उमेश कुमार राय
आर्सेनिक एक जहरीला तत्व है, जो गंगा के मैदानी इलाकों के भूगर्भ जल में पाया जाता है। ये तत्व अगर सामान्य से ज्यादा मात्रा में मानव शरीर में प्रवेश कर जाए, तो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो जाती है। पानी से आर्सनिक निकालना एक खर्चीली प्रक्रिया है। लेकिन, एक नए शोध में जो बातें सामने आई हैं, उससे पानी से आर्सेनिक को बाहर निकालना आसान हो सकता है। जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज की तरफ से जलीय पौधे पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस को लेकर किए गए शोध में पता चला है कि ये पौधे बड़ी मात्रा में पानी से आर्सेनिक सोख सकते हैं।
‘फाइयो-रेमेडियल डिटॉक्सीफिकेशन ऑफ आर्सेनिक बाई पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस एंड असेसमेंट ऑफ इट्स एंटी-ऑक्सीडेटिव इंजाइमेटिक चेंज’ नाम से बायोरेमेडिएशन जर्नल में छपे शोध पत्र में बताया गया है कि ये जलीय पौधा पानी से आर्सेनिक को सोखकर बायोरेमेडिएशन करता है। साथ ही जब वह पौधा आर्सेनिक को अपने शरीर में खींचता है, तो उसमें चयापचयी (मेटाबोलिक) बदलाव भी आता है। और ये बदलाव आर्सेनिक की मात्रा के साथ बदलता रहता है। यह बदलाव बायो इंडिकेटर का काम कर सकता है।
जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल स्टडीज के डायरेक्टर डॉ तरित रायचौधरी ने डाउन टू अर्थ को बताया, “दुनिया में ऐसे अनगिनत जलीय व थलीय पेड़ पौधे हैं, जो पारा, फ्लोराइड, आर्सेनिक समेत अन्य नुकसानदेह तत्वों को सोख लेते हैं। हमने ऐसे ही एक पौधे पिस्टिया स्ट्रैटियोटिस को लेकर शोध किया है। ये जलीय पौधा बंगाल के ग्रामीण इलाकों में तालाबों, पोखरों और जलाशयों में बड़ी संख्या में मिल जाता है। हमने जादवपुर यूनिवर्सिटी के तालाब से इस पौधे को लिया और शोध किया।”
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जीवित पौधों को लेकर अपने तरह का यह अनोखा शोध है क्योंकि इसमें आर्सेनिक लेने पर पौधों में होनेवाले मेटाबोलिक बदलाव की भी जानकारी मिली है। डॉ तरित रायचौधरी ने कहा, “यह बिल्कुल नया शोध है। अगर हम आर्सेनिक दूषित तालाबों में इन पौधों को उगाएं, तो वे न केवल आर्सेनिक को सोखेगा, बल्कि इन पौधों के जरिए शोध कर यह भी पता लगाया जा सकता है कि वह कितनी मात्रा में आर्सेनिक सोख रहा है।”
शोध के लिए पानी में अलग-अलग मात्रा में आर्सेनिक डाला गया और उसमें पौधे को रख दिया गया। शोध में पता चला कि 10 पीपीबी आर्सेनिकयुक्त पानी से एक पौधे ने 28 दिनों में 61.42 प्रतिशत आर्सेनिक निकाल दिया। वहीं, पानी 100 पीपीबी आर्सेनिकयुक्त पानी से पौधे ने 28 दिनों में 38.22 प्रतिशत आर्सेनिक निकाला। शोधपत्र के अनुसार, इन पौधों का इस्तेमाल वायुमंडल में आर्सेनिक के बायोइंडिकेटर के तौर पर किया सकता है। यही नहीं, इनका प्रयोग आर्सेनिक से प्रदूषित पानी के ट्रीटमेंट के लिए एक सस्ता और प्रभावी समाधान के रूप में भी किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत में भूगर्भ जल में आर्सेनिक एक बड़ी समस्या है। देश के 12 राज्यों के 96 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक है। पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 1.47 लोग पानी में आर्सेनिक के खतरे से जूझ रहे हैं।
बंगाल के 104 ब्लॉक के भूगर्भ जल में आर्सेनिक
पश्चिम बंगाल की बात करें, तो यहां 9756 इलाकों में भूगर्भ जल में आर्सेनिक मौजूद है। पश्चिम बंगाल के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, मालदह के आठ, मुर्शिदाबाद के 23, नदिया के 17, उत्तर 24 परगना जिले के 22, दक्षिण 24 परगना जिले के नौ, बर्दवान के छह, हावड़ा के पांच, हुगली के 11, कूचबिहार, दक्षिण दिनाजपुर और उत्तर दिनाजपुर के एक-एक ब्लॉक का भूगर्भ जल आर्सेनिक से प्रदूषित है।
डॉ रायचौधरी के मुताबिक, प्रति लीटर पानी में 10 मिलीग्राम तक आर्सेनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है। इससे अगर ज्यादा आर्सेनिक का सेवन अगर किया जाए, तो वह बीमारी का कारण बन सकता है।दो साल पहले यादवपुर यूनिवर्सिटी ने उत्तर 24 परगना जिले के एक ग्रामीण स्कूल के चापाकल से पानी पीनेवाले बच्चों की जांच की की थी। जांच में पता चला था कि बच्चों के शरीर में 40 मिलीग्राम से ज्यादा आर्सेनिक था। जानकार बताते हैं कि पौधों के जरिए पानी से आर्सेनिक निकालना किफायती होगा, लेकिन इसके लिए और शोध करने की जरूरत है।