विज्ञान

दिन की तुलना में रात में सक्रिय होते हैं एक-तिहाई अधिक कीट, कैसे जलवायु परिवर्तन डाल रहा है असर

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि दिन की तुलना में रात के समय कीटों की गतिविधियां 31.4 फीसदी तक बढ़ जाती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? वो कौन से कारक हैं जो दिन-रात के चक्र में इनकी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं।

यह सदियों पुराने कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके निश्चित जवाब अब तक नहीं मिल पाए हैं। लेकिन पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के डॉक्टर मार्क वोंग के नेतृत्व में वैज्ञानकों ने दुनिया भर में कीटों पर किए अपने अध्ययन से इन सवालों के जवाब ढूंढ निकालने का दावा किया है।

बता दें कि अपने इस व्यापक शोध में वैज्ञानिकों ने दिन और रात के चक्र में कीट गतिविधियों के पैटर्न की पहली वैश्विक तस्वीर प्रस्तुत की है। रिसर्च में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि रात के दौरान कीटों की गतिविधियां वैश्विक स्तर पर औसतन एक तिहाई बढ़ जाती है। हालांकि यह काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर भी करता है कि यह कीट किस स्थान या परिवेश में रह रहे हैं।

इन नतीजों पर पहुंचने के लिए अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हजारों दूसरे शोधों की भी जांच की है। इस दौरान उन्हें 1959 से 2022 के बीच किए गए 99 ऐसे अध्ययन मिले हैं, जिनमें उष्णकटिबंधीय जंगलों, समशीतोष्ण वनों, शुष्क घास के मैदानों और जलीय पारिस्थितिक तंत्रों सहित विभिन्न परिदृश्यों में कीट गतिविधियों के पैटर्न को रिकॉर्ड किया गया है।

इन अध्ययनों में 30 लाख से अधिक कीटों का अवलोकन किया गया है। अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन पारिस्थितिकी कारकों को भी उजागर किया गया है जो दुनिया भर में कीटों की गतिविधियों के पैटर्न को आकार देते हैं।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक वैश्विक स्तर पर दिन के तुलना में रात के दौरान कीटों की गतिविधियां औसतन 31.4 फीसदी बढ़ जाती है। पतंगे, मेफ्लाइज, कैडिसफ्लाइज और ईयरविग्स जैसे कीटों के समूह रात में कहीं ज्यादा सक्रिय रहते हैं। वहीं इसके विपरीत मधुमक्खियों, ततैया, थ्रिप्स और चींटियों की दिन के दौरान कहीं ज्यादा गतिविधियां देखी गई। इसी तरह नदियों और झरनों के आसपास रात के समय कीटों की गतिविधियां कहीं बढ़ गई, जहां दिन की तुलना में रात में दोगुने कीट सक्रिय थे।

यदि परिवेश के लिहाज से देखें तो भूमि पर कीटों की गतिविधियां आमतौर पर दिन के दौरान अधिक दर्ज की गई। विशेष रूप से घास के मैदानों और सवाना में जहां दिन के उजाले में कीटों की संख्या तीन गुणा तक बढ़ सकती है।

इस बारे में डॉक्टर मार्क वोंग ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी साझा करते हुए कहा है कि स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र में ये विपरीत पैटर्न शिकारियों से बचने की रणनीतियों को प्रतिबिंबित करता है। उनके मुताबिक जहां मछलियां अक्सर दिन के दौरान कीटों का शिकार करती हैं, वहीं चमगादड़ जैसे रात्रिचर शिकारी रात में जमीनी जीवों के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं।

तापमान जैसे पर्यावरणीय कारक इन कीटों को कैसे प्रभावित करते हैं इसपर प्रकाश डालते हुए अध्ययन में कहा गया है कि गर्म क्षेत्रों में कीटों की रात्रि के समय अधिक गतिविधियां देखी गई हैं, क्योंकि कीट दिन की गर्मी से बचने के लिए अपने आश्रय में छुपे रहते हैं। शोधकर्तओं ने इन कीटों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के महत्व पर जोर देते हुए इन कीटों के सामने आने वाले खतरों को भी उजागर किया है।

बैठते तापमान के साथ गर्म क्षेत्रों में बढ़ रही हैं कीटों के लिए चुनौतियां

अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग के खतरों पर प्रकाश डालते हुए जानकारी दी है कि उष्णकटिबंधीय जैसे दुनिया के सबसे गर्म क्षेत्रों में, बढ़ते तापमान से कीटों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

बढ़ता तापमान रात के समय सक्रिय रहने वाले उन कीटों की गतिविधियों को सीमित कर सकता है, जो पहले ही गर्मी से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कीटों के तापमान को सहने की क्षमता काफी कमजोर होती है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान की वजह से कीटों का व्यवहार बदल रहा है। इसकी वजह से परागण करने वाले महत्वपूर्ण कीट भी खतरे में हैं।

शोध के मुताबिक कृत्रिम प्रकाश भी इन कीटों कों नुकसान पहुंचा सकता है। इसकी वजह से पारिस्थितिक तंत्र में इनके प्राकृतिक व्यवहार में गड़बड़ी आ सकती है।

शोध के मुताबिक यह कीट परागण, पोषक तत्व चक्र और कीट नियंत्रण जैसी सेवाएं प्रदान करके कीट पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें से कई सेवाएं यह रात में प्रदान करते हैं जब यह अधिक सक्रिय होते हैं।

जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक स्तर तापमान में होती वृद्धि और भूमि उपयोग में आते बदलावों ने दुनिया के कई हिस्सों में कीटों की आबादी को करीब आधा कर दिया है। कई क्षेत्रों में तो इनकी आबादी में 63 फीसदी तक की गिरावट देखी गई है।

इसी तरह परागण करने वाले कीट विशेष रूप से तेजी से होते कृषि विस्तार के कारण प्रभावित होते हैं। यह कीट अपने प्राकृतिक आवासों की तुलना में उन क्षेत्रों में 70 फीसदी कम नजर आते हैं जहां गहन कृषि की जा रही है।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि गाड़ियों, फैक्ट्रियों, जंगल में धधकती आग और अन्य स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषण के महीन कण इंसानों के साथ-साथ कीटों को भी प्रभावित कर रहे हैं। इनकी वजह से कीटों के एंटीना और रिसेप्टर्स की क्षमता पर असर पड़ रहा है। नतीजन इन जीवों को अपना आहार, साथी, या अंडे देने के लिए सुरक्षित जगह खोजने में दिक्कतें आ रही हैं।

प्रकृति विविधताओं से भरी है और इन्हीं विविधताओं का एक अंश हैं कीट। यह नन्हे जीव सदैव से ही इंसानों के लिए कौतुहल का विषय रहे हैं। इनमें से कुछ से इंसान डरता है वहीं कुछ को बेहद पसंद करता है। लेकिन सच यह है कि यह जीव हमारे इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए बेहद अहम हैं।

इसके साथ ही यह खाद्य सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी हैं। दुनिया के करीब 200 देशों पर किए अध्ययन से पता चला है कि दुनिया की 87 प्रमुख खाद्य फसलों से प्राप्त होने वाले फल, सब्जियां और बीज कहीं न कहीं परागण करने वाले कीटों पर निर्भर हैं।   

यह धरती पर जैवविविधता के लिए किस कदर महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरती पर सभी जीवों में करीब 80 फीसदी आबादी कीटों की है। आपको जानकारी हैरानी होगी की दुनिया में अभी भी कीटों की 80 फीसदी प्रजातियों को खोजा नहीं जा सका है, जिनमें से कई उष्णकटिबंधीय प्रजातियां हैं। जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में छपे एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में कीटों की आबादी तेजी से घट रही है।

अनुमान है कि यदि ऐसा हो चलता रहा तो अगले कुछ दशकों में दुनिया के करीब 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगें। वहीं जर्नल साइंस में छपे शोध से पता चला है कि 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की कमी आई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कीट हर दशक नौ फीसदी की दर से कम हो रहे हैं।

ऐसे में इससे पहले बहुत देर हो जाए इन जीवों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को बढ़ावा देना जरूरी है। हमें समझना होगा कि यह नन्हें जीव भी धरती का एक अभिन्न अंग हैं, जिनके बिना धरती पर जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती।