विज्ञान

अंतरिक्ष से मौसम के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार लाने के लिए वैज्ञानिकों ने नया तरीका खोजा

यह अध्ययन घटना को सटीक रूप से समझने और भविष्य में अंतरिक्ष से मौसम के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार करने में मदद कर सकता है

Dayanidhi

भारतीय वैज्ञानिकों ने भविष्य में अंतरिक्ष से मौसम के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार लाने के लिए आयन संरचना परिवर्तन से संबंधित अध्ययन किया। इस प्रक्रिया के चलते क्षेत्र आधारित मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाने में मदद मिल सकती है।

अध्ययन से पता चलता है कि, धरती के मैग्नेटोस्फीयर में उथल-पुथल या गड़बड़ी और इसके कारण चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के आंतरिक मैग्नेटोस्फीयर में आयन प्रवाह बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया से इस बदलाव को समझने में मदद मिल सकती है तथा भविष्य में अंतरिक्ष से मौसम का पूर्वानुमान लगाने की सटीकता में सुधार लाया जा सकता है।

मैग्नेटोस्फेरिक सबस्टॉर्म एक छोटी अवधि में होने वाली प्रक्रिया है जो इंटरप्लेनेटरी मैग्नेटिक फील्ड (आईएमएफ) के परिमाण और दिशा, सौर हवा के वेग तथा सौर हवा के गतिशील दबाव पर निर्भर करती है। आईएमएफ की दक्षिण दिशा भूमिगत तूफान की घटना के लिए एक जरूरी है क्योंकि यह दिन के मैग्नेटोस्फीयर में फिर से चुंबकीय प्रक्रिया के एकत्रित होने के लिए जिम्मेवार है।

आमतौर पर, छोटे-तूफान की औसत अवधि लगभग दो से चार घंटे की होती है। ऐसी प्रक्रिया के दौरान, सौर हवा और मैग्नेटोस्फीयर के बीच परस्पर प्रभाव से भारी मात्रा में ऊर्जा (लगभग 1015 जे) निकलती है। समय के साथ, यह ऊर्जा अंततः आंतरिक मैग्नेटोस्फीयर में जमा हो जाती है।

वैज्ञानिकों ने रेडिएशन बेल्ट स्टॉर्म प्रोब्स (आरबीएसपी) अंतरिक्ष यान पर हीलियम, ऑक्सीजन, प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन (होप) मास स्पेक्ट्रोमीटर, इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक फील्ड इंस्ट्रूमेंट सूट तथा इंटीग्रेटेड साइंस उपकरण से आंकड़ों का उपयोग किया है। 

भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान, जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान है, इसके वैज्ञानिकों ने  साल 2018 के 22 सबस्टॉर्म घटनाओं का एक सांख्यिकीय अध्ययन किया। उन्होंने चुंबकीय क्षेत्र द्विध्रुवीकरण की महत्वपूर्ण विशेषताओं का पता लगाया की, जैसे कि इसका समय पैमाना और ऊर्जावान ओ + और एच + में संबंधित वृद्धि आयन प्रवाह।

एडवांस इन स्पेस रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से वैज्ञानिकों को तूफान के दौरान आयनों की गतिविधि और इसकी तीव्रता को लेकर प्लाज्मा शीट की भूमिका को समझने में मदद मिली।

आयन फ्लक्स विविधताओं पर इस तरह के अध्ययन पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब बाहरी अंतरिक्ष में प्लाज्मा को समझने में मदद करते हैं, क्योंकि यह आमतौर पर एच+ आयनों से बना होता है। हालांकि, कभी-कभी ओ+ आयनों का अनुपात अचानक बढ़ जाता है। इन ओ + आयनों की उपस्थिति जियोस्पेस की प्लाज्मा गतिशीलता को बदल देती है।

इस तरह के अध्ययन घटना को सटीक रूप से समझने और भविष्य में अंतरिक्ष से मौसम के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार करने के लिए आयन संरचना परिवर्तन के कारण और क्षेत्र का पता लगाने में मदद कर सकते हैं।