विज्ञान

अब 3 महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है गन्ने का रस, आईआईटी खड़गपुर ने बनाई तकनीक

Dayanidhi

गन्ने का रस एक समृद्ध पौष्टिक पेय है, इसमें स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने वाले फाइटोन्यूट्रिएंट्स, एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी और बी पाए जाते हैं।  यह लू लगने (हीटस्ट्रोक), शरीर में पानी की कमी, कब्ज, पीलिया आदि में ऊर्जा की आपूर्ति करके तुरंत राहत देता है। इसमें सामान्य तरह की चीनी न के बराबर होती है तथा ग्लाइसेमिक का सूचकांक (30-40) भी कम होता है, जिन लोगों को मधुमेह है उनके द्वारा भी इसका सामान्य तरीके से उपयोग किया जा सकता है।

हालांकि जैविक प्रक्रियाओं के कारण गन्ने का रस निकालने के कुछ ही समय बाद इसका रंग और स्वाद खराब हो जाता है। यहीं कारण है कि इसे लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता है। गन्ने के रस का लंबे समय तक इस्तेमाल करने के लिए थर्मल उपचार किया जा सकता है, लेकिन इससे इसका स्वाद और सुगंध नष्ट हो जाती हैं। बिना थर्मल वाले तरीके से उपचारित करने पर ऐसा नहीं होता है।

आईआईटी खड़गपुर के कृषि और खाद्य अभियांत्रिकी विभाग के शोध छात्र चिरस्मिता पाणिग्रही ने अपने पीएचडी शोध के हिस्से के रूप में, गन्ने के रस को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए एक नई तकनीक ओजोन-असिस्टेड कोल्ड स्टरलाइजेशन टेक्नोलॉजी पर अध्ययन किया है, इस तकनीक में थर्मल उपचार या केमिकल का उयोग नहीं किया जाता है।

इस तकनीक में अच्छे तरीके से छाना गया (अल्ट्रा-फ़िल्टरिंग) और ताज़े निकाले गए गन्ने के रस का ओजोनिज़ेशन शामिल है। जिसके बाद एक कीटाणु विहीन वातावरण में गन्ने के रस की पैकेजिंग होती है। संयुक्त झिल्ली से छानने की प्रक्रिया और ओजोन (ओजोनिज़ेशन) उपचार तकनीक के परिणामस्वरूप बैक्टीरिया में 7 लॉग कमी, यीस्ट और मोल्ड्स में 5 लॉग कमी और एंजाइम पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज की 85 फीसदी निष्क्रियता है। यहां पर लॉग कमी एक माप है, जो किसी दूषित पदार्थ की एकाग्रता को कम करती है।

भंडारण के दौरान देखा गया कि इसके सवाद और रंग में कोई अंतर नहीं पाया गया, अर्थात इसको कुछ हफ्तों तक उपयोग करने के लिए रखा जा सकता है। संयुक्त तकनीक से उपचारित जूस को इसके बायोएक्टिव और आवश्यक पोषक तत्वों में किसी भी बदलाव के बिना ठंडा करके 12 सप्ताह तक सफलतापूर्वक संग्रहीत किया जा सकता है। चिरस्मिता ने बताया कि उपचारित रस के भंडारण के दौरान इसकी विशेषताएं बरकरार रहीं जैसे रस का विशेष रंग और स्वाद।

उनके पीएचडी कार्य को भारत सरकार के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी), नई दिल्ली द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय मेधावी आविष्कार पुरस्कार 2020 के लिए चुना गया था।