भारतीय वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में पौधों की 62 ऐसी प्रजातियों की खोज की है जो गंभीर जल संकट का सामना करने के बाद भी बची रह सकती हैं। पौधों की इन प्रजातियों को अपनी इसी विशेषता के कारण इन्हें जल संकट का सामना करने योग्य संवहनी पौधों यानों डेसीकेशन-टोलेरेंट वैस्कुलर (डीटी) प्लांट्स प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक पौधों की यह प्रजातियां सूखे या पानी की भीषण कमी की स्थिति का सामना कर पाने में सक्षम है। यह प्रजातियां अपने अंदर मौजूद पानी की 95 फीसदी मात्रा के खत्म होने के बाद भी स्थिति के सामान्य होने का इन्तजार कर सकती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसी स्थिति आने पर यह पौधे हाइबरनेशन में चले जाते हैं। वहीं पानी के दोबारा उपलब्ध होने के बाद यह पौधे अपने आप को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
अपनी इसी अनूठी क्षमता के कारण यह प्रजातियां ऐसे प्रतिकूल और शुष्क वातावरण में भी जीवित रह सकती हैं, जिसमें ज्यादातर पौधों जीवित नहीं रह सकते हैं। पश्चिमी घाट में इन पौद्यों की खोज आगरकर शोध संस्थान (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। जो केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है।
इनके बारे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा साझा की गई जानकारी से पता चला है कि डीटी पौधों की इन 62 प्रजातियों में से 16 भारत की स्वदेशी प्रजातियां हैं। वहीं 12 प्रजातियां ऐसी हैं जो केवल पश्चिमी घाट के बाहरी हिस्सों में ही पाई जाती हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने देश में डेसीकेशन-टोलेरेंट वैस्कुलर (डीटी) पौधों की नौ प्रजातियों की खोज की थी।
सूखे या पानी की कमी वाले क्षेत्रों में कृषि के लिए सहायक हो सकती हैं यह प्रजातियां
आपकी जानकारी के लिए बता दें की भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं। यह क्षेत्र अपनी जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध है। जैवविविधता के मामले में दुनिया में इसका आठवां स्थान है।
वहीं भारत में यह जैवविविधता का प्रमुख हॉटस्पॉट है। यहां पौधों, और जीव जंतुओं की अनेक दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। उनमें से कुछ तो ऐसी हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलती। 2012 में इस क्षेत्र को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था जो इसके महत्व को उजागर करता है।
हालांकि देखा जाए तो इस क्षेत्र में भारी बारिश होती है। ऐसे में इस क्षेत्र में डीटी पौधों की ऐसी प्रजातियों का पाया जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह पौधे प्रमुख रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सतह से उभरे चट्टानी भूभागों (रॉक आउटक्रॉप्स) पर पैदा हो जाते हैं।
देखा जाए तो भारत में डीटी पौधों का अपेक्षाकृत रूप से कम ही अध्ययन किया गया है। हालांकि पश्चिमी घाट में रॉक आउटक्रॉप्स का होना आम है, फिर भी इस क्षेत्र में पौधों की डेसीकेशन-टोलेरेंट वैस्कुलर (डीटी) प्रजातियों के बारे में कम ही जानकारी उपलब्ध है।
यह पौधे ऐसे स्थानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं, जहां विशेष रूप से कृषि के लिए सीमित जल संसाधन उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक पानी की कमी वाले क्षेत्रों में कृषि के लिए इनका उपयोग हो सकता है।
यह अध्ययन आगरकर शोध संस्थान, पुणे के वैज्ञानिक डॉक्टर मंदार दातार के नेतृत्व में स्मृति विजयन, अबोली कुलकर्णी और भूषण शिगवान की टीम द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में रॉस्टॉक यूनिवर्सिटी, जर्मनी के डॉक्टर स्टीफन पोरेम्ब्स्की ने भी सहयोग दिया है, जिन्हें ट्रॉपिकल रॉक आउटक्रॉप्स के विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है। इस अध्ययन के नतीजे नॉर्डिक जर्नल ऑफ बॉटनी में प्रकाशित हुए हैं।