ट्यूलिप के पेड़ों में एक अनूठी मैक्रोफाइब्रिल संरचना होती है जो सॉफ्टवुड और हार्डवुड दोनों से अलग होती है; फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान

वैज्ञानिकों ने पहचानी बिलकुल नई तरह की लकड़ी, कार्बन स्टोर करने में कहीं ज्यादा है दक्ष

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों ने लकड़ी की एक पूरी तरह से नई किस्म की पहचान की है, जो न तो हार्डवुड न ही सॉफ्टवुड की श्रेणी में आती है। हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस लकड़ी की अनूठी संरचना इसे कार्बन स्टोर करने के मामले में कहीं ज्यादा दक्ष बनाती है।

गौरतलब है कि यह खोज कैम्ब्रिज और जगियेलोनियन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। इस बारे में किए अपने नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया के कुछ प्रमुख वृक्षों और झाड़ियों की लकड़ी की सूक्ष्म संरचना का अध्ययन किया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यू फाइटोलॉजिस्ट में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च से पता चला है कि ट्यूलिप के पेड़ों में यह अनोखी लकड़ी होती है। ट्यूलिप, मैगनोलिया परिवार से सम्बन्ध रखता है। इनकी ऊंचाई 100 फीट से अधिक हो सकती है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि क्यों यह पेड़ पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर कम होने पर मैगनोलिया परिवार से अलग हो गए थे। साथ ही क्यों यह वृक्ष तेजी से बढ़ते हैं और इतने अधिक ऊंचे होते हैं।

इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी बॉटनिक गार्डन के संग्रह में मौजूद 33 वृक्ष प्रजातियों की लकड़ी की सूक्ष्म संरचना का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में देखा गया है कि सॉफ्टवुड (जैसे पाइन) और हार्डवुड (ओक, ऐश, बर्च और यूकेलिप्टस) में लकड़ी की संरचना कैसे विकसित हुई।

शोधकर्ताओं ने लकड़ी की भीतरी संरचना को समझने के लिए एक विशेष माइक्रोस्कोप क्रायो-एसईएम की मदद ली है। इसकी मदद से उन्होंने लकड़ी की द्वितीयक कोशिका भित्तियों की नैनोस्केल संरचना का चित्र लिया है और प्राकृतिक हाइड्रेटेड अवस्था में इसे मापा है।

क्यों कार्बन को स्टोर करने में इतने अच्छे होते हैं यह पेड़

सेन्सबरी प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोपी के कोर सुविधा प्रबंधक डॉक्टर रेमंड वाइटमैन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी देते हुए कहा है, "हमने कोस्ट रेडवुड और वोलेमी पाइन जैसे प्रसिद्ध पेड़ों के साथ एंबोरेला ट्राइकोपोडा जैसे प्राचीन पौधों का भी अध्ययन किया है, जो अपने प्राचीन परिवार का अंतिम जीवित सदस्य है। यह अन्य फूल वाले पौधों से अलग विकसित हुआ था।

उनके मुताबिक शोध ने इस बारे में नई जानकारी प्रदान की है कि कैसे फूल वाले पौधों (एंजियोस्पर्म) और गैर-फूल वाले पौधों (जिम्नोस्पर्म) में लकड़ी और कोशिका भित्ति की संरचना अलग-अलग विकसित हुई। रिसर्च में सामने आया है कि एंजियोस्पर्म कोशिका भित्ति में मैक्रोफाइब्रिल नामक संकरी इकाइयां होती हैं जो एंबोरेला ट्राइकोपोडा पूर्वज से अलग होने के बाद उभरी हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि प्राचीन लिरियोडेंड्रोन वंश की दो शेष प्रजातियां ट्यूलिप (लिरियोडेंड्रोन ट्यूलिपिफेरा) और चीनी ट्यूलिप वृक्ष (लिरियोडेंड्रोन चिनेन्स) में उनके कठोर लकड़ी वाले रिश्तेदारों की तुलना में कहीं बड़े मैक्रोफाइब्रिल्स होते हैं।

रिसर्च से पता चला है कि कठोर लकड़ी वाले एंजियोस्पर्म मैक्रोफाइब्रिल्स का व्यास करीब 15 नैनोमीटर होता है, जबकि नर्म जिम्नोस्पर्म मैक्रोफाइब्रिल्स 25 नैनोमीटर के होते हैं। वहीं ट्यूलिप के पेड़ों में मौजूद मैक्रोफाइब्रिल्स की माप 20 नैनोमीटर के करीब होती है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जान लिजाकोव्स्की ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि ट्यूलिप के पेड़ों में एक अनूठी मैक्रोफाइब्रिल संरचना होती है जो सॉफ्टवुड और हार्डवुड दोनों से अलग होती है। यह वृक्ष तीन से पांच करोड़ साल पहले मैगनोलिया परिवार से अलग हो गए थे, लगभग उस समय जब वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिर गया था। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि यह पेड़ कार्बन को स्टोर करने में इतने अच्छे क्यों हैं।"

शोधकर्ताओं को यह भी लगता है कि इस मिडवुड में मौजूद बड़े मैक्रोफाइब्रिल्स इन पेड़ों को तेजी से बढ़ने में मदद करते हैं।

लिजाकोव्स्की के मुताबिक ट्यूलिप के यह पेड़ कार्बन कैप्चर और उसे स्टोर करने में असाधारण रूप से कुशल माने जाते हैं। उनके बड़े मैक्रोफाइब्रिल उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से ऐसा करने में मदद कर सकते हैं, खासकर जब वायुमंडलीय कार्बन का स्तर कम हो। ऐसे में ट्यूलिप के पेड़ कार्बन कैप्चर में मददगार हो सकते हैं। कुछ पूर्वी एशियाई देश पहले ही इस उद्देश्य के लिए ट्यूलिप की मदद ले रहे हैं। उनके अनुसार इसकी लकड़ी की अनोखी संरचना इसका कारण हो सकती है।

उनके अनुसार लकड़ी का मुख्य निर्माण खंड उसकी द्वितीयक कोशिका दीवारें होती हैं, इनकी संरचना लकड़ी को उसकी ताकत और घनत्व प्रदान करती हैं। ये द्वितीयक कोशिका दीवारें जीवमंडल में कार्बन का सबसे बड़ा भंडार भी हैं। ऐसे में कार्बन कैप्चर कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उनकी विविधता को समझना महत्वपूर्ण है।