विज्ञान

रूस-यूक्रेन युद्ध: कलम नहीं अब हाथों में हैं घातक हथियार

-रूस-यक्रेन युद्ध में अब हालात ऐसे बन गए हैं कि जिन हाथों में कलम और लैब में शोध के लिए परखनली हुआ करती थीं अब उन हाथों में घातक हथियार दिख रहे हैं

Anil Ashwani Sharma

जब किसी देश पर कोई पड़ोसी और ताकतवर देश हमला कर दे तो उस देश का सब कुछ जमींदोज होने लगता है। यदि आज की तारीख में देखें तो उक्रेन की हालत कमोबेश ऐसी ही बन गई है।

यह तो सभी ने सुना है कि युद्धग्रस्त देश की सरकार इस बात की अपील करती है कि अधिक से अधिक लोग देश को बचाने के लिए युद्ध में भाग लें। लेकिन यूक्रेन की सरकार ने भी इस प्रकार की अपील की।

इस पर यहां आम लोगों ने हथियार तो उठाए ही, बल्कि यहां का वैज्ञानिक समुदाय भी इस युद्ध में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण है यूक्रेन के कई शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों की आपबीती।

युद्ध शुरू होने के बाद कई वैज्ञानिकों ने अपनी यथा स्थिति का वर्णन किया है। जैसे यूक्रेनी वैज्ञानिकों ने कहा कि हमें लगा कि अब हम हर प्रकार की भयानकता भूल चुके हैं, लेकिन जैसे ही युद्ध शुरू हुआ तो मुझे लगा कि मैं तो आठ साल पहले (2014) भी इस प्रकार के युद्ध से बच गया था। यह बात डोनेट्स्क के अर्थशास्त्री इल्या खड्झिनोव ने कही।

वह आगे कहते हें कि 24 फरवरी को हमें खबर मिली कि रूस ने राजधानी कीव सहित यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है। ऐसे में हम यूक्रेनवासियों के सामने कई प्रश्न आ खड़े हुए कि पहले रहने के लिए सुरक्षित आश्रय ढूढ़ें या युद्ध स्थल से भागने का प्रयास करें या अपने देश के लिए लड़ने के बारे में सोचें।

जैसे ही यह संघर्ष आगे बढ़ा, कई यूक्रेनी शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने अंतराष्ट्रीय पत्रिका नेचर को बताया है कि उन्होंने और उनके सहयोगियों के साथ-साथ छात्रों ने भी अपने देश की रक्षा के लिए हथियार उठा लिया।

वह कहते हैं कि हमारे कई लोग शहरों में रह गए हैं और अपने परिवारों की देखभाल कर रहे हैं और भारी मन से अपने शहर की गगनचुंबी अपार्टमेंटों और विश्वविद्यालय भवनों पर रूसी गोलाबारी से हुई तबाही देख रहे हैं। खड्झिनोव कहते हैं कि इस समय हम शोध के बारे में कतई नहीं सोच रहे हैं।

ध्यान रहे कि खड्झिनोव वासिल स्टस डोनेट्स्क नेशनल यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक हैं। 2014 के संघर्ष के बाद  यह विश्वविद्यालय मध्य यूक्रेन के विन्नित्सिया में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह बिना संसाधनों, इमारतों के ही विन्नित्सिया में चला गया था। खड्झिनोव कहते हैं कि कायदे से कहा जाए तो तब इसका पुनर्जन्म हुआ था।

खड्झिनोव के लिए, पिछले कई हफ्तों से चल रहे संघर्ष की घटनाएं उन्हें उस समय की याद दिलाती हैं, जब उन्हें 35 साल पहले (जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था) अपने गृहनगर को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। वह कहते हैं कि दुर्भाग्य से यह मेरे जीवन में दूसरी बार हो रहा है और मैं दूसरी बार विस्थापित हो रहा हूं।

कुछ समय पहले तक मुझे लगा कि मैं यह सब आतंक भूल गया हूं लेकिन दुर्भाग्य से यही कुछ फिर से दोहराया जा रहा है। जब 24 फरवरी को हमला हुआ, तो खड्झिनोव कीव जाने वाली ट्रेन में सवार थे।

उन्हें अपने भाई से इस बारे में जैसे ही जानकारी मिली, वे अगले ही स्टेशन पर उतर गए और वापस विन्नित्सिया चले गए। तब विश्वविद्यालय में पढ़ाई तुरंत ऑनलाइन हो गई। वह कहते हैं कि उनके लिए अपने सहयोगियों के साथ- साथ उनके छात्रों की भलाई सर्वोच्च प्राथमिकता थी।

साथ ही उन्होंने कहा कि हम अपने छात्रों और कर्मियों के बारे में सोच रहे हैं कि हमें क्या करना चाहिए और हमें उनसे क्या कहना चाहिए। वह कहते हैं कि हमारे लिए मुख्य बिंदु है छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता देना हमें सबसे जरूरी काम लगता है।

क्योंकि इस प्रकार के युद्ध से मानसिक तमान सबसे अधिक होता है। विशेषकर छात्र-छात्राओं के में। अब खड्झिनोव के विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने क्षेत्रीय रक्षा बलों में प्रवेश किया है। ध्यान रहे कि यूक्रेनी सेना देश की रक्षा के इच्छुक हर वयस्क को हथियार सौंप रही है।

अब तक ऐसे लगभग 18,000 हथियार दिए जा चुके हैं। खड्झिनोव कहते हैं कि यह स्थिति तब है जब यूक्रेनी सरकार ने 18-60 आयु वर्ग के सभी पुरुषों की भर्ती की घोषणा की है, लेकिन उसने छात्रों और विश्वविद्यालयों में या वैज्ञानिक पदों पर काम करने वालों या पढ़ाने वालों को छूट दी हुई है।

यूक्रेनी राजधानी कीव पर सबसे अधिक रूसी बमबारी हो रही है। यहां अभी तक अपने को बचा कर रखने वाले कीव की तारस शेवचेंको नेशनल यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञानी मैक्सिम स्ट्रीखा कहते हैं कि हम हर दिन गोलाबारी सुन रहे हैं।

उनका कहना है कि यहां रूसी सैनिकों के छोटे समूह लगातार शहर में घुसने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक यूक्रेनी सैनिकों ने उन्हें रोक दिया है। वह कहते हैं कि उनके अपने संस्थान के दर्जनों युवा छात्रों ने भी हथियार उठा लिए हैं। वह कहते हैं वे छात्र या तो युद्ध के मैदान में लड़ रहे हैं या सेना का समर्थन कर रहे हैं।

कीव के उत्तरपूर्वी रूसी सीमा से 30 किलोमीटर दूर सुमी राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित है। अर्थशास्त्री और संस्थान के वैज्ञानिक यूरी डैंको का कहना है कि गोलाबारी से छात्रावास और विश्वविद्यालय की इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा है। सभी खिड़कियां, दरवाजे टूट चुके हैं और आसपास की सभी भवन नष्ट हो गए हैं।

वह आगे कहते हैं कि इतना कुछ भयावह होने के बावजूद कुछ ही गिने चुने छात्र यहां से गए हैं अन्यथा अधिकांश यहां रह गए हैं और हम सबने मिलकर शहर की रक्षा के लिए एक क्षेत्रीय रक्षा इकाई बनाई है, जिसमें सभी प्रकार के लोगों को शामिल किया गया है।

वह कहते हैं कि मैं भारी मन से यह स्वीकार करता हूं कि जिन हाथों में कलम या परखनली होनी चाहिए थी, अब उन्हीं छात्रों और वैज्ञानिकों के हाथों में आप घातक हथियार उठाए देख सकते हैं।

यूक्रेन के भौतिक विज्ञानी जॉर्ज गामोटा को यह युद्ध अपने बचपन की याद दिलाता है। जब वह 1944 के विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ से केवल 5 वर्ष की आयु में अपने परिवार के साथ यूक्रेन से अमेरिका चले गए थे। और इसके बाद पेंटागन में काम किया और बाद में मिशिगन विश्वविद्यालय (अमेरिका) में एक संस्थान के निदेशक के रूप में काम करने के बाद वापस लौटे।

और जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो उन्होंने यूक्रेन को विकसित करने के लिए अपने कई साल यहां लगाए। गामोटा कहते हैं कि अभी मात्र छह महीने पहले मैं प्रयोगशालाओं और प्रमुख विभागों में काम करने वाले युवा वैज्ञानिकों को देखकर उत्साह से भरा हुआ था लेकिन अब सब कुछ बदल गया है।

वह कहते हैं कि एक संभावना है कि रूस यहां शासन परिवर्तन कर सकता है और क्रेमलिन के अनुकूल सरकार स्थापित कर सकता है। वह कहते हैं कि यह एक त्रासदी होगी क्योंकि तब बड़ी संख्या में यहां से युवा भाग जाएंगे और यूक्रेन का वास्तवि रूप में विकसित होने की संभावना पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।