वैज्ञानिकों ने कंगारू के भ्रूण तैयार किए। फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान

पहली बार आईवीएफ तकनीक से बना कंगारू भ्रूण: विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण में बड़ी सफलता

ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने आईवीएफ का उपयोग करके 28 कंगारू भ्रूण तैयार किए

Himanshu Nitnaware

वैज्ञानिकों की एक टीम ने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का उपयोग करके पहला कंगारू भ्रूण सफलतापूर्वक तैयार किया है। आईवीएफ तकनीक आमतौर पर मनुष्यों और पालतू जानवरों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है।

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार यह सफलता लगभग लुप्त हो चुके कंगारूओं की मार्सुपियल प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

यह शोध रिप्रोक्शन, फर्टिलिटी एंड डेवलपमेंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है। जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता एंड्रेस गैम्बिनी ने कहा कि शोध ने मार्सुपियल प्रजनन के क्षेत्र बहुमूल्य जानकारी प्राप्त की है।

उन्होंने कहा कि विविधता के मामले में ऑस्ट्रेलिया मार्सुपियल जीवों का सबसे बड़ा घर है, लेकिन यह भी सही है कि यहां स्तनपायी जीव विलुप्त होने की दर भी सबसे अधिक है।

ध्यान रहे कि ऑस्ट्रेलिया ने पिछले ढाई सौ वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में पाई जाने वाली अपनी अनूठी स्तनपायी प्रजातियों में से 87 प्रतिशत को खो दिया है।

2022 के अध्ययन में बताया गया है कि उपनिवेशीकरण के बाद से 38 देशी स्तनपायी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं, जबकि अन्य 52 प्रजातियों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय की श्रेणी में रखा गया है।

शोधकर्ताओं ने पूर्वी ग्रे कंगारू को इसकी प्रचुरता के कारण एक मॉडल प्रजाति के रूप में इस्तेमाल किया है। गैम्बिनी ने कहा कि इस ऐतिहासिक उपलब्धि को संरक्षण देने के लिए अन्य प्रजातियों के सहायक प्रजनन में दोहराया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हमारा अंतिम लक्ष्य कोआला, तस्मानियाई डेविल, बालों वाले वॉम्बैट और लीडबीटर के पोसम जैसी लुप्तप्राय मार्सुपियल प्रजातियों के संरक्षण को बढ़ना है।

शोधकर्ताओं के अनुसार प्रयोगशाला में अंडे और शुक्राणु का विकास किया गया। इसके बाद इंट्रासाइटोप्लाजमिक शुक्राणु इंजेक्शन तकनीक का उपयोग करके निषेचन किया गया, जहां एक शुक्राणु को सीधे परिपक्व अंडे में इंजेक्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप 28 भ्रूण सफलतापूर्वक तैयार हुए।

गैम्बिनी ने बताया कि मार्सुपियल ऊतकों तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है क्योंकि घरेलू जानवरों की तुलना में इस क्षेत्र में सीमित अध्ययन होने के बावजूद मार्सुपियल ऑस्ट्रेलिया की जैव विविधता का अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि हम अब मार्सुपियल अंडे और शुक्राणु को इकट्ठा करने, पालने और संरक्षित करने की तकनीकों को और अधिक परिष्कृत कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों का लक्ष्य इन अनोखी प्रजातियों की आनुवंशिक सामग्री की सुरक्षा के लिए संरक्षण के तरीके विकसित करना है ताकि उनका दीर्घकालिक तक अस्तित्व सुनिश्चित हो सके। उनका अनुमान है कि आईवीएफ के माध्यम से एक मार्सुपियल का जन्म एक दशक के भीतर वास्तविकता बन सकता है।

आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल पहले अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण प्रयासों में मदद के लिए भी किया गया है। 2024 में केन्या के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में बनाए गए भ्रूण को सरोगेट मां में स्थानांतरित करके गैंडे में दुनिया की पहली आईवीएफ गर्भावस्था को सफलतापूर्वक हासिल किया था।