल्यूएसएसवी) के रूप में जाना जाता है।

यह कारनामा आगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने किया है। उन्होंने पेप्टाइड-आधारित परीक्षण उपकरण को विकसित किया है जो वैकल्पिक जैव पहचान तत्व के रूप में काम करता है। यहां बताते चलें कि एआरआई, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान है।

व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (डब्ल्यूएसएसवी) द्वारा झींगे जिसे पेनियस वन्नामेई- प्रशांत महासागरीय सफेद झींगा कहा जाता है, को संक्रमित किए जाने के चलते इसका भारी नुकसान होता है। यह उच्च मान का सुपर-फूड, वायरल और बैक्टीरियल रोगाणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अतिसंवेदनशील है। इसके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक होती है।

यह बेहतर पोषण, प्रोबायोटिक, रोग प्रतिरोधक क्षमता, जल, बीज व चारे की गुणवत्ता नियंत्रण, प्रतिरक्षा- प्रेरक पदार्थ और सस्ते टीके उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस क्षेत्र में रोगाणुओं का जल्द और तेजी से पता लगाने वाली तकनीकों से मछली और शेल-फिश पालन में सहायता मिलेगी। इस मछली के निर्यात से देश को राजस्व की प्राप्ति होती है। अमेरिका को झींगे का निर्यात करने वाले देशों में भारत का अहम स्थान है।

व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (डब्ल्यूएसएसवी) के लिए एक सुविधाजनक और खुद से उपयोग करने वाला परीक्षण करने वाला उपकरण विकसित करने के लिए डॉ. प्रबीर कुलभूषण, डॉ. ज्युतिका राजवाड़े और डॉ. किशोर पाकणीकर ने अहम भूमिका निभाई।

इसके लिए उन्होंने सोने के नैनोकणों का उपयोग करके पार्श्व प्रवाह (लेटरल फ्लो) परीक्षण विकसित किया। परीक्षण विकास में पॉली-मोनो-क्लोनल एंटीबॉडी का उपयोग करने की जगह एआरआई के वैज्ञानिकों ने बायोपैनिंग के माध्यम से फेज डिस्प्ले प्रयोगशाला से 12 अमीनो एसिड युक्त पेप्टाइड्स को चुना।

यह समय और लागत बचाने वाला तरीका था, जिसने एंटीसेरा प्राप्त करने के लिए प्रयोगशाला पशुओं के टीकाकरण की जरूरत को समाप्त कर दिया। पेप्टाइड्स के उपयोग की वजह से भंडारण के लिए कोल्ड-चेन की जरूरतें कम हो जाती हैं और यह परीक्षण उत्पादन के अनुकूल हो जाता है।

उल्लेखनीय है कि एंटीसेरा - एक रक्त सीरम जिसमें विशिष्ट एंटीजन के लिए एंटीबॉडी होते हैं, इसका उपयोग विशिष्ट रोगों के उपचार या बचाव के लिए किया जाता है।

डॉ. ज्युतिका राजवाड़े ने कहा हमारे आंकड़ों का परीक्षण उच्च विशिष्टता (100 फीसदी) व संवेदनशीलता (96.77 फीसदी), हेमोलिम्फ से शरुआती पहचान, केवल 20 मिनट में हो जाती है।

यह शोध को एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी एंड बायोटेक्नोलॉजी और जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर मॉडलिंग में प्रकाशित हुआ है। एआरआई पीएचडी की छात्रा स्नेहल जमालपुरे-लक्का ने इस शोध को नेशनल बायो-एंटरप्रेन्योरशिप कॉन्क्लेव (एनबीईसी)-2021 में प्रस्तुत किया और उन्हें इसके लिए सम्मानित किया गया।