विज्ञान

अब वातावरण की नमी से दूर होगी पानी की किल्लत

यह नई तकनीक बिना किसी ऊर्जा के हर दिन कम से कम दो बार पानी का उत्पादन कर सकती है

Dayanidhi

दुनिया के कई हिस्सों में पीने के पानी की कमी है और इस कमी को दूर करने के लिए उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। समुद्र के पास रहने वाले लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए समुद्र के पानी से खारेपन को हटा सकते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। तट से दूर रहने वाले लोग एक विकल्प जिसमें वायुमंडलीय नमी को ठंडा करके पानी में बदलकर इसका उपयोग कर सकते हैं।

ऐसे तरीकों को अपनाया जा सकता है जिससे पानी की कमी को दूर किया जा सके, लेकिन इसके लिए भी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। सबसे अच्छा है "निष्क्रिय" तकनीकों का उपयोग करना अर्थात जिसमें बाहर से किसी तरह की ऊर्जा की जरुरत नहीं होती है। यह दिन और रात के बीच बदलते तापमान का फायदा उठाता है।

हालांकि, वर्तमान निष्क्रिय  तकनीकों में, जैसे ओस-इकट्ठा करने वाली पन्नी, इसकी मदद से पानी को केवल रात में ही निकाला जा सकता है। दिन में सूरज इस पन्नी को गर्म कर देता है, जिससे पानी इकट्ठा करना असंभव हो जाता है।

ज्यूरिख में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी  के शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो पहली बार उन्हें चौबीसों घंटे बिना किसी ऊर्जा के, यहां तक कि तेज धूप में भी पानी इकट्ठा करने में सफल बनाती है।

इस नए उपकरण में एक कांच की परत होती है, जो वातावरण के माध्यम से बाहरी गर्मी को दूर करती है। इस प्रकार यह अपने आप को वातावरण के तापमान से 15 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर लेता है। इस कांच से बनी परत जिसे फलक कहते हैं, इसके नीचे, हवा से जल वाष्प ठंडा होकर पानी में बदल जाता है। प्रक्रिया वही है जो सर्दियों के दौरान खराब इन्सुलेटेड खिड़कियों पर देखी जा सकती है।

वैज्ञानिकों ने कांच पर विशेष रूप से डिजाइन किए गए पॉलीमर और चांदी की परतें चढ़ाई। यह विशेष कोटिंग पॉलीमर को एक विशिष्ट तरंग दैर्ध्य पर बाहरी वातावरण में विकिरण का उत्सर्जन करने में सफल बनता है, जिसमें न तो वातावरण द्वारा अवशोषण होता है और न ही पॉलीमर पर प्रतिबिंब वापस आता है।

उपकरण का एक अन्य प्रमुख तत्व एक शंकु के आकार की तरह होता है जो गर्मी को बाहर की और ढकेल देता है। इससे काफी हद तक वायुमंडल से गर्मी वापस चली जाती है। नमी पॉलीमर की ढाल पर आ जाती है, उपकरण के गर्मी को बाहर की ओर धकेलने से यह पूरी तरह बिना ऊर्जा के स्वयं को ठंडा करता है।

एक भवन की छत पर में लगे नए उपकरण के परीक्षण से पता चलता है, कि नई तकनीक प्रतिदिन कम से कम दो बार पानी का उत्पादन कर सकती है। जो कि बिना ऊर्जा अथवा निष्क्रिय तकनीक के आधार पर काम करती हैं। छोटे 10 सेंटीमीटर व्यास के पॉलीमर वाली प्रणाली ने वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों में प्रति दिन 4.6 मिलीलीटर पानी का उत्पादन किया। बड़े पैन वाले बड़े उपकरण तदनुसार और अधिक पानी का उत्पादन करेंगे।

वैज्ञानिक यह दिखाने में सफल रहे कि, आदर्श परिस्थितियों में वे प्रति वर्ग मीटर की सतह पर प्रति घंटे 0.53 डेसीलीटर पानी को इकट्ठा कर सकते हैं। यह अध्ययन साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है।

अन्य तकनीकों में आमतौर पर जहां पानी जमा होता है। उस सतह को पोंछ कर पानी को इकट्ठा करना पड़ता है, जिसके लिए ऊर्जा की जरुरत होती है। जमा पानी का अधिकतर हिस्सा सतह से चिपकने की वजह से इसका पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाता है। शोधकर्ताओं ने अपने पानी के कंडेनसर में फलक के नीचे एक नए सुपर हाइड्रोफोबिक कोटिंग का उपयोग किया है। जिससे पानी अपने आप इकट्ठा हो जाता है, इसे पोंछकर इकट्ठा करने की जरुरत नहीं पड़ेगी।

शोधकर्ताओं ने बताया कि उनका लक्ष्य पानी की कमी वाले देशों और विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक तकनीक विकसित करना था। अन्य वैज्ञानिकों के पास पानी के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस तकनीक को और विकसित करने या पानी के खारेपन को दूर करने जैसी अन्य तकनीकों के साथ जोड़ कर इसे आगे बढ़ाने का अवसर है। इस तरीके से पानी का उत्पादन करना अपेक्षाकृत सरल है और मौजूदा छोटी प्रणाली के आधार पर इसे बड़ा रूप दिया जा सकता है।