विज्ञान

पैरालंपिक खेलों में आधुनिक प्रौद्योगिकी ने दिखाया अपना दम

Anil Ashwani Sharma

पैरालंपिक खेल अपने आखिरी पड़ाव में पहुंच चुके हैं। इस बार के इस खेल की चर्चा देश में चहुंओर हो रही है। देश का हर नागरिक इस बार इन खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को उनकी जीत पर सिरआंखों पर बिठा रहा हैं। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस प्रकार के पैरालंपिक खेलों में भारत 1972 से भाग लेता आया है। लेकिन इस बार तो खिलाड़ियों ने आधे खत्म हुए ओलंपिक में ही इतने पदक अपनी झोली में डाल लिए हैं जितने उसने पिछले सभी ओलंपिक खेलों में भी नहीं डाल पाए थे। इसकी क्या वजह हो सकती है?

यह एक यक्ष प्रश्न सभी के मन में घुमड़ रहा है। तो इसका जवाब है खेलों में पूर्व के मुकाबले अब प्रौद्योगिकी यानी खेलों में साइंस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और शारीरिक अंगों के नहीं रहने से उन अंगो को की आपूर्ति में प्रोद्योगिकी ने कारगर भूमिका निभाई है। इस संबंध में खेल विशेषज्ञ राकेश थपलियाल कहते हैं, खेल में प्रौद्योगिकी की भूमिका हमेशा से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है, लेकिन जब पैरालंपिक की बात हो रही हो तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि ऐसे में व्यक्ति और मशीन के बीच बने अंर्तसंबंध अधिक व्यापक रूप से दिखाई देते हैं।

टोक्यो में पैरालंपिक खेलों ने आधा सफर तय कर लिया है। ऐसे में व्यक्ति और मशीन के बीच बने संबंधों की मजबूती पूरी दुनिया पिछले एक हफ्ते से अपनी आंखों से देख रही है। और यह अजूबा दुनिया आगामी पांच सितंबर तक देखेगी। 

इस संबंध में स्पोर्ट्स साइंस के डॉक्टर दिनेश समुझ कहते हैं कि एक कमी है लेकिन उस कमी को दूर करने में व्यक्ति को सामर्थ बनाने में मशीन कोई कमी नहीं छोड़ती। और आज 21वीं सदी में तो यह स्थिति को और मजबूती प्रदान करती है। इस खेल में भाग ले रहे खिलाड़ियों को मिली तकनीकी प्रगति आगामी खेलों में असीमित संभावनाओं को जन्म देती।

2016 में रियो में हुए पैरालंपिक खेलों के बाद इस बात की संभावना व्यक्त की गई थी कि टोक्यो-2020 पैरालंपिक खेलों में तकनीक अपनी सर्वोच्चता को छू रही होगी। यह सौ फीसदी सही भी दिख पड़ रहा है। और यहां शायद इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आईपीसी) के मूलभूत सिद्धांतों के मद्देनजर  पैरालंपिक में प्रौद्योगिकी की भूमिका को देखना चाहिए। दुनिया की कई नई प्रौद्योगिकियां सामने आई हैं जो सभी विकलांग खिलाड़ियों के जीवन को और बेहतर बना रही हैं और इसी का नतीजा है कि इस बार भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन अविष्मणीय है और उम्मीद की जाती है कि जब यह खेल समाप्त होगा तब तक भारत कम से कम पैरालंपिक खेलों में एक मजबूत देश के रूप् में उभर चुका होगा।      

कनर्वेशेसन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अपंग व्यक्ति के अंगों को साइंस की मदद से उनका सही दिशा मे संचालन, रोबोटिक पैर और हाथों का सही मानक का उपयोग और सबसे महत्वपूर्ण है रोबोटिक अंगों का दिमाग पर नियंत्रण में रखना, अब आधुनिक तकनीकी के सहारे असंभव नहीं रहा है। यहां ध्यान देने की बात है कि कैसे ये प्रौद्योगिकियां कृत्रिम अंग के साथ एक व्यक्ति के एकीकरण में क्रांतिकारी बदलाव लाती हैं। उदाहरण के लिए पारंपरिक तरीकों की तुलना में साइकिल की वायु गति को और परिष्कृत कर आसान बनाया गया है। नवीन प्रौद्योगिकी के तहत नवीन डिजाइनों को और अधिक त्वरित तरीके से सभी के लिए आसानी से अपनाने योग्य बनने की कोशिश की गई है।

इससे खिलाड़ियों के शरीर में लगाए गए कृत्रिम अंग हल्के, मजबूत और संभावित रूप से अधिक आरामदायक हो गए हैं, जिससे उनके प्रदर्शन में आश्चर्यजनक ढंग से सुधार न केवल सुधार हुआ बल्कि इससे उनके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी हुई क्योंकि जब आप अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो यह सर्वमान्य है कि आपमें आत्म विश्वास और बढ़ेगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यक्तियों को पैरालिम्पियन बनने में सक्षम बनाने के लिए खेल का ज्ञान, प्रशिक्षण, पोषण और समर्पण जरूरी कारक हैं लेकिन इस बात का ध्यान रखने चाहिए कि प्रौद्योगिकी प्रदर्शन में सुधार कर सकती है, लेकिन मानव प्रयास के बिना इसे संभव नहीं बनाया जा सकता। यहां यह याद रखने की बात है कि पैरालिंपिक में प्रौद्योगिकी और उपकरणों के उपयोग के संबंध में आईपीसी के चार मूलभूत सिद्धांत हैं-सुरक्षा, निष्पक्षता, सार्वभौमिकता और शारीरिक कौशल। यह नियम मुख्य रूप से व्हीलचेयर और कृत्रिम अंग पर लागू होते हैं। पैरालिंपिक का सार यह है कि प्रौद्योगिकी सभी के लिए यथोचित रूप से उपलब्ध होनी चाहिए, सुरक्षित, निष्पक्ष और, सबसे महत्वपूर्ण बात कि एथलीट की प्राकृतिक शारीरिक क्षमता से परे प्रदर्शन को बढ़ाना नहीं होना चाहिए।

यह याद रखना चाहिए कि कृत्रिम अंग एक उपकरण हैं। यह व्यक्ति का एक विस्तार है। यही कारण है कि इस बार के टोक्यो-2020 में नई सामग्री, बेहतर डिजाइन और उन्नत विनिर्माण तकनीकों के रूप में सुधार आया है और इसका नतीजा हम देख ही रहे हैं कि अनेक खेलों में खिलाड़ियों ने अपने पूर्व प्रदर्शन को तकनीकी कौशल के माध्यम से और बेहतर करने में सफल हुए हैं। इसका सीधा मतलब है कि इस खेल में नई प्रौद्योगिकी ने खेलों के स्तर को और ऊपर बढ़ाया है। हालांकि प्रदर्शन में व्यापक सुधार, सामान्य एथलेटिक सुधार से अधिक होने की संभावना है।

ओलंपिक की तरह यह विशाल सुधार भी कमतर होने लगा है। इसका अर्थ होता है कि यद्यपि प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए आवश्यक है लेकिन यह एकमात्र कारक नहीं है। अभी भी इसे चलाने के लिए मानवीय तत्व पर निर्भर होना पड़ता है और किसी भी नई तकनीक के केंद्र में अभी भी व्यक्ति ही है।

ओलंपिक और पैरालंपिक दोनों में प्रौद्योगिकी और खेल की शुद्धता से निपटने के असंख्य मुद्दे हैं। खासकर उन खेलों में जो एथलीट पर खुद के विस्तार की संभावना अधिक होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह हम उन लोगों की अदम्य भावना और धैर्य का जश्न मनाते हैं, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि ओलंपिक में उन्हें तकनीक कैसे मिली, शायद हमें भी पैरालिंपियन के उन्हीं लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और यह महसूस करना चाहिए कि तकनीक का हिस्सा है खेल, लेकिन यह वास्तव में वह व्यक्ति है, जिसने उन्हें वहां पहुंचाया।

हमें दर्शकों के रूप में एथलीट की अपनी खूबियों पर ध्यान देना चाहिए न कि तकनीक पर।