विज्ञान

हिमालयी इलाके में लिथियम निकालने की भारी पर्यावरणीय कीमत चुकानी होगी: अध्ययन

विशेषज्ञों के मुताबिक, हिमालय की संवेदनशील पारिस्थितिकी को देखते हुए खनन शुरू करने से पहले स्वतंत्र पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए

Dayanidhi

रिचार्जेबल बैटरी के रूप में इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम का उपयोग किया जाता है, यह नवीकरणीय ऊर्जा लिए महत्वपूर्ण है। 2030 तक 14.2 करोड़  इलेक्ट्रिक वाहनों के सड़कों पर होने का अनुमान है। दुनिया भर में 2010 से 2020 के बीच लिथियम का उत्पादन तीन गुना हो गया है। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक यदि मौजूदा निकालने की नीतियां जारी रही तो 2050 तक लिथियम की मांग 18 से 20 गुना बढ़ जाएगी।

पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत के जम्मू और कश्मीर में विशाल लिथियम भंडार की खोज, देश में स्वच्छ ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले समुदायों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी।

लिथियम को अक्सर "सफेद सोना " कहा जाता है, इसका उपयोग लिथियम-आयन स्टोरेज बैटरी में प्रमुखता से होता है। यह इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अहम है क्योंकि वे आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले लीड-एसिड या निकल-मेटल हाइड्राइड बैटरी की तुलना में वजन के हिसाब से कहीं अधिक कुशल होती हैं।

फरवरी में जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में लिथियम के भंडार होने की घोषणा की गई, जिससे लगभग 59 लाख मीट्रिक टन, जीवाश्म ईंधन पर लगाम लग सकती है, जिसका देश में भारी स्वागत किया गया था। भारत को पहले ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना जैसे देशों से लिथियम के आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

हालांकि, इसके हिमालयी परिदृश्य में पाए जाने की बात सामने आ रही है, जिसको निकालने के लिए बांधों और राजमार्गों के निर्माण में उपयोग किए जाने वाली भारी मशीनरी का उपयोग होगा। जिसके कारण हिमालयी इलाकों के धंसने की आशंका जताई गई है, इस तरह के पर्यावरणीय नुकसान से चिंता बढ़ जाती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में ड्रिलिंग और मिट्टी काटने के लिए भारी मशीनरी का उपयोग जोशीमठ शहर में धंसने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। यह वह इलाका है जो हाल के महीनों में भूस्खलन की विनाशकारी घटनाओं का साक्षी रहा।

वहां रहने वाले लोग लिथियम भंडार के कारण उन आर्थिक अवसरों को पहचानते हैं, लेकिन खतरे भी, क्योंकि धंसते घर कई लोगों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगहों में जाने के लिए मजबूर करते हैं।

नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में स्थानीय गांव वालों के हवाले से बताया गया है कि उन्हें पहली बार गांव के पास लिथियम के विशाल भंडार की खोज के बारे में पता चला, तो वे खुश थे कि इससे उनके इलाके में समृद्धि लाएगा। लेकिन जब उन्होंने सुना कि जब इसे निकाला जाता है, तो इसका असर पानी के स्रोतों पर पड़ सकता है। 

उन्होंने कहा, भले ही हमें अपने गांव से विस्थापन के लिए कुछ मुआवजा मिल जाए, लेकिन हम जिस घर में पीढ़ियों से रह रहे हैं, उसे छोड़ने का विचार हमें बहुत दुखी करता है।

अध्ययन के मुताबिक गांव वालों का कहना था कि, उनके समुदाय में खनन के प्रभावों के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए। अब तक, हमें आधिकारिक तौर पर हमारे गांव को खाली करने के लिए नहीं कहा गया है। अगर पूरे क्षेत्र के निवासियों को खाली करने की आवश्यकता पड़ी, तो 500 से अधिक परिवार प्रभावित होंगे।

यह केवल अव्यवस्था के बारे में नहीं है, अगर हमें पास के क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है तो प्रदूषण होगा जिसे हमें सहन करना होगा। अगर हमें देश के लिए ये बलिदान देने के लिए कहा जाता है, तो सरकार को भी हमारे बारे में सोचना होगा।

यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार कब लिथियम निकालने की योजना शुरू कर रही है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि व्यावसायिक खनन शुरू होने में अभी कई साल लग सकते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, इस क्षेत्र में अब तक, केवल प्राथमिक संसाधन की गणना की गई है। दोहन योग्य संसाधनों के बारे में सुनिश्चित होने से पहले दो और चरण हैं और हम खनन के लिए जाएंगे या नहीं, संसाधनों का खनन करने में कई साल लगेंगे। 

उन्होंने कहा कि भारत को लीथियम के खनन और शोधन के लिए विशिष्ट तकनीकों को हासिल करने की जरूरत पड़ेगी।

विशेषज्ञों ने कहा कि, लिथियम खदान के विकास में 10 साल या उससे अधिक का समय लग सकता है। हालांकि, यह संभव है कि इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के निर्माण में लिथियम के महत्व को देखते हुए, भारत में तेजी से इस पर काम हो, इस पर लगने वाले समय को कम किया जा सकता है।

विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि, हिमालय की संवेदनशील पारिस्थितिकी को देखते हुए खनन शुरू करने से पहले स्वतंत्र पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए। उन्होंने  कहा बैटरी मूल्य श्रृंखला के पर्यावरण पदचिह्न की दुनिया भर में बढ़ती मांग को देखते हुए बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से निवेश आकर्षित करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल खनन प्रक्रिया सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।

विशेषज्ञों ने बताया कि, देश में लिथियम की खोज एक बड़ा विकास है क्योंकि भारत तेजी से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का पीछा कर रहा है। लेकिन लिथियम निकालने, पर्यावरण के अनुकूल अन्वेषण प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए जब भी इस संसाधन का दोहन किया जाएगा, इसकी आवश्यकता होगी।

लिथियम खनन के कारण हाल के वर्षों में दुनिया भर में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। अध्ययन के अनुसार, लिथियम भंडार के आसपास के पारिस्थितिक तंत्र बेहद नाजुक और एक खाद्य श्रृंखला में जुड़े हुए हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं पशुधन और ग्रामीण आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं।