विज्ञान

वैज्ञानिकों ने कृषि के कचरे से बनाया नया, पर्यावरण के अनुकूल प्लास्टिक

वैज्ञानिकों ने बताया कि कृषि के कचरे के वजन का 25 फीसदी या शुद्ध चीनी के 95 फीसदी को प्लास्टिक में परिवर्तित किया जा सकता है।

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने एक नया पॉलीथीन टैरीपिथालेट (पीईटी) जैसा प्लास्टिक तैयार किया है, जिसे कृषि के कचरे से आसानी से बनाया जा सकता है। प्लास्टिक सख्त, गर्मी प्रतिरोधी और ऑक्सीजन जैसी गैसों के लिए एक अच्छा अवरोध है, जो इसे खाद्य पैकेजिंग के लिए एक बहुत अच्छा साधन बनाता है।

इसकी संरचना के कारण, नए प्लास्टिक को रासायनिक रूप से रीसायकल किया जा सकता है और पर्यावरण में नुकसान न पहुंचाने वाले शर्करा में वापस भेजा जा सकता है, अर्थात इसे नष्ट किया जा सकता है। यह कारनामा स्विट्जरलैंड के इकोले पॉलीटेक्निक फेडरल डे लॉजेन (ईपीएफएल) विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है।

क्या होता है पीईटी या पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट

पॉलीथीन टैरीपिथालेट (पीईटी), पॉलिएस्टर परिवार का सबसे आम थर्मोप्लास्टिक पॉलीमर है। इसका उपयोग कपड़ों के लिए फाइबर, तरल पदार्थ, खाद्य पदार्थों के लिए बर्तन निर्माण के लिए, थर्मोफॉर्मिंग और इंजीनियरिंग रेजिन के लिए ग्लास फाइबर में किया जाता है।

यह स्पष्ट है कि जीवाश्म ईंधन पर लगाम लगाना और पर्यावरण में प्लास्टिक को बढ़ाने से बचना जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए अहम है। लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास के रूप में जाना-जाने वाला बेकार पड़ी पौधों की सामग्री से बने डिग्रेडेबल या रिसाइकिल योग्य पॉलिमर विकसित करने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं।

बेशक बायोमास-आधारित प्लास्टिक का उत्पादन सीधा नहीं है। एक कारण है कि पारंपरिक प्लास्टिक दुनिया भर में फैला है, क्योंकि वे कम लागत, मजबूत, मशीन से बनाए जाने वाले होते हैं। ऐसी विशेषताएं जो किसी भी वैकल्पिक प्लास्टिक से मेल खाना चाहिए या उससे आगे निकल जाना चाहिए। वैज्ञानिकों ने कहा कि अब तक यह कार्य चुनौतीपूर्ण रहा है।

अब तक ईपीएफएल के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में प्रोफेसर जेरेमी लुटरबैकर के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने पीईटी के समान बायोमास से बने प्लास्टिक को सफलतापूर्वक विकसित किया है। यह पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ कई मौजूदा प्लास्टिक को बदलने के मानदंडों को पूरा करता है।

शोधकर्ता लुटरबैकर कहते हैं कि हम नए प्लास्टिक का उत्पादन करने के लिए सस्ते रसायनों में लकड़ी या अन्य बेकार पड़े पौधों की सामग्री, जैसे कृषि अपशिष्ट का उपयोग करता हैं। प्लास्टिक की आणविक संरचना के भीतर चीनी संरचना को बरकरार रखते हुए, रसायन शास्त्र मौजूदा विकल्पों की तुलना में बहुत आसान है।

यह तकनीक एक खोज पर आधारित है जिसे लुटेरबैकर और उनके सहयोगियों ने 2016 में प्रकाशित किया था, जहां एक एल्डिहाइड जोड़ने से पौधों की सामग्री के कुछ अंशों को स्थिर किया जा सकता है। निष्कर्षण के दौरान उनके नष्ट होने से उन्हें बचाया जा सकता है। इस रसायन का पुन: उपयोग करके, शोधकर्ता प्लास्टिक के नए रूप में एक नए उपयोगी जैव-आधारित रसायन का पुनर्निर्माण करने में सफल रहे हैं।

शोधकर्ता लोरेंज मैनकर कहते हैं एक अलग एल्डिहाइड का उपयोग करके - फॉर्मलाडेहाइड के बजाय ग्लाइऑक्साइलिक एसिड, जो चीनी के अणुओं के दोनों किनारों पर 'चिपचिपा' समूहों को आसानी से जोड़ सकते हैं। यह उन्हें प्लास्टिक बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है। इस सरल तकनीक का उपयोग करके, हम कृषि के कचरे के वजन का 25 फीसदी या शुद्ध चीनी के 95 फीसदी को प्लास्टिक में परिवर्तित कर सकते हैं।

प्लास्टिक के इस तरह के गुणों के चलते, इसे पैकेजिंग और वस्त्रों से लेकर दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स तक में उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पहले से ही पैकेजिंग फिल्में, फाइबर बनाए हैं जिन्हें कपड़ों या अन्य वस्त्रों में उपयोग किया जा सकता है और इससे 3 डी-प्रिंटिंग के लिए फिलामेंट्स बनाए जा सकते हैं।

लुटरबैकर कहते हैं कि इस प्लास्टिक में बहुत ही रोमांचक गुण हैं, विशेष रूप से खाद्य पैकेजिंग जैसे प्रयोगों के लिए। जो चीज प्लास्टिक को अनोखा बनाती है, वह है न टूटने वाली चीनी की संरचना की उपस्थिति है। इस तरह इसे बनाना बहुत आसान हो जाता है, क्योंकि आपको प्रकृति द्वारा जो कुछ भी दिया जाता है उसे संशोधित करने की आवश्यकता नहीं होती है।

इसे नष्ट करना भी आसान होता है, क्योंकि यह एक अणु में वापस जा सकता है। यह प्रकृति में पहले से ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यह शोध नेचर केमिस्ट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।