विज्ञान

बैठे ठाले: डार्विन का सिद्धांत कितना जरूरी?

मेरा पहला सिद्धांत है, प्राणियों में संतान-उत्पत्ति की ताकत होती है। इसलिए आप दुनिया के सबसे ताकतवर देश बन गए हैं क्योंकि आपकी जनसंख्या सर्वाधिक है

Sorit Gupto

जून महीने की कोई रात थी। अचानक नाविक के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी, “कैप्टन जी! हमारा जहाज झाग में जा फंसा है!”

इतना सुनकर कैप्टन फिट्जरोय की नींद टूट गई। वह भागते हुए डेक पर पहुंचे और देखा कि उनका जहाज चारों ओर से झाग से घिरा था। वह कुछ कहते, उससे पहले ही किसी ने कहा, “चलो, हम आखिर दिल्ली पहुंच ही गए!”

यह आवाज चार्ल्स डार्विन की थी।

पाठक सोच रहे होंगे कि यह सब क्या चल रहा है। केवल पाठक ही क्यों, यही सवाल एचएमएस बीगल के कप्तान रोबर्ट फिट्जरोय का भी था। उन्होंने पूछा, “बड़े मियां यह क्या चक्कर है? हमें तो गालापागो द्वीप का चक्कर लगाना था और आपको वहां नमूने इकट्ठा करने थे। ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ-साथ चलते? हमारा जहाज चारों ओर से जाने किस झाग से घिरा है?”

“घबराओ मत कैप्टन! बेशक हमें अभी पूर्वी प्रशांत महासागर के गालापागो के द्वीप का चक्कर लगाना था पर मैंने नाविकों को बोला कि जहाज दिल्ली की ओर घुमा लो। अभी हमारा जहाज यमुना नदी में है और यह झाग प्रदूषित यमुना नदी का है। तुम्हारे दायीं ओर नोएडा की अवैध बहुमंजिला इमारतें और बायीं ओर दिल्ली की अनियमित बस्तियां हैं। जरा गौर से देखो वत्स!”

“नोएडा! दिल्ली! यमुना नदी! खबरें तफसील से बताइए डार्विन जी! मुझे भी ऊपर जवाब देना पड़ता है” कप्तान रोबर्ट फिट्जरोय ने लगभग रोते हुए कहा।

“पूरी कथा कुछ यूं है” डार्विन ने धूलभरे यमुना तट की ओर देखते हुए कहा, “हमारा जहाज गालापागो के द्वीप पहुंचने ही वाला था कि ट्विटर से मुझे पता चला कि एनसीआरटी ने मेरे जैव-विकास के सिद्धांत को ही हटा दिया है। इसका मतलब था कि मेरी किताबें अब नहीं बिकेंगी। इसका सीधा मतलब था कि मेरी रॉयल्टी के कमाई का ठप्प हो जाना। इसलिए मैंने तय किया कि गालापागो फिर कभी, पहले एनसीआरटी जाना चाहिए। तुम यहीं जहाज में रुको। मैं एनसीआरटी मुख्यालय यूं गया और यूं आया।”

दूसरे दिन डार्विन एनसीआरटी जा पहुंचे। एक ओर डार्विन बैठे थे और दूसरी ओर एनसीआरटी के विद्वान। बातचीत शुरू हुई। उन्ही में से एक विद्वान ने पूछा, “आपके सिद्धांत गलत हैं। आप अपने सिद्धांतों को किसी पौराणिक रेफरेंस से सिद्ध कीजिए, नहीं तो...… बाकी आप समझदार हैं।

डार्विन ने कहना शुरू किया, “जनाबे आली मुझे लगता है कि कोई गलतफहमी हुई है। हो सकता है यह आपके देश को बदनाम करने की विदेशी साजिश हो। मेरे सारे सिद्धांत एकदम इसी देश को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं।”

दूसरे विद्वान ने टोककर पूछा, “मतलब?”

“मेरा पहला सिद्धांत है, प्राणियों में संतान-उत्पत्ति की बहुत ताकत होती है। इसलिए अब आप दुनिया के सबसे ताकतवर देश बन गए हैं क्योंकि आपकी जनसंख्या दुनिया में सर्वाधिक है।” विद्वानों ने एक-दूसरे को गर्व भरी दृष्टि से देखा फिर बोले, “यह तो होना ही था। आप आगे बोलिए।”

डार्विन बोले, “प्राणियों में जनसंख्या बढ़ने से मचती है भसड और शुरू होता है जीवन संघर्ष, बोले तो कंपटीसन। यह एक बहुत ही अच्छी बात है। अब आप ही देखिए, रेलवे की सौ-दो सौ नौकरी के लिए एक करोड़ आवेदन आते हैं जिससे रेलवे को कितना फायदा होता है। मेरा अगला सिद्धांत है योग्यतम की उत्तरजीविता। मैं मानता हूं कि इसमें कुछ गड़बड़ियां थीं। मैं इसमें थोड़ी तब्दीली करना चाहता हूं। आज से यह मेरे विकासवाद का सिद्धांत कहलाया जाएगा जिसकी लाठी, उसकी भैंस! फिर वह मन ही मन बुदबुदाए (सोच बदलो। देश बदल चुका है)।

इतना सुनना था कि उनमें से एक विद्वान ने अमेरिका-गॉट-टैलेंट की तर्ज पर गोल्डन बजर दबा दिया। चार्ल्स डार्विन पर पुष्प-वृष्टि होने लगी। कहते हैं डार्विन के इस सिद्धांत को एंटायर-जूलॉजी के सिलेबस में प्रमुखता से शामिल कर लिया गया।