विज्ञान

ऑनलाइन शिक्षा: बिना प्रयोगशाला के विज्ञान की पढ़ाई संभव है?

कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है, लेकिन क्या यह विज्ञान के छात्रों के लिए बेहतर विकल्प होगा?

DTE Staff

अनुपम कुमार

किताब पढ़कर ना तो तैराकी सीखी जा सकती है और ना ही क्रिकेट विज्ञान की पढ़ाई भी कुछ इसी तरह की है, जहां प्रयोगशाला में प्रैक्टिकल करने के बाद ही छात्र अपने ज्ञान या सिद्धांत की पुष्टि करते हैं। नए-नए अनुभवों से गुजरते हैं उसका अपना आनंद है, लेकिन कोरोना काल में ऑनलाइन पढाई ने छात्रों को इस अनुभव से वंचित कर दिया है। स्कूल और कॉलेज की प्रयोगशालाएं बंद हो गई हैं। छात्रों से कहा गया है कि ऑनलाइन पढ़ाई करो और लैब वर्क यानी प्रैक्टिकल भी इसी तरह करो। उधर संकट काल में शिक्षण की यह पद्धति अपनाने के लिए छात्र तैयार हैं, लेकिन आगे की पढ़ाई-लिखाई इसी राह पर ना चल पड़े इसका डर शिक्षकों और छात्रों को खूब सता रहा है। उनका कहना है कि ऐसा करने से विज्ञान की पढ़ाई ऐसी दुनिया की गिरफ्त में जाएगा जहां खाने का आभास होगा, अनुभव नहीं। विज्ञान छात्रों को प्रयोग के बलबूते ही वास्तविक दुनिया में ले जाता है। जहां स्वाद का पता चलता है, फूलों और पत्तियों का स्पर्श और गंध, मनुष्य का सांस लेना आदि सबकुछ सीधे-सीधे अनुभव में उतरता है।

आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज, दिल्ली के शिक्षक सुभाष कुमार कहते हैं कि विज्ञान की पढ़ाई इंटरएक्टिव तभी हो पाती है जब हम छात्रों से उनकी प्रयोगशाला में मिलते हैं। कौन किस परिस्थिति में बैठा और क्या कर रहा है यह सबकुछ आंखों के सामने दिख जाता है। उनकी कमियां सामने आती हैं जिस पर फौरन ध्यान जाता है। विज्ञान की आत्मा उसकी प्रयोगशाला है। इसकी सभी थियरी भी प्रयोग के बाद ही आया है। लेकिन इंटरनेट की मदद से ऑनलाइन प्रयोगशाला और थियरी की पढ़ाई का जो विकल्प अपनाने को कहा गया है वह गैर वाजिब है। इसके कई साइड इफेक्ट्स हैं जैसे लगातार स्क्रीन देखने से मेंटल डिसऑर्डर पैदा होता है। छात्रों के मुताबिक इससे विज्ञान की मूल आत्मा भी पहचानना मुश्किल होगा। 

दयाल सिंह कॉलेज में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर अजय भागी कहते हैं, क्लास रूम टीचिंग यानी ऑफलाइन एक बेहतर विकल्प है, लेकिन ऑनलाइन को भी अब एक विकल्प रूप में खड़ा कर दिया गया है। भारत जैसे देश में दिक्कत यह है कि अचानक ऑनलाइन मोड में विज्ञान की पढ़ाई को नहीं ले जाया जा सकता। इसके लिए बच्चों और शिक्षकों को पूरी तरह प्रशिक्षित करना होगा। हालांकि वह मानते हैं कि अब पूरी तरह ऑनलाइन को भी खारिज नहीं किया जा सकता। इसके अपने फायदे हैं।

कोरोना काल में इग्नू के कुलपति प्रो नागेश्वर राव की कमेटी ने भारत सरकार को जो रिपोर्ट दी है। उसमें भविष्य में ऑनलाइन टीचिंग को अपनाने और उसे विकल्प के रूप में तैयार रखने पर जोर है। बहुत सारी कक्षाएं और कोर्स ऑनलाइन कराने पर जोर है। ऐसे प्रस्ताव को लेकर ही यह विवाद सामने आया है कि क्या लाइफ साइंस और फिजिकल साइंस की पढ़ाई भी अब इसी रास्ते होगी। कोरोना संकट के नाम पर यह प्रयोग आगे प्रचलन में ना जाए इसको लेकर छात्र और शिक्षक सशंकित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय और फेडरेशन ऑ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ राजीव रे ने इस कमेटी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए सरकार को पत्र लिखा।

दिल्ली विश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो रमेशचंद्रा भारत में इसके खतरे गिनाते हुए कहते हैं, रेगुलर और ऑनलाइन का फर्क मिटाना ठीक नहीं है। विज्ञान जैसे विषय में क्लास रूम अध्ययन का विकल्प नहीं हो सकता। जिसका विकल्प है उसके लिए ऑनलाइन मोड है। जो रेगुलर कॉलेज आकर नहीं पढ़ सकते। किसी कामकाज में व्यस्त हैं उनके लिए दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा है। वह कहते हैं, सब्जी बनाने का काम ऑनलाइन नहीं हो सकता है। उसी तरह विज्ञान में जो प्रयोग हो रहे हैं उससे सीधा सरोकार रखना होता है। इसके लिए प्रयोगशाला में प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद रहना होता है। ऑनलाइन टीचिंग ही अगर मुख्य रास्ता हो जाए तो करीब 1500 यूनिवर्सिटी बंद हो जाए। उसकी जरूरत समाज को क्या रहेगी ? भारत जैसे देश में बड़ी आबादी के पठन पाठन और विज्ञान की बेहतरी के लिए प्रयोगषाला आधारित पढ़ाई होनी चाहिए। 

भारत में उच्च शिक्षा को लेकर बजट में जिस तरह की कटौती हो रही है उससे यह आशंका मजबूत हो गई है कि आने वाली शिक्षा ऑनलाइन ही ना चल पड़े। विज्ञान की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च होता है। रिसर्च और लैब स्थापित करने में जो खर्च आता है उसको कम करने के लिए ऑनलाइन प्रयोगशाला से ही प्रचलन में ना जाए इसके लिए इसका और विरोध हो रहा है।