विज्ञान

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूमने के सटीक अंतर को मापने के लिए अपनाई नई तकनीक

इसका उपयोग बेहतर भूभौतिकीय मॉडल बनाने के लिए किया जा सकता है, जिसकी मदद से दुनिया भर के यातायात में सुधार लाया जा सकता है

Dayanidhi

वैज्ञानिकों की एक टीम ने पृथ्वी के घूमने के अंतर को मापने का एक नया तरीका विकसित किया है। नेचर फोटोनिक्स जर्नल में प्रकाशित शोध में, टीम बताती है कि उनका नया तरीका कैसे काम करता है और परीक्षण के दौरान इसने कितना अच्छा प्रदर्शन किया। शोध में, कैटरिना सिममिनेली और ग्यूसेपपे ब्रुनेटी ने मुख्य अध्ययन के निष्कर्षों पर चर्चा की है।

वैज्ञानिकों ने बताया कि यदि यह काम अपने सही अंजाम तक पहुंच गया तो, इसका उपयोग बेहतर भू-भौतिकीय मॉडल बनाने के लिए किया जा सकता है, जिसका उपयोग वैश्विक यातायात के लिए किया जा सकता है

कई वर्षों से, वैज्ञानिक पृथ्वी के घूमने को सटीक तरीके से मापने के उपायों में सुधार करने का प्रयास कर रहे हैं। मापना तब और भी अधिक कठिन हो जाता है जब किसी दिए गए दिन की लंबाई कई कारणों पर निर्भर करती है, जैसे चंद्रमा का खिंचाव, समुद्री धाराएं और हवा किस दिशा में बहती है आदि।

एक दिन की लंबाई मापने के पहले के प्रयासों में रेडियो दूरबीनों या पृथ्वी पर तैनात कई सुविधाओं द्वारा भेजे गए संकेतों का उपयोग शामिल था। हाल के दिनों में, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों का उपयोग किया गया है, जिससे सटीकता में वृद्धि हुई है। इस नए प्रयास में, शोधकर्ताओं ने जाइरोस्कोप का उपयोग करके एक नया तरीका आजमाया है।

जाइरोस्कोप, जिसे बस "जी" नाम दिया गया है, जर्मनी के जियोडेटिक ऑब्जर्वेटरी वेटजेल पर आधारित है। इसे 16 मीटर लंबी लेजर कैविटी का उपयोग करके बनाया गया था, जिससे यह रिंग की तरह दिखती है। अंदर, एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में यात्रा करने वाली दोहरी लेजर किरणें परस्पर क्रिया करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक नए पैटर्न का निर्माण होता है।

यह प्रणाली इसलिए काम करती है क्योंकि जो लेजर पृथ्वी के समान दिशा में चलता है वह विपरीत दिशा में चलने वाले लेजर की तुलना में अधिक फैला हुआ होता है।

फिर, जैसे-जैसे पृथ्वी घूमती है, इसकी गति की दर में उतार-चढ़ाव दिखाई देता है। उससे, शोधकर्ता इस बात का पता लगाने में सक्षम थे कि पृथ्वी पर एक निश्चित बिंदु ने एक निश्चित समय अवधि में कितनी दूरी तय की है।

कई दिनों तक अभ्यास को दोहराने से उन्हें समय के साथ बदलावों को ध्यान में रखने की मदद मिली और इससे उन्हें चार महीने की अवधि में केवल कुछ मिलीसेकंड के भीतर किसी दिए गए दिन की लंबाई मापने में सफलता मिली।

शोधकर्ताओं ने यह सुझाव देकर निष्कर्ष निकला कि दिन की लंबाई मापने की उनकी विधि, साथ ही उनकी विविधताएं, किसी भी अन्य विधि की तुलना में कहीं अधिक सटीक है। इसका उपयोग बेहतर भूभौतिकीय मॉडल बनाने के लिए किया जा सकता है, जिसका उपयोग वैश्विक यातायात के लिए किया जा सकता है।