विज्ञान

अब मिलेगी अमेरीकी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को आजादी!

व्हाइट हाउस ऑफिस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी द्वारा आयोजित सम्मेलन में शोध कार्यों पर राजनीतिक हस्तक्षेप प्रतिबंध लगाने की मांग की गई

Anil Ashwani Sharma

अक्सर सुनने में आता है कि केंद्र सरकार वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कार्यों में न केवल हस्ताक्षेप करती है बल्कि वैज्ञानिकों पर आघोषित प्रतिबंध लगे होते हैं कि वे अपने शोध के संबंध में सीधे जनता और मीडिया से बातचीत नहीं कर सकते। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में यह स्थिति बन चुकी थी। यही कारण है कि उनके जाने के बाद अब अमेरिका के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिक समूहों ने न केवल राहत की सांस ली है बल्कि नए राष्ट्रपति जो वाइडन से अपील की है कि इस प्रकार के हस्ताक्षेप पूरी तरह से खत्म किए जाएं और शीघ्र ही इस पर प्रतिबंध लगाया जाए।

वैज्ञानिकों ने यह अपील व्हाइट हाउस ऑफिस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी (ओएसटीपी) द्वारा बुलाए गए एक सम्मेलन में की। अंतराष्ट्रीय पत्रिका नेचर के अनुसार इस सम्मेलन के दौरान वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं द्वारा की गई अपील का असर दिखेगा और निश्विततौर पर भविष्य में वैज्ञानिकों के समूहों को तमाम प्रकार के राजनीतिक हस्ताक्षेप और प्रतिबंधों से निजात मिलगी। 

ध्यान रहे कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने देशभर के सभी वैज्ञानिकों की स्वतंत्रा लगभग खत्म ही कर दी थी और शोधकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले शोधों पर राजनीतिक हस्तक्षेप आम बात हो गई थी। आखिर अब जाकर अमेरिका के वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं ने कंधे से कंघे मिलाकर जो वाइडन प्रशासन से इस प्रकार के तमाम राजनीतिक हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है।      

चार वर्षों के अपने शासनकाल के दौरान पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप प्रशासन ने सरकारी फैसलों में विज्ञान और वैज्ञानिकों को दरकिनार कर दिया था। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि बाइडेन स्वतंत्र वैज्ञानिक कार्य और संचार की रक्षा करेंगे। इस बात की आशा इसलिए बलवती हो चली है, क्योंकि उनके द्वारा जनवरी में सत्ता संभालने के बाद इस दिशा में शीघ्र ही कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।

इसके तहत उन्होंने ओएसटीपी को सभी अमेरिकी एजेंसियों में नियमों की समीक्षा करने का निर्देश दिया ताकि वैज्ञानिक अनुसंधान के संचालन में अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगाया जा सके। ओएसटीपी ने इस मुद्दे से निपटने के लिए मई, 2021 में एक टास्क फोर्स का गठन किया, जिसमें कई अमेरिकी एजेंसियों के लगभग 50 प्रतिनिधि शामिल थे। वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं के समूह ने अब इन प्रतिनिधियों से बातचीत की है। इससे सभी को इस बात की आशा है कि शीघ्र ही देशभर में शोधकार्यों पर राजनीतिक हस्ताक्षेप का पूरी तरह से पटाक्षेप हो जाएगा।

ओएसटीपी के उपनिदेशक कहते हैं कि केंद्रिय सरकार के सामने देशभर के वैज्ञानिक व शोधकर्ताओं की एकजुटता का इतिहास इससे पहले कभी नहीं देखा गया। वह कहते हैं कि वर्तमान प्रयास वैज्ञानिक अखंडता की रक्षा के लिए बहुत अधिक मायने रखता है क्योंकि इसे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक दशक पहले शुरू किया था।

पिछले हफ्ते हुए सम्मेलन के दौरान वहां उपस्थित देशभर के वैज्ञानिक व शोधकर्ता ने सरकारी एजेंसियों से इस बारे में पारदर्शी होने का आग्रह किया। और कहा है कि वैज्ञानिकों को राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना अपने काम को आगे बढ़ाने का मौका दिया जाए। इसके अलावा उन्हें जनता व मीडिया से अपने शोधों के बारे किए जा रहे अपने प्रयोगों के बारे में बातचीत करने की स्वतंत्रता हो।

यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट्स में सेंटर फॉर साइंस एंड डेमोक्रेसी के निदेशक एंड्रयू रोसेनबर्ग ने कहा कि कायदे से सरकारी संस्थानों में काम करने वाले वैज्ञानिकों को सोशल मीडिया सहित जनता और मीडिया से सीधे बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सम्मेलन में मौजूद अधिकांश वैज्ञानिकों ने इस बात की शिकायत की कि सूचना पाना ट्रंप प्रशासन के दौरान बहुत कठिन हो गया था। और जब ट्रंप ने पदभार संभाला था, तब से यह और भी दुश्वार हो गया था।

अपने शुरुआती दिनों में ट्रंप प्रशासन ने वैज्ञानिक व शोधकर्ताओं से जुड़ी एजेंसी के कर्मचारियों के काम के बारे में बोलने पर प्रतिबंध जारी किया था। और कोविड महामारी के दौरान संक्रामक रोग प्रमुख एंथोनी फौसी सहित शीर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों पर जनता को सीधे संबोधित करने पर प्रतिबंधित कर दिया था। रोसेनबर्ग का कहना है कि एजेंसियों को वैज्ञानिकों के बोलने से डरना नहीं चाहिए।

ओएसटीपी के उपनिदेशक एलोंड्रा नेल्सन ने कहा कि चूंकि ट्रंप 2016 में चुने गए थे, तब न्यूयार्क स्थित गैर-लाभकारी जलवायु विज्ञान कानूनी रक्षा कोष (सीएसएलडीएफ) और कोलंबिया लॉ स्कूल में जलवायु परिवर्तन के लिए साबिन सेंटर के खिलाफ अमेरिकी सरकार द्वारा विज्ञान विरोधी कार्रवाइयों को ट्रैक किया गया। इसमें कांग्रेस के व्यक्तिगत सदस्य शामिल थे। सीएसएलडीएफ के एक स्टाफ अटॉर्नी ऑगस्टा विल्सन ने एक सत्र में कहा कि उनमें से आधे मामलों में वैज्ञानिक जानकारी को सेंसरशिप किया गया।

ध्यान रहे कि सीएसएलडीएफ और सबिन सेंटर उन समूहों में से है, जिन्होंने विज्ञान को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने और वैज्ञानिक साक्ष्य को महत्व देना सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश बनाए हैं। सम्मेलन में उपस्थित कुछ वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि इस मामले में कांग्रेस को बकायदा कानून पारित करना चाहिए।

दशकों तक यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और यूएस एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) में काम करने वाले टॉम सिंक ने नेचर को बताया कि एजेंसियों में वैज्ञानिकों और राजनीतिक नेताओं के बीच एक सुव्यवस्थित संवाद स्थापित करने की आवश्यकता है। एक सुव्यवस्थित संवाद ही विज्ञान को विज्ञान और राजनीति को राजनीति बनाने में सक्षम बनाएगा और वैज्ञानिक की अखंडता को बनाए रखने में एक बड़ी भूमिका निभाएगा।