विज्ञान

धान के पौधों को बीमारियों से बचाने वाले जीवाणु की पहचान

Dayanidhi

दुनिया भर में बीज जनित जीवाणु रोगों से अनाज का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है। विभिन्न फसलों में स्थानीय रूप से होने वाले रोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। यदि चावल को लें तो यह दुनिया की लगभग आधी आबादी का मुख्य भोजन है। धान की खेती के लिए बहुत अधिक पानी की जरुरत होती है, जर्मन सहायता संगठन वेल्थुन्गेरिल्फ़े के अनुसार, जहां सूखे का खतरा अधिक होता है उन क्षेत्रों में भी लगभग 15 प्रतिशत चावल उगाया जाता है। आज ग्लोबल वार्मिंग चावल की खेती के लिए तेजी से समस्या बनता जा रहा है, जो किसानों को मुसीबत में डाल रहा है। दूसरी ओर पौधों में रोग फैलाने वाले रोगजनकों के कारण फसल की पैदावार कम या नष्ट हो जाती है जो आगे की स्थिति को और भी नाजुक बना देता है।

अब पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ता ने इस बारे में जांच की, कि धान के पौधों के बीज के अंदर एक विशिष्ट जीवाणु होता है, जो प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले रोगजनकों को रोकता है। 

पारंपरिक कृषि कीटनाशकों के साथ इसका मुकाबला करने की कोशिश कर रही है, जो ज्यादातर चावल की खेती में एहतियाती उपाय के रूप में उपयोग किए जाते हैं। प्रतिरोधी पौधों का उगना पर्यावरण के लिए हानिकारक इन कीटनाशकों (एजेंटों) का एकमात्र विकल्प है जो वर्तमान में अधिक प्रभावी नहीं है। यदि पौधे उगने के लिए एक रोगज़नक़ के प्रति प्रतिरोधी हैं, तो वे आमतौर पर अन्य रोगजनकों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं या प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में अधिक शक्तिशाली नहीं होते हैं। 

जीवाणु रोगजनक प्रतिरोध का सामना किस तरह करता है

एक अंतरराष्ट्रीय शोध समूह जिसमें ग्राज प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी संस्थान शामिल है, पौधों के स्वास्थ्य और कुछ सूक्ष्मजीवों की घटना के बीच संबंध स्थापित करने के लिए पिछले कुछ समय से धान के पौधे के बीजों के माइक्रोबायोम का अध्ययन कर रहे हैं। इसको लेकर समूह ने अब एक बड़ी सफलता हासिल की है। उन्होंने धान के बीज के अंदर एक जीवाणु की पहचान की है जो एक विशेष रोगजनक का पूर्ण प्रतिरोध कर सकता है और स्वाभाविक रूप से एक पौधे की पीढ़ी से दूसरे में जा सकता है। ग्राज यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा प्रकाशित निष्कर्ष जैविक पौधों के संरक्षण उत्पादों को डिजाइन करने और पौधों के रोगजनकों द्वारा उत्पादित हानिकारक बायोटॉक्सिन को कम करने के लिए पूरी तरह से नया आधार प्रदान करते हैं।  

टोमिस्लाव सर्नवा कहते हैं कि चीनी प्रांत झेजियांग में पारंपरिक चावल की खेती में यह देखा गया कि चावल के पौधों का एक जीनोटाइप (कल्टीवेर झोंगजो 39) कभी-कभी पौधों में रोगज़नक़ बुर्कोप्रेनिया प्लांटारी के प्रतिरोध को विकसित करता है। यह रोगज़नक़ एक बायोटॉक्सिन पैदा करता है जो पौधे को लगातार नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ मनुष्यों और जानवरों के अंगों को गंभीर क्षति पहुंचा सकता है। अब तक इस रोगजनक को चावल के पौधों के छिटपुट प्रतिरोध के बारे में पता लगाया जा सका है। टोमिस्लाव सर्नवा ग्राज  विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी संस्थान में पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी संस्थान से हैं। सर्नवा विभिन्न खेती वाले क्षेत्रों से धान के बीजों की माइक्रोबायोम की जांच कर रहे हैं।

जीवाणु रचना

वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रतिरोधी पौधों में रोग-अतिसंवेदनशील पौधों की तुलना में बीज के अंदर एक अलग जीवाणु संरचना होती है। विशेष रूप से बैक्टीरिया जीनस स्फिंगोमोनस प्रतिरोधी बीजों में काफी अधिक बार पाया गया था। शोधकर्ताओं ने इसलिए इस जीन के जीवाणुओं को बीजों से अलग कर दिया और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जिम्मेदार एजेंट के रूप में जीवाणु स्फिंगोमोनस मेलोनिस की पहचान की। यह जीवाणु एक कार्बनिक अम्ल (एंथ्रानिलिक एसिड) का उत्पादन करता है, जो रोगज़नक़ को रोकता है जिससे यह नुकसान नहीं पहुंचाता है। टोमिस्लाव सर्नवा बताते हैं कि यह तब भी काम करता है जब अलग-अलग स्फिंगोमोनस मेलानिस को गैर-प्रतिरोधी धान के पौधों पर उपयोग किया जाता है। यह स्वचालित रूप से पौधे में रोगज़नक़ बुर्कोप्रेनिया प्लांटारी के लिए प्रतिरोधी बना देता है।

इसके अलावा, जीवाणु कुछ धान के जीनोटाइप में खुद को स्थापित करता है और फिर एक पौधे की पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक स्वाभाविक रूप से पहुंच जाता है। सर्नवा कहते हैं इस खोज में संभावनाएं बहुत अधिक हैं, भविष्य में, हम इस रणनीति का उपयोग कृषि में कीटनाशकों को कम करने और अच्छी फसल की पैदावार प्राप्त करने में कर पाएंगे।