हिमालय में बर्फ पिघलने की रफ्तार वहां बर्फ के पिघलने से बने झील ही काफी तेज कर रहे हैं। इस बात का खुलासा यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज के एक शोध से हुआ है। यह शोध नेचर: साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम की मैग्जीन में प्रकाशित हुई है, जिसने निष्कर्ष निकाला है कि पिछले कुछ दशकों में हिमालय के पर्वत से फिसलकर बर्फ झीलों में आ गई थी, और झील में उनके पतले होने और पिघलने की दर पर्वत की तुलना में कई गुणा अधिक हो गई है। ये हिम झील विभिन्न पर्वत श्रृंघला के कम से कम 30 फीसदी बर्फ के पिघलने के लिए जिम्मेदार हैं, बावजूद इसके कि इनमें मौजूद बर्फ की मात्रा ग्लेशियर की पूरी मात्रा का मात्र 10 या 15 फीसदी है।
इन स्थानों पर बर्फ का पिघलना साफ दर्शाता है कि ऊंचे पर्वत तक जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ गए हैं। लंबे समय के लिए जलवायु के गर्म होने की वजह से संपूर्ण हिमालय के बर्फ पिघलने लगे हैं।
हिम से पिघलकर पानी बनने के बाद यहां की नदियों में पानी आता है जिससे लाखों लोगों की जरूरतें पूरी होती है। पिघलने के सारा पानी तेजी से नीते न जाकर यहां बने हजारों हिम झीलों में जमा हो जाते हैं। बावजूद हिमालय में तेजी से हिम झीलों के बढ़ते क्षेत्र और संख्या के, इस शोध से पहले बर्फ के पिघलने में हिम झीलों के जिम्मेदार होने पर कोई गहरी पड़ताल नहीं की गई थी।
अब वैज्ञानिकों में यूएस हेक्सागन द्वारा जारी की हुई जासूसी उपग्रह की तस्वीर, शटल रडार टोपोग्राफिक मिशन 2000 के आंकड़े और आधुनिक उपग्रहों से मिली तस्वीरों का अध्ययन करते हुए बर्फ और बर्फ से बने हिम झील के बीच संबंध को वर्ष 1970 के बाद देखा है।
इस शोध के परिणाम दिखाते हैं कि 1970 के बाद ही बर्फ के घनत्व में कमी आती गई और वर्ष 2000 के बाद इसकी रफ्तार काफी तेज हो गई। हिम झीलों के संपर्क में रहने वाले बर्फ के पिघलने की रफ्तार कई गुणा तेज देखी गई और इससे साबित होता है कि पानी के संपर्क में इनकी पिघलने की रफ्तार तेज हो जाती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज के स्कूल ऑफ जियोग्राफी एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट से जुड़े डॉ. ओवेन किंग कहते हैं कि भविष्य में बर्फ के घनत्व में कमी की वजह से हिम झीलों के क्षेत्र और संख्या में और भी बढ़ोतरी होने की आशंका है।
इसी यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. तोबिश बोल्च मानते हैं कि हमारे शोध की परिणाम भविष्य में बर्फ के पिघलने की दर की गणना करने में काफी सहायक होंगे। इससे पहले हिम झील और बर्फ के बीच संपर्क की वजह से बर्फ के पिघलने में तेजी आने की बात सामने नहीं आई थी।
इस शोध पत्र 'ग्लेसियर लेक्स एक्सरबेट हिमालयन गल्सेयिर मास लॉस' को ओवेन किंग, अतानु भट्टाचार्य और तोबिश बोल्च ने पत्रिका नेचर: साइंटिफिक रिसर्च में प्रकाशित किया है।