भूस्खलन धरती पर सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है, जिससे हर साल अरबों रुपयों के साथ जान-माल का भारी नुकसान होता है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक ऐसा तरीका विकसित किया है, जिससे भूस्खलन का पूर्वानुमान लगाने और खतरों का मूल्यांकन करने वाले लोगों को मदद मिलेगी।
मौजूदा पूर्वानुमान मॉडल डेटाबेस पर निर्भर रहते हैं जिसमें आम तौर पर मानचित्रण किए गए भूस्खलन के प्रकार के बारे में जानकारी शामिल नहीं होती है।
लेकिन नए मॉडल के आधार पर 80 से 94 प्रतिशत सटीकता का अनुमान लगाया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में भूस्खलन का अध्ययन किया, जैसे कि चीन के बेइचुआन में 2008 की आपदा, ताकि उनकी गतिविधियों और विफलता के प्रकारों को समझने के लिए एक नया प्रतिमान विकसित किया जा सके।
इटली, अमेरिका, डेनमार्क, तुर्की, भारत और चीन सहित विभिन्न स्थानों का अध्ययन किया गया। अलग-अलग देशों, विभिन्न क्षेत्रों और जलवायु में इसका उपयोग किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर भूस्खलन स्थलों के हवाई दृश्य और ऊंचाई के आंकड़ों का उपयोग किया और दुनिया भर के विभिन्न स्थानों में भूस्खलन की गतिविधियों की पहचान की।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस शोध में कहा गया है कि इसका वास्तविक दुनिया में प्रयोग भारत के हिमालयी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने भूस्खलन के कई मामले देखे हैं। सड़कें दो या तीन सप्ताह तक अवरुद्ध रहती हैं। शहरों से गांवों तक कोई संचार नहीं होता। इससे लोग अपनी नौकरी पर नहीं जा पाते या छात्र स्कूल नहीं जा पाते हैं।
उन्हें उम्मीद है कि भूस्खलन की इस गतिविधि की यह गहरी समझ उन लोगों की मदद करेगी जो घातक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने, खतरों के मूल्यांकन मॉडल की सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए काम करते हैं, जिससे जान बचाने और नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी।