विज्ञान

कोचिंग अर्थव्यवस्था के लिए कितनी मुफीद है ऑनलाइन शिक्षा

ऑनलाइन शिक्षा के कारण कोचिंग सेंटर्स और उसके आसपास के इलाके सूने पड़ गए हैं

DTE Staff
सिविल सर्विस में भर्ती होने का ख्वाब लेकर दिल्ली आए रोहित शुक्ला लॉक डाउन के बीच ही घर वापस लौट रहे हैं। फोन पर हुई बातचीत में वे कहते हैं कि लॉक डाउन ने सब खत्म कर दिया। वे आगे कहते हैं कि कोरोनावायरस खत्म होता नहीं दिख रहा और जब तक ये पूरी तरह से खत्म नहीं होता तब क्लास चलेगी नहीं, किसी परीक्षा के होने की भी उम्मीद भी बहुत कम है। ये स्थिति न जाने कब तक रहे, इसलिये यहां रहने का कोई कारण नहीं है। अगर ऑनलाइन ही पढ़ना है, तो वो तो घर पर भी हो सकती है, यहां रहकर इतना पैसा क्यों खर्च करूं?

तैयारी को बीच में ही छोड़ घर लौटने वाले रोहित अकेले नहीं हैं, इलाहाबाद में रहकर एसएससी की तैयारी करने वाले दिलीप, राजस्थान के कोटा में 'नीट' की तैयारी करने वाले शैलेंद्र जैसे हजारों युवा हैं जो घर वापस लौट गये हैं। यूपीएससी की तैयारी कर रहे वाले हिमांशु भी ऑनलाइन शिक्षा ले रहे हैं, हालांकि वे इससे खुश नहीं हैं।

दिल्ली के मुखर्जी नगर, नेहरु विहार, राजेंद्र नगर, पटेल नगर, बेर सराय, मुनिरका, जिया सराय, कटवारिया सराय ये सभी इलाके ऐसे हैं, जिनके आसपास दिल्ली विश्वविद्यालय, आइआइटी, जेएनयू समेत कई छोटे और बड़े संस्थान स्थित हैं, जहां से निकलने के बाद लड़के इन्हीं इलाकों में आकर रहते हैं। और इन्हीं के साथ रहते हैं वे लोग भी जो छोटे शहरों गांव कस्बों से निकल कर बड़े शहरों में अच्छी शिक्षा के लिये आते हैं।

पिछ्ले 2 दशकों में कोचिंग इंडस्ट्री लगातार विस्तार कर रही है। आज की तारीख में इसकी मार्केट वैल्यू 35 हजार करोड़ के आसपास है। करीब 33 प्रतिशत भारतीय छात्र ऐसे हैं जो एक बार कोचिंग जरुर जाते हैं, जिसके लिये उनको घरों से बाहर निकलना पड़ता है। इंजीनियरिंग और मेडिकल दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां छात्र यूनिवर्सिटी या कॉलेज जाने से पहले कोचिंग में एडमिशन लेते हैं ताकि किसी अच्छे संस्थान में दाखिला ले सकें।

इसका नतीजा ये हुआ कि कोचिंग इंडस्ट्री के सहारे तमाम शहरों का विस्तार हो गया या कहें कि ये नये शहर ही बस गये। कोटा इसी तरह का शहर है जो पूरी तरह से छात्रों पर निर्भर है। कोटा में स्टूडेंट हॉस्टल चलाने वाले एक व्यक्ति कहते हैं, "मेरी 2 बिल्डिंग हैं, जिसमें 100 के करीब लड़के रहते हैं। सब अलग-अलग वर्ग के लोग हैं, कोई एसी कमरे की डिमांड करता है तो कई कूलर पंखे के सहारे ही रहते हैं। उनके लिये खाना भी अपनी मेस से सप्लाई करता हूं। कोटा आने वाला हर लड़का औसतन दस हजार रुपए प्रति महीने रहने और खाने पर खर्च करता है, यही हमारी कमाई का जरिया है।" लॉक डाऊन के क्या प्रभाव हुए हैं? इस पर वे कहते हैं कि इस समय पूरा कोटा खाली हो गया है, क्योंकि आइआइटी,नीट की परीक्षा अभी तक हुई नहीं है, आगे भी कुछ पता नहीं कि कब होगी, इस कारण सब छात्र घर लौट गये हैं। नये बच्चे जो मई की शुरुआत से आने लगते थे वे भी नहीं आए हैं। अब तो भगवान ही मालिक है कि क्या होगा, अगर ऑनलाइन शिक्षा का विस्तार हुआ तो कोटा शहर हमेशा के लिए बदल जाएगा। 

इलाहाबाद में 50 कमरों का हॉस्टल चलाने वाले बराती लाल साहू बताते हैं, "यहां पढ़ाई के लिए आने वाले दो तरह के छात्र हैं, एक जो विश्वविधालय में पढ़ने आते हैं, दूसरे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिये। दोनों ही तरह के छात्र बाहर कमरा लेकर रहते हैं। इस कारण यहां अर्थव्यवस्था दूसरे तरह से काम करती है। नौकरी मिलने में कितना टाईम लगेगा इसका कोई भरोसा नहीं होता है, दूसरा विश्वविद्यालय की पढ़ाई के बाद लड़के यहीं रहकर नौकरी की तैयारी करने लगते हैं। इसमें ज्यादातर लड़को को पांच साल या उससे ज्यादा भी रहना पड़ जाता है।
दिल्ली का हाल भी इससे अलग नहीं है। बेर सराय में कमरा किराये पर देने वाले तोता भाई बताते हैं कि उनकी दो बिल्डिंग हैं, जो हर समय किराये पर लगी रहती हैं, शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि कोई कमरा महीने भर से ज्यादा के लिये खाली रहा हो, आज हालत ये है कि उनकी दोनों ही बिल्डिंगों में एक भी किरायेदार नहीं है, दो महीने में सब छोड़कर चले गये। अब तो बस ये लग रहा है कि किराया भले ही कम मिले बस कमरे किराये पर लग जाएं।

रेस्टोरेंट चलाने विकास पवार कहते हैं, "पहले मेरे यहां 250 स्टूडेंट खाना खाते थे, जिसमें से कुछ मंथली थे तो कुछ आने-जाने वाले लेकिन अब यह संख्या घटकर 30-40 तक सिमट गई है।" इसका कारण क्या है? इस पर वे कहते हैं कि मेरे रेस्टाेरेंट में मंथली खाना खाने वालों ने मेस बंद करते हुए यही कहा कि क्लास अब ऑनलाइन चलेंगी इस कारण वे घर जा रहे हैं।

स्टूडेंट बहुल इलाकों कमरा और बाकि जरूरतों के अलावा एक और बहुत जरुरी चीज होती है किताबों की दुकानें, जो केवल छात्रों के भरोसे और उनकी जरुरत पर ही चलती हैं। जैसे-जैसे ऑनलाइन का स्कोप बढ़ेगा बुक इंडस्ट्री खतरे में पड़ सकती है, चुनौतियों का सामना तो अभी भी कर रही है।